Thursday, May 28, 2009

पर्यावरण बचाने की अनूठी मुहिम


पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वी भारत में खासकर ट्रेकिंग के शौकीन सैलानियों का स्वर्ग कहा जाने वाले सांदाक्फू पर्वतीय क्षेत्र में हर साल बढ़ते कचरे के चलते इलाके का पर्यावरण संतुलन खतरे में पड़ गया है। दार्जिलिंग जिले में लगभग साढ़े बारह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस इलाके में हर साल 12 हजार देशी-विदेशी सैलानी ट्रेकिंग के लिए यहां आते हैं। वे अपने पीछे वर्षों से जो कूड़ा-कचरा छोड़ते रहे हैं उससे इलाके की दुर्लभ किस्म की वनस्पतियों को भारी नुकसान पहुंच रहा है। इलाके में तेजी से कटते पेड़ों ने भी पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है। अब वहां जमा हजारों टन कूड़े से जहां सैलानियों की आवक घटने का अंदेशा है वहीं पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। इतना सब होने के बावजूद राज्य सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। अब सिलीगुड़ी स्थित हिमालयन नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन (नैफ) की पहल पर उत्तर बंगाल के दर्जन भर पर्यावरणप्रेमी संगठनों ने अब इस कूड़े को साफ करन सांदाक्फू को बचाने का बीड़ा उठाया है। लेकिन इस कूड़े को ठिकाने लगाने की समुचित आधारभूत सुविधाओं की कमी उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है।
दार्जिलिंग जिले के मानेभंजन से 70 किमी दूर स्थित सांदाक्फू इलाके की खासियत यह है कि पूर्वी भारत में सूर्योदय का सबसे सुंदर नजारा यहीं से दिखता है। इसके अलावा यही एकमात्र जगह है जहां से कंचनजंघा व माउंट एवरेस्ट की बर्फीली चोटियां पूरे 180 डिग्री के विस्तार में देखी जा सकती हैं। सांदक्फू अपनी विविध बनस्पतियों के लिए पूरे देश में मशहूर है। उस इलाके में स्थित सिंगालीला नेशनल पार्क में कई दुर्लभ प्रजातियों के पशु-पक्षी और बनस्पतियां है। 10-12 साल पहले यहां रेड पांडा और हिमालय के काले भालू भी रहते थे लेकिन अब वे ढूंढे नजर नहीं आते। हिमालयन नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन के प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर अनिमेश बसु कहते हैं कि कचरे के बढ़ते ढेर के कारण इलाके का पर्यावरण और जैविक-विविधता खतरे में है। वे कहते हैं कि खासकर प्लास्टिक जैसी न गलने वाली वस्तुओं के ढेर के चलते पहाड़ियों की मिट्टी नरम हो गई है हर साल बरसात में खिसकती रहती है। इससे पानी जमा रखने की उनकी क्षमता भी कम हो गई है।

हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीटयूट के पूर्व उप-निदेशक निमा ताशी कहते हैं कि जलावन की लकड़ी के तौर पर इलाके के देवदारु के पेड़ों के कटने के कारण पर्वतीय इलाके का संतुलन पहले से ही गड़बड़ाया था। अब बीते कुछ वर्षों के दौरान सैलानियों की ओर से छोड़े गए कचरे ने स्थित और गंभीर कर दी है। ताशी बताते हैं कि पूर्वी नेपाल से सटे इलाके में तो स्थित खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
सांदाक्फू तक ट्रेकिंग करने वाले सैलानी सिंगालीला पार्क होकर ही जाते हैं। नतीजतन वहां से दुर्लभ किस्म के पशु-पक्षी धीरे-धीरे दूसरे सुरक्षित स्थानों की जा रहे हैं। यह पार्क इतनी ऊंचाई पर बसा दुनिया में अपनी किस्म का अकेला पार्क है। इसलिए अब किसी नए रुट की भी तलाश की जा रही है। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि उस पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर ही निर्भर है। इसलिए ट्रेकिंग पर किसी तरह की पाबंदी लगाना संभव नहीं है। अब ताजा अभियान के तहत स्थानीय लोगों के अलावा सैलानियों में पर्यावरण की रक्षा के प्रति जागरुकता पैदा करने का प्रयास चल रहा है। लेकिन इस अभियान की राह में सबसे बड़ी समस्या यह है कि पर्वतीय इलाके में कचरे को जलाने की कोई व्यवस्था नहीं है। इस हजारों टन कचरे को ढोकर सबसे नजदीकी शहर सिलीगुड़ी तक लाना बहुत कठिन है। लेकिन पर्यावरणप्रेमी इससे हताश नहीं हैं। वे दुर्गापूजा के समय ट्रेकिंग का सीजन शुरू होने के पहले इस इलाके को साफ-सुथरा बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं। इनके अभियान से इलाके के लोगों में तो धीरे-धीरे चेतना फैल रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि राज्य सरकार आखिर कब चेतेगी? उसके सहयोग के बिना यह काम बहुत ही कठिन है।

1 comment:

  1. हिमालया माउन्टेनरिंग इन्स्टिट्यूट, इस दार्जलिंग यात्रा के दौरान देखा था..आज यहाँ जिक्र देख अच्छा लगा.

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