Thursday, May 21, 2009

वहां भी बेहतर नहीं है महिलाओं का हालत




पूर्वोत्तर के स्कॉटलैंड के नाम से मशहूर मेघालय में महिलाओं को देश के किसी भी दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा अधिकार मिले हैं। इस छोटे से पर्वतीय राज्य में मातृसत्ता वाला समाज है। परिवार की छोटी लड़की ही घर व संपत्ति की मालिक होती है और उसी के नाम पर वंश आगे बढ़ता है। वह शादी के बाद ससुराल नहीं जाती बल्कि दूल्हे को ही अपने घर ले आती है। लेकिन विडंबना यह है कि राज्य व समाज के विकास की दिशा में किसी महत्वपूर्ण फैसले में उसकी कोई भूमिका नहीं है। यही नहीं, राज्य की महिलाओं को अब घरेलू हिंसा का भी शिकार होना पड़ रहा है। वहां महिलाओं की हालत दूसरे राज्यों के मुकाबले बेहतर नहीं है। राज्य महिला आयोग के ताजा आंकड़े ही इसका खुलासा करते हैं।
आयोग ने कहा है कि वर्ष 2006 से 2008 के दौरान मेघालय के सभी जिलों में बलात्कार के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा इस दौरान घरेलू हिंसा और छेड़छाड़ के मामले भी पहले के मुकाबले काफी बढ़ गए। अकेले 2008 में बलात्कार के 78 मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़े उन मामलों पर आधारित हैं जो पुलिस तक पहुंचे। लेकिन ज्यादातर मामले तो गांव की पंचायतों तक ही दम तोड़ देते हैं। महिला आयोग ने महिलाओँ के खिलाफ हिंसा के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए कहा है कि दूर-दराज के इलाकों से सूचनाएं नहीं मिल पातीं। ऐसे में हिंसा की शिकार महिलाओं की तादाद अनुमान से ज्यादा हो सकती है। आयोग की अध्यक्ष सुशाना के. मराक कहती हैं कि हिंसा की शिकार ज्यादातर महिलाएं समाज के पिछड़े तबके से ताल्लुक रखती हैं। उन्होंने राज्य में महिलाओं व कम उम्र की बच्चियों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए बने मौजूदा कानूनों को नाकाफी करारे देते हुए उनको और धारदार बनाने पर जोर दिया है।
इससे पहले राज्य में एक गैर-सरकारी संगठन नार्थ ईस्ट नेटवर्क की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण में भी इस मुद्दे पर कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई थी। संगठन की ओर से प्रकाशित एक निदेशिका में कहा गया था कि महिलाओं पर हिंसा के मामले साल-दर-साल बढ़ रहे ज्यादातर मामलों का कहीं कोई रिकार्ड ही नहीं होता। संगठन ने हिंसापीड़ित महिलाओं की सहायता के लिए एक नए सेल का गठन किया है।
मेघालय की एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आई.नोंगरांग कहती हैं कि राज्य में मातृसत्तात्मक समाज है। यानी यहां महिलाओं को कई विशेषाधिकार व सुविधाएं हासिल हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। उनका सवाल है कि राज्य का दर्जा मिलने के बाद अब तक कितनी महिलाएं विधायक बनी हैं?किसी भी नीति निर्धारक संस्था में महिलाओं की भागीदारी नहीं के बराबर है। वे कहती हैं कि जब तक निर्णय लेने के अधिकार में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जाएगी, राज्य व समाज का भला नहीं होगा। विडंबना यह है कि महिला पुलिस बल के गठन जैसे मामलों में भी फैसले का अधिकार पुरुषों को ही है।
एक सामाजिक कार्यकर्ता सी.टी संगमा कहती हैं कि देश भर में माना जाता है कि मेघालय की महिलाओं को सबसे ज्यादा अधिकार हासिल हैं, लेकिन इसके उलट यहां उन पर अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। वे इसके लिए राज्य सरकार व पुलिस की उदासीनता को जिम्मेवार ठहराती हैं। उक्त संगठन की रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य में महिलाओं को घरेलू हिंसा के अलावा बलात्कार व यौन उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन ज्यादातर मामले दबा दिए जाते हैं। पंचायतें भी इसे निजी मामला मानकर कोई कार्रवाई नहीं करतीं। वे किसी भी मामले में उसी समय हस्तक्षेप करती हैं जब उसका असर पूरे गांव पर पड़ रहा हो। राज्य के खासकर ग्रामीण इलाकों में शादी के बाद पत्नी को छोड़ देना,बिना शादी के ही दूसरी पत्नी घर में रखना और कम उम्र में ही युवतियों के गर्भवती होने की घटनाएं बढ़ रही हैं। राज्य में जब महिलाओं पर अत्याचार का मामला उठता है तो यह कह कर इसे दबाने का प्रयास किया जाता है कि मातृसत्ता वाले समाज में ऐसा संभव नहीं है। इसे पति-पत्नी या प्रभावित महिला का निजी झगड़ा करार दिया जाता है।
राज्य के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं पर बढ़ती हिंसा व अत्याचार की एक प्रमुख वजह शराब का सेवन है। संगमा बताती हैं कि राज्य के आदिवासी तबके के लोगों में शराबखोरी आम है और लगभग सभी मामलों में इसकी अहम भूमिका है। पुलिस का कहना है कि घरेलू हिंसा के मामलों की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जाती। राज्य के ज्यादातर इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा भी चरमरा गया है। नतीजतन हिंसा की शिकार महिलाओं को चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाती। हिंसा की शिकार महिलाओं के रहने के लिए राज्य में कोई आश्रम या दूसरी जगह नहीं है। ऐसी महिलाओं के पुनर्वास की भी कोई व्यवस्था नहीं है। सबसे खूबसूरत और महिला अधिकारों के मामले में सबसे आगे होने का दावा करने वाले इस खूबसूरत प्रदेश में महिलाओं की हकीकत का यह दूसरा पहलू काफी कड़वा है।

1 comment:

  1. तथ्य तो सामने आ रहे हैं लेकिन इस बात का कारण क्या है कि मातृसत्तात्मक होते हुए भी यहाँ स्त्रियों की स्थिति ठीक नहीं है। इस का विश्लेषण होना चाहिए।

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