Saturday, May 30, 2009
काजीरंगाः गोल हो रहे हैं गैंडे
काजीरंगा नेशनल पार्क यानी दुनिया भर में तेजी से घट रहे एक सींग वाले दुर्लभ प्रजाति के गैंडों का सबसे बड़ा घर। पूर्वोत्तर के प्रवेशद्वार असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग सवा दो सौ किलोमीटर दूर नगांव और गोलाघाट जिले में 430 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला यह पार्क इन गैंडों के अलावा दुर्लभ प्रजाति के दूसरे जानवरों, पशुपक्षियों व वनस्पतियों से भरा पड़ा है। उत्तर में ब्रह्मपुत्र और दक्षिण में कारबी-आंग्लांग की मनोरम पहाड़ियों से घिरे अंडाकार काजीरंगा को आजादी के तीन साल बाद 1950 में वन्यजीव अभयारण्य और 1974 में नेशनल पार्क का दर्जा मिला। इसकी जैविक और प्राकृतिक विविधताओं को देखते हुए यूनेस्को ने वर्ष 1985 में इसे विश्व घरोहर स्थल का दर्जा दिया।
असम का यह सबसे पुराना पार्क इन एक सींग वाले गैंडों के लिए तो पूरी दुनिया में मशहूर है ही, बीते कुछ सालों के दौरान यह इससे इतर वजहों से भी सुर्खियों में रहा है। वह वजह है कि एक सींग वाले गैंडों और बाघों का शिकार। काजीरंगा में अब इन गैंडों की अपनी सींग ही उनकी दुश्मन बनती जा रही है। इस सींग के लिए हर साल पार्क में गैंडों के अवैध शिकार की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। माना जाता है कि इन गैडों की सींग से यौनवर्द्धक दवाएं बनती हैं। इसलिए अमेरिका के अलावा दक्षिण एशियाई देशों में इनकी भारी मांग है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैंडे की सींग बीस लाख रुपए प्रति किलो की दर से बिक जाती है। शिकारी इन गैंडों को मार कर इनकी सींग निकाल लेते हैं। वर्ष 2006 में हुई गिनती के मुताबिक, विश्व में एक सींग वाले गैंडों की कुल आबादी 2,700 थी। इनमें से 1,855 काजीरंगा में हैं। लेकिन अब यह तादाद तेजी से घट रही है। बीते दो वर्षों के दौरान पार्क में कोई दो दर्जन गैंडों की हत्या के बाद अब सरकार ने अवैध शिकारियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सेना की सहायता लेने का फैसला किया है। इस साल भी अब तक चार गैंडे मारे जा चुके हैं।
असम की राजधानी को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ने वाली सड़क नेशल हाइवे 37 इस पार्क के बीचोबीच से गुजरती है। इससे गुजरते हुए कई बार आसपास एक सींग वाले गैंडे घास चरते नजर आ जाते हैं। देश के दूसरे नेशनल पार्कों व वन्यजीव उद्यानों से जो चीज काजीरंगा को अलग करती है वह यह है कि यहां आने वाले किसी भी पर्यटक को निराश नहीं होना पड़ता है। उनको गैंडे के दर्शन हो ही जाते हैं। एक सींगी गैंडे के अलावा यह पार्क जंगली भैंसों और हिरणों का भी सबसे बड़ा घर है। इनके अलावा पार्क में हाथी. जंगली सुअएर, भालू, चीता और कई दूसरे जावनर भी भरे पड़े हैं। तरहृतरह के पक्षियों के अलावा काजीरंगा में वनस्पतियों की तीन सौ से ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं।
यूनीसेफ ने इस पार्क को विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कर रखा है। लेकिन अब खुद इस पार्क की सबसे बड़ी धरोहर यानी इन गैडों का वजूद ही खतरे में पड़ गया है। इस पार्क पर खतरा दोतरफा है। हर साल ब्रह्मपुत्र में आने वाली भयावह बाढ़ अपने साथ पार्क का कुछ हिस्सा तो बहा कर ले जाती ही है, पूरे पार्क को भी डुबो देती है। नतीजतन हर साल बाढ़ के सीजन में इन गैंडों समेत सैकड़ों जानवर मारे जाते हैं। रही-सही कसर अवैध शिकारी पूरी कर देते हैं। हर बार गैंडों के शिकार की घटनाएं सामने आने के बाद हो-हल्ला मचता है और विभिन्न संगठन वन अधिकारियों या वन मंत्री के इस्तीफे की मांग करने लगते हैं। उसके बाद सरकार भी इसकी जांच और पार्क की सुरक्षा बढ़ाने का एलान कर चुप्पी साध लेती है। ऐसे एक मामले में तो सरकार को उच्चस्तरीय जांच का भरोसा देना पड़ा था।
दरअसल, समस्या की जड़ में कोई नहीं जाना चाहता। आखिर इन गैंडों के अवैध शिकार पर अंकुश लगाना संभव क्यों नहीं हो रहा है? इस सवाल पर सबकी अलग-अलग दलीलें हैं। लेकिन एक बात पर सब सहमत हैं कि वनरक्षकों की कमी ही इस राह में सबसे बड़ी बाधा है। राज्य के एक वरिष्ठ वन अधिकारी कहते हैं कि गैंडों के शिकार की समस्या कोई नई नहीं है। हर साल ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। मुठ्ठी भर वनरक्षकों के जरिए इतने बड़े इलाके के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना संभव ही नहीं है। राज्य सरकार हर बार सुरक्षा कर्मियों की तादाद बढ़ाने का भरोसा तो देती है, लेकिन अब तक किसी ने इस दिशा में ठोस पहल नहीं की है। वनरक्षकों की कमी तो है ही, उनके हथियार भी बहुत पुराने और लगभग बेकार हैं। उधर, अवैध शिकारियों के पास एके-47 से एके-56 तक तमाम आधुनिकतम हथियार मौजूद हैं। ऐसे में जंगल में अवैध शिकारियों को देखने के बावजूद कोई उनसे मुकाबला नहीं करना चाहता। गैंडे की जान तो जाएगी ही, वनरक्षक भी मुफ्त में मारे जाएंगे। शिकारियों ने अब तक वन विभाग के कई कर्मचारियों की भी हत्या कर दी है।
वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि पार्क के अस्थाई कर्मचारियों को सरकार ने पक्की नौकरी देने की बजाय काम से ही निकाल दिया। अब यह लोग पैसों के लालच में खिकारियों के साथ मिल गए हैं। पार्क और उससे सटी जंगली बस्तियों में रहने वाले यह लोग जंगल के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। उनकी सहायता से शिकारी आराम से अपना काम कर निकल जाते हैं।
एक सींग वाले गैंडे ही नहीं बल्कि अब इस पार्क में बाघों के मरने की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं। पार्क में बीते तीन महीनों के दौरान नौ बाघों की मौत हो चुकी है। लेकिन वन अधिकारियों का कहना है कि बाघों को शिकारियों ने नहीं मारा है। यह अलग बात है कि पर्यावरण और वन मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने पार्क के अधिकरियों को शिकारियों के खतरे से आगाह करते हुए कड़े नियम बनाने के लिए कहा है। एनटीसीए ने कहा है कि बाघ के हत्यारे पार्क के आसपास ही छिपे हुए हैं।
असम के मुख्य वन्यजीव वार्डन एम.सी.मालाकार ने कहा है कि काजीरंगा में नौ बाघों की मौत जरूर हुई है। लेकिन इसमें शिकारियों का कोई हाथ नहीं है। वे मानते हैं कि काजीरंगा में गैंडों के शिकार के मामले बढ़ रहे हैं। उनकी दलील है कि वन विभाग इन पर अंकुश लगाने का पूरा प्रयास कर रही है। मालाकार कहते हैं कि सेना की सहायता से ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में कामयाबी मिलेगी।
काजीरंगा विश्व धरोहर स्थल तो है ही, प्रोजेक्ट टाइगर के तहत इसे टाइगर रिजर्व क्षेत्र भी घोषित किया गया है। पिछली बार हुई गिनती के मुताबिक, काजीरंगा में 86 रायल बंगाल टाइगर थे। मालाकर का दावा है कि अब यह तादाद दो सौ के पार पहुंच गई है। लेकिन, काजीरंगा नेशनल पार्क के अधिकारी मानते हैं कि प्रोजेक्ट टाइगर के तहत उनको कोई धन नहीं मिला है। काजीरंगा के वनरक्षकों को बाघों के संरक्षण व बचाव के लिए कोई खास प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया है। गैंडों और बाघों के बचाव में वनरक्षकों की कमी ही सबसे बड़ी बाधा बन कर उभरी है। लेकिन सरकार ने अब तक कोई पहल नहीं की है। अगर, इस दिशा में जल्दी ही ठोस उपाय नहीं किए गए तो निकट भविष्य में काजीरंगा से गैंडे ही गोल हो जाएंगे।
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