Saturday, May 30, 2009
अब डूब रहा है सुंदरबन
पश्चिम बंगाल में बंगाल की खाड़ी व हुगली के मुहाने पर बसे सुंदरबन में देखने के लिए बहुत कुछ है। रायल बंगाल बाघ, जैविक और प्राकृतिक विविधता और सुंदरी पेड़ों का सबसे बड़ा जंगल यानी मैनग्रोव फॉरेस्ट। लेकिन अब इसमें एक और चीज जुड़ गई है। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी का कुप्रभाव देखना हो तो भी सुंदरबन आ सकते हैं। पर्यावरण में तेजी से होने वाले बदलावों के चलते समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण इस जंगल और इलाके में जहां-तहां बिखरे द्वीपों पर संकट मंडराने लगा है। इन प्राकृतिक द्वीपों के साथ यहां रहने वाली आबादी भी खतरे में है। डूबने के डर से इलाके से बड़े पैमाने पर विस्थापन हो रहा है। वैसे, तो पहले भी समय-समय पर सुंदरबन के द्वीपों के पानी में समाने पर चिंताएं जताई जा रहीं थी। लेकिन संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी पर्यावरण रिपोर्ट के बाद अब इसकी गंभीरता खुल कर सामने आ गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र का जलस्तर इसी तरह बढ़ता रहा तो सुंदरबन जल्दी ही भारत के नक्शे से मिट जाएगा। लोहाचारा नामक एक द्वीप पानी में समा चुका है। घोड़ामारा द्वीप भी धीरे-धीरे पानी में समा रहा है।
वैसे, सुंदरवन के वजूद पर छाए संकट की बात का खुलासा पहले भी हो चुका है। लेकिन सरकार ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। कोलकाता स्थित यादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्रविज्ञान अध्ययन विभाग के प्रमुख डा. सुगत हाजरा बीते आठ वर्षों से अपनी टीम के साथ सुंदरवन पर मंडराते पर्ययावरणीय खतरे का अध्ययन कर रहे हैं। हाजरा कहते हैं कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर व प्रशासनिक उदासीनता के कारण वर्ष 2020 तक सुदंरवन का 15 फीसदी इलाका समुद्र में समा जाएगा। वे कहते हैं कि यहां बीते दस वर्षों से समुद्री जलस्तर सालाना 3.14 मिमी की दर से बढ़ रहा है। इससे कम से कम 12 द्वीप संकट में हैं। हाजरा कहते हैं कि भूमंडलीय तापमान में बदलावों के चलते बंगाल की खाड़ी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। इससे इलाके के तमाम द्वीप खतरे में पड़ गए हैं।
सुंदरवन इलाके में कुल 102 द्वीप हैं। इनमें से 54 पर आबादी है। इनलोगों में किसानों, मछुआरों व मजदूरों की तादाद ज्यादा है। हाजरा कहते हैं कि इस इलाके में बड़े पैमाने पर होने वाले भूमिकटाव से लगभग 10 हजार लोग बेघर हो गए हैं। इनको पर्यावरण के शरणार्थी कहा जा रहा है। हाजरा कहते हैं कि अगले कुछ वर्षों के दौरान ऐसे शरणार्थियों की तादाद 70 हजार तक पहुंच जाएगी। अब वह घोड़ामारा द्वीप खतरे में है जहां दो सौ साल पहले सुंदरवन इलाके में सबसे पहली ब्रिटिश चौकी की स्थापना की गई थी। इसका एक तिहाई हिस्सा समुद्र में समा चुका है। घोड़ामारा के विश्वजीत दास कहते हैं कि मेरे पास तीन हेक्टेयर खेत थे। लेकिन अब महज एक हेक्टेयर बचा है।
इसके भी पानी में डूब जाने के बाद हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा। उस द्वीप के ज्यादातर लोगों की कहानी मिलती-जुलती है। राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी ने भी बीते दिनों इस द्वीप का दौरा किया है।
डा हाजरा कहते हैं कि सुंदरवन की इस हालत के लिए इंसान भी जिम्मेवार हैं। 1990 के मध्य तक लोगों ने इलाके के सुंदरी वनों को भारी नुकसान पहुंचाया। लेकिन दोबारा उन पेड़ों को रोपने का कोई प्रयास ही नहीं किया गया। विश्वास कहते हैं कि इलाके में पर्यटन को बढ़ावा देकर लोगों को रोजगार के वैकल्पिक साधन मुहैया कर ही वहां की दुर्लभ वनस्पतियों को बचाया जा सकता है। इसके बिना लोग पेड़ काटते रहेंगे। राज्य के अतिरिक्त प्रमुख वन संरक्षक अतनू राहा कहते हैं कि आबादी के दबाव ने सुंदरबन के जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। इलाके के गावों में रहने वाले लोगों के चलते जंगल पर काफी दबाव है। इसे बचाने के लिए एक ठोस पहल की जरूरत है ताकि जंगल के साथ-साथ वहां रहने वाले लोगों को भी बचाया जा सके। हमने इलाके में बड़ी नहरें व तालाब खुदवाने का फैसला किया है ताकि बारिश का पानी संरक्षित किया जा सके। इस पानी से इलाके में जाड़ों के मौसम में दूसरी फसलें उगाई जा सकती हैं। इससे जंगल पर दबाव कम होगा।
डा. हाजरा कहते हैं कि सरकार ने अगर तत्काल प्रभावी उपाय किए तो कई द्वीपों को डूबने से बचाया जा सकता है। लेकिन उसकी प्रतिक्रिया धीमी ही है। राज्य सरकार ने सुंदरवन के संरक्षण व विकास के लिए एक अलग मंत्रालय का गठन किया है। सुंदरवन मामलों के मंत्री कांति गांगुली कहते हैं कि हमारे वैज्ञानिक बीते कुछ वर्षों से सुंदरवन में पर्यावरण असंतुलन के कारण होने वाले बदलावों का अध्ययन कर रहे हैं। सरकार परिस्थिति से वाकिफ है। हम जल्दी ही इस दिशा में जरूरी कदम उठाएंगे। गांगुली कहते हैं कि इलाके के लोगों को वैकल्पित रोजगार मुहैया कराने व पेड़ों की कटाई रोकने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार ने कुछ गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिल कर सुंदरवन इलाके के लोगों में जागरूकता पैदा करने की भी योजना बनाई है। लेकिन सुंदरबन को बचाने की दिशा में होने वाले उपाय उस पर मंडराते खतरे के मुकाबले पर्याप्त नहीं हैं।
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