Wednesday, May 27, 2009

पेट के लिए जान देने की मजबूरी


जो रोजगार और खुशहाली का सबसे बड़ा जरिया हो, वह भला विपत्ति की सबसे बड़ी वजह कैसे हो सकती है? यह सवाल विरोधाभासी लगता है. लेकिन पश्चिम बंगाल के झारखंड से सटे इलाकों में चलने वाले अवैध खदानों व उसमें काम करने वाले मजदूरों के लिए यह कड़वी हकीकत है. वे अपना पेट पालने के लिए रोजाना इन अवैध खदानों से कोयला निकालने के लिए जमीन के भीतर जाते हैं और उनमें से कुछ लोग अक्सर उसी में दब जाते हैं. कोई बड़ा हादसा होने की स्थिति में ही दूसरों को इन मौतों के बारे में जानकारी मिलती है. लेकिन कुछ दिनों बाद फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है. हाल में पुरुलिया की सीमा पर ऐसी ही एक खदान में पानी भरने से 25 से 30 मजदूरों की जलसमाधि बन गई.
रानीगंज और आसनसोल इलाके में ऐसी सैकड़ों खदानें हैं जिन पर माफिया का राज है. यह कोयला माफिया पड़ोसी झारखंड से सस्ते मजदूरों को लाकर खदानों के आसपास बसाता है. उनसे अवैध खदानों से कोयला निकलवाया जाता है. वह कोयला यहां से ट्रकों के जरिए बनारस व कानपुर तक भेजा जाता है. इस इलाके की खदानें ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) की हैं. लेकिन उसने भी इस मामले पर चुप्पी साध रखी है. अवैध खुदाई वहीं होती है जिन खदानों से ईसीएल कोयला निकालना बंद कर चुका है. मजदूर अपने हाथों में फावड़ा व मोमबत्ती लेकर खदानों के भीतर जाते हैं. वहां खुदाई के बाद कोयले को बोरियों में भर कर ऊपर लाया जाता है. मौत के मुंह में पूरे दिन जान हथेली पर लेकर काम करने के एवज में उनको महज दो सौ रुपए मिलते हैं.
रानीगंज के एक पत्रकार विमल देव गुप्ता बताते हैं कि ‘इलाके में लगभग पांच सौ अवैध खदानें हैं और वहां कोई 20 हजार मजदूर काम करते हैं.’ वे बताते हैं कि ‘इन खदानों में अक्सर मिट्टी से दब कर या पानी में डूब कर दो-एक लोग मरते रहते हैं. लेकिन यह खबर भी उनके साथ ही वहीं दब जाती है. माफिया के हाथ बहुत लंबे हैं.’ कोयले की इस अवैध धुदाई से आसपास की कई बस्तियों में जमीन धंस गई है और मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं.
ऐसी एक खदान में काम करने वाले सुखिया मुंडा कहते हैं कि ‘हमें पेट की आग बुझाने के लिए मौत के मुंह में जाकर काम करना होता है. लेकिन इसके सिवा कोई विकल्प नहीं है. दुर्घटनाएं अक्सर होती रहती हैं. लेकिन जान के डर से तो भूखा नहीं रहा जा सकता.’ वे कहते हैं कि ‘यह खदानें हमारी रोजी-रोटी का जरिया हैं और यही हमारी मौत की वजह भी बन जाती हैं.’ कोयला उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि इलाके में अवैध खनन एक समानांतर उद्योग है. रोजाना हजारों टन कोयला इसके जरिए निकलता है. कम समय में ज्यादा कोयला निकालने की होड़ ही हादसों को न्योता देती है.इन मजदूरों को न तो किसी तरह का प्रशिक्षण हासिल होता है और न ही वे किसी वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करते हैं.
ईसीएल के एक अधिकारी कहते हैं कि ‘बड़े पैमाने पर होने वाली इस अवैध खुदाई पर अंकुश लगाना मुश्किल है. इसके लिए राज्य सरकार व पुलिस को ही कार्रवाई करनी होगी.’ लेकिन दूसरी ओर, उद्योग मंत्री निरुपम सेन कहते हैं कि ‘ईसीएल को अपनी बंद खदानों को ठीक से सील कर देना चाहिए ताकि उनको दोबारा नहीं खोला जा सके.’ सेन कहते हैं कि ‘सरकार ईसीएल के साथ मिल कर इस समस्या पर अंकुश लगाने का कोई ठोस तरीका तलाश रही है. हमने हाल की दुर्घटना के बाद भी बातचीत की है.’
इस अंधाधुंध खुदाई के कारण इलाके के कई गांवों में जमीन धंसने लगी है. संग्रामगढ़ व पहाड़गढ़ गांवों में कई बार जमीन धंस चुकी है. पहाड़गढ़ के सैकत अली कहते हैं ‘कि हमने कई बार सरकार से शिकायत की है. लेकिन कहीं कोई नहीं सुनता. यहां जमीन धीरे-धीरे धंस रही है. घऱ की दीवारों में दरारें बढ़ती जा रही हैं.’ मजदूर संगठन भारतीय कोयलरी मजदूर सभा के सोमाल राय बताते हैं कि ‘ईसीएल व राज्य सरकार को इसके लिए जल्दी ही कोई साझा योजना बनानी होगी. ऐसा नहीं होने की स्थिति में इलाके में हर पल किसी बड़े हादसे का अंदेशा बना रहेगा.’

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