Wednesday, May 20, 2009
दार्जिलिंग चाय के प्याले में तूफान
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग पर्वतीय इलाके में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग में जारी आंदोलन के चलते अब दुनिया भर में मशहूर दार्जिलिंग चाय के प्याले में तूफान आ गया है। इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने अब दार्जिलिंग चाय के साथ गोरखालैंड का उत्पाद जोड़ने की मांग उठाई है। संगठन ने इलाके के चाय बागान मालिकों को नए नाम का लेबल बनवाने के लिए सात मार्च तक का समय दिया था। उस समय तो लोकसभा चुनावों के एलान की वजह से यह मामला टल गया। लेकिन चुनाव के बाद अब यह मामला एक बार पिर तूल पकड़ रहा है। संगठन के महासचिव रोशन गिरि इस मांग को जायज करार देते हुए कहते हैं कि यह गोरखालैंड इलाका है। इसलिए यहां की चाय का नाम भी इसी के नाम पर होना चाहिए। इसके अलावा संगठन ने इलाके के चाय बागान मालिकों से चाय कर वसूलने की भी बात कही है। अब तक राज्य सरकार यह कर वसूलती रही है।
मोर्चा से संबद्ध दार्जिलिंग तराई-डुआर्स प्लांटेशन लेबर यूनियन ने इस मांग के समर्थन में बागानों में आंदोलन करने का फैसला किया है। यूनियन के सचिव सूरज सुब्बा कहते हैं कि इलाके के चाय बागानों से निकलने वाली चाय के पैकेट पर गोरखालैंड का उत्पाद लिखना होगा। उन्होंने चेताया है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो बागानों से चाय बाहर नहीं जाने दी जाएगी। मोर्चा अपने प्रस्तावित गोरखालैंड इलाके में एक चाय नीलामी केंद्र खोलने की भी मांग कर रही है। इलाके में सिलीगुड़ी में ही चाय नीलामी केंद्र है।
दूसरी ओर, इलाके के वरिष्ठ माकपा नेता और नगर विकास मंत्री अशोक भट्टाचार्य ने मोर्चा के इस कदम को गैरकानूनी करार दिया है। वे कहते हैं कि दार्जिलिंग चाय की दुनिया में अपनी अलग पहचान है। अब इस पर गोरखालैंड लिखने से दुनिया के बाजारों में भ्रम की हालत पैदा हो जाएगी। इसका असर इस चाय की बिक्री पर पड़ सकता है। उन्होंने राज्य व केंद्र सरकार को भी इस मामले की जानकारी दी है।
मोर्चा के महासचिव गिरि कहते हैं कि बागान मालिकों को चाय के पैकेट का लेबल तो बदलना ही होगा, मोर्चा को ही कर का भुगतान करना होगा। कोई बागान मालिक अब सरकार को कर नहीं दे सकता। सभी बागान मालिकों को इसकी सूचना दे दी गई है। यह पैसा आंदोलन को आगे बढ़ाने पर खर्च किया जाएगा। इलाके के 87 बागानों में हर साल लगभग दस मिलियन किलो चाय पैदा होती है और इसका ज्यादातर हिस्सा जापान, अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों को निर्यात किया जाता है। देश के कुल चाय निर्यात में दार्जिलिंग चाय का हिस्सा सात फीसदी है।
गोरखा मोर्चा की इस नई मांग ने चाय उद्योग को सकते में डाल दिया है। इलाके के एक बागान मालिक सवाल करते हैं कि यह कैसे संभव है। दार्जिलिंग चाय की पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान है। अब इसका नाम बदल कर उसके पैकेट पर गोरखालैंड का उत्पाद लिखने की स्थिति में आयातकों में भ्रम तो पैदा होगा ही, विश्व बाजार भी हमारे हाथों से निकल सकता है। दार्जिलिंग के एक अन्य बागान मालिक कहते हैं कि यह मांग बेतुकी है। हम मोर्चा की यह मांग कभी मंजूर नहीं करेंगे। यह मांग ठीक नहीं है। आंदोलन करना अलग बात है। लेकिन इसके लिए दार्जिलिंग चाय की साख से खिलवाड़ करना उचित नहीं है।
मोर्चा के मजदूर संगठन प्रमुख पी.टी.शेरपा कहते हैं कि हम जल्दी ही बागानों से कर वसूल करेंगे। सभी बागानों को इसकी सूचना भेज दी गई है। यह रकम संगठन की केंद्रीय समिति को सौंपी जाएगी। इसी तरह आल ट्रांसपोर्ट ज्वाइंट एक्शन कमिटी ने भी प्रस्तावित गोरखालैंड क्षेत्र के 15 हजार वाहनों से कर वसूलने का फैसला किया है।
अब दार्जिलिंग चाय के नाम के साथ गोरखालैंड जोड़ने के सवाल पर इलाके में एक नया विवाद खड़ा होने का अंदेशा है। चाय उद्योग ने सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार की चुप्पी के चलते के आने वाले दिनों में यह मुद्दा जोर पकड़ सकता है।
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इस तरह की मांगों का सख्त विरोध किया जाना चाहिये. जिस तरह गोरखालैण्ड ने दबाव डाल कर जगह जगह दुकानों पर स्टीकर चिपकवा दिये कि यह गोरखालैण्ड है..आदि. इसे तुरंत रोका जाना चाहिये. इससे किसी का हित नहीं है सिर्फ चंद लोकल नेताओं को छोड़.
ReplyDeleteसुभाष घीसिंग जैसा सकारात्मक रवैय्या और खुली सोच लेकर बीमल बाबू आयें तो फिर भी बात बने.