अपनी सांस्कृतिक विविधताओं और प्राकृतिक सौंदर्य की वजह से पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड कहा जाने वाला पर्वतीय राज्य मेघालय अपने गठन के 36 वर्षों बाद भी राजनीतिक स्थिरता के के लिए तरस रहा है। बीते साल मार्च में विधानसभा चुनाव के बाद डी.डी.लापांग की अगुवाई बनी दूसरी सरकार तो सत्ता से बाहर हुई ही, अब उन्हीं लांपाग के नेतृत्व में तीसरी सरकार बनी है। महज 15 महीनों के अंतराल में। चुनाव के बाद पहले लापांग की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी थी। लेकिन उसने सदन में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद डॉनकुपर राय के नेतृत्व में मेघालय प्रोग्रेसिव एलायंस (एमपीए) की सरकार सत्ता में आई। लेकिन दो मंत्रियों व दो विधायकों के इस्तीफे के बाद यह भी अल्पमत में आ गई और आखिर में उसे इस्तीफा देना पड़ा। राष्ट्रपति शासन के छोटे दौर के बाद अब एक बार पिर लापांग ने सरकार बनाई है। लेकिन उसकी स्थिरता पर भी सवालिया निशान लगने लगे हैं।
दरअसल यह राज्य अपने अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जितना मशहूर है, अपनी राजनीतिक अस्थिरता के लिए उतना ही बदनाम भी। अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद से ही यहां आयाराम-गयाराम सरकारें सत्ता में आती रही हैं। साठ सीटों वाली विधानसभा के लिए बीते साल हुए चुनावों के बाद सत्ता में आई इस दूसरी सरकार पर भी साल भर के भीतर ही खतरा पैदा हो गया है। बीते साल हुए विधानसभा चुनावों के बाद सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी कांग्रेस ने यहां न सिर्फ दावा पेश किया, बल्कि सरकार भी बनाई। लेकिन तमाम मशक्कतों के बावजूद कांग्रेस की अगुवाई वाले मेघालय यूनाइटेड अलायंस (एमयूडी) के विधायकों की तादाद 28 से आगे नहीं बढ़ी। नतीजतन मुख्यमंत्री डी.डी. लापांग को सदन में बहुमत साबित करने के कुछ घंटे पहले ही इस्तीफा देना पड़ा। लापांग की नई सरकार महज आठ दिन ही चली। उसके बाद मेघालय प्रोग्रेसिव एलायंस (एमपीए) विधायक दल के नेता और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी) अध्यक्ष डॉनकुपर राय को मेघालय के नए मुख्यमंत्री के रुप में शपथ दिलाई गई। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए.संगमा एमपीए के अध्यक्ष हैं।
राज्य में अब तक दो सरकारों ने ही अपना कार्यकाल पूरा किया है। इसलिए मुख्यमंत्री या सरकार बदलने पर यहां किसी को आश्चर्य नहीं होता। तीन साल पहले पहले भी डी.डी.लापांग सरकार के सत्ता में रहते मुख्यमंत्री पद के लिए लगभग तीन महीने तक खींचतान चली थी जो लापांग के इस्तीफे और जेडी रिम्बई के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही खत्म हुई। वर्ष 1972 में मेघालय के पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने के बाद राज्य विधानसभा के लिए पिछले 37 साल में चुनाव तो आठ बार ही हुए हैं, लेकिन इस दौरान 21 से अधिक सरकारें सत्ता संभाल चुकी है।
इससे पहले फरवरी 2003 में हुए चुनाव के बाद लापांग ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले मेघालय लोकतांत्रिक गठबंधन के कुल 39 नवनिर्वाचित विधायकों के नेता के रूप में चार मार्च 2003 को मुख्यमंत्री पद संभाला था। लगभग सवा तीन साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा। लेकिन उसके बाद कांग्रेस के 29 में से 20 विधायकों ने लापांग के प्रति अविश्वास प्रकट करते हुए सरकार को संकट में डाल दिया था। बाद में उनकी जगह जे.डी. रिम्बई मुख्यमंत्री बने।
मेघालय में 1972 के बाद 1978, 1983, 1988, 1993, 1998, 2003 और में विधानसभा चुनाव हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि 1972 से 1983 के बीच महज 11 वर्षों तक ही राज्य में सात मुख्यमंत्री बदल चुके थे। इस दौरान तीन बार कैप्टन संगमा, दो बार डीडी पघ और दो बार बीबी लिंगदोह ने सरकार की बागड़ोर संभाली। 1983 के चुनाव के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाले मेघालय लोकतांत्रिक मोर्चे के मुख्यमंत्री कैप्टन संगमा ने पांच साल का कार्यकाल बिना किसी फेरबदल के पूरा किया। साल 1988 के चुनाव में भी कांग्रेस की अगुवाई वाले लोकतांत्रिक जन मोर्चे को विजय हासिल हुई और पीए संगमा राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन 25 मार्च 1990 को संगमा की सरकार गिर गई और बीबी लिंगदोह के नेतृत्व में मेघालय संयुक्त संसदीय पार्टी की सरकार बनी। दस दिसंबर, 1991 को इस सरकार के पतन के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
इसबीच, पांच फरवरी, 1992 को कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के नेता डीडी लापांग सरकार बनाने में कामयाब रहे और उनकी सरकार ने विधानसभा का बाकी कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद 1993 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की अगुवाई वाले मेघालय लोकतांत्रिक मोर्चे की जीत हुई और एससी मारक ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। बाद में 1998 में हुए चुनाव में जीत हासिल कर मराक सरकार बनाने में तो कामयाब रहे, लेकिन 27 फरवरी को बनी उनकी सरकार ठीक एक महीने बाद 27 मार्च 1998 को गिर गई। इसके बाद संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा के नेता के रूप में लिंगदोह ने सरकार बनाई। लिंगदोह ने 18 अगस्त 1998 को पाला बदल लिया और मेघालय जनमोर्चे के नेता के रूप में नई सरकार बनाई। उनकी सरकार आठ मार्च, 2000 तक चली और तब गठबंधन की ओर से ईके मावलांग नए मुख्यमंत्री बने। मावलांग भी सरकार को स्थायित्व नहीं दे पाए और आठ दिसंबर, 2001 को उनकी सरकार भी गिर गई। इसके बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में पीपुल्स फोरम ऑफ मेघालय की सरकार बनी और इस सरकार के मुख्यमंत्री एफए खोंगलाम ने विधानसभा का बाकी कार्यकाल चार मार्च 2003 तक पूरा किया।
अब विधानसभा चुनावों के साल भर के भीतर ही राज्य में तीसरी सरकार सत्ता में आई है। मेघालय को राजनीतिक अस्थिरता से कब मुक्ति मिलेगी, इस सवाल का जवाब देना तो बड़े से बड़े राजनीतिक पंडित को लिए भी नामुमकिन है।
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कम सदस्यों वाली विधानसभाओं की पूरे देश में ही कमोवेश यही स्थिति है. क्योंकि एक एक विधायक की महत्ता बहुत बढ़ जाती है और सभी इसी मौके की तलाश में रहते हैं की कब सत्ता पर काबिज़ हों.
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