Friday, May 15, 2009

डूबते को वोट का सहारा



एक बहुत पुरानी कहावत है कि डूबते को तिनके का सहारा. लेकिन पश्चिम बंगाल में सुंदरबन डेल्टा के लगातार डूबते द्वीपों में से एक मौसुनी के लगभग 10 हजार मतदाताओं ने इस कहावत को थोड़ा बदल दिया है. लोकसभा चुनावों के अंतिम दौर में इन लोगों ने इस द्वीप को बचाने के लिए वोट डाले. यानी डूबते को वोट का सहारा. इस द्वीप में बिजली, पानी और सड़क जैसे आधारभूत मुद्दे लोगों की चिंता का विषय नहीं हैं. उन्होंने इस बार मौसुनी को बंगाल की खाड़ी में डूबने से बचाने की उम्मीद में वोट डाला है. दक्षिण 24-परगना जिले के मथुरापुर संसदीय क्षेत्र में बसे 24 वर्गकिलोमीटर में फैले इस द्वीप में बिजली, सड़क और पानी के दर्शन दुर्लभ हैं. लेकिन इस द्वीप के लोगों के लिए यह चुनाव वजूद की लड़ाई बन गया है. जिस तेजी से यह द्वीप समुद्र में समा रहा है उससे यह तय करना मुश्किल है कि अगले लोकसभा चुनावों तक यह बचेगा भी या नहीं.
द्वीप के गोपाल मंडल कहते हैं कि ‘हमें सड़क, पानी, बिजली या दूसरी कोई सुविधा नहीं चाहिए. हम चाहते हैं कि इस बार यहां से जीतने वाला सांसद इस द्वीप को बचाने के लिए समुद्र तट पर तटबंध बनवा दे.’ मंडल के परिवार के पास इस डूबते द्वीप पर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. बीते साल कोई पांच सौ लोग यहां से सुरक्षित स्थानों पर जा चुके हैं. बीते साल अक्तूबर में द्वीप पर बना तीन किलोमीटर लंबा तटबंध टूट गया था. उसके बाद समुद्र के खारे पानी ने इलाके में खेत और उसमें खड़ी फसलों को लील लिया. अब खारे पानी के चलते वह जमीन उपजाऊ नहीं रही.
समुद्र के बढ़ते जलस्तर की वजह से मौसुनी और घोड़ामारा जैसे द्वीप लगातार पानी में समा रहे हैं. मौसुनी के जलालुद्दीन कहते हैं कि ‘हमारे वोट बायकाट से भी कोई खास अंतर नहीं पड़ने वाला. इसलिए हम इस द्वीप को बचाने की उम्मीद में वोट दे रहे हैं. शायद जीतने वाला उम्मीदवार तटबंध बनवाने की दिशा में पहल करे.’ मथुरापुर संसदीय क्षेत्र का 60 फीसद हिस्सा सुंदरबन डेल्टा में है. वहां मौसुनी और घोड़ामारा जैसे डूबते द्वीपों से लोगों का पलायन लगातार बढ़ रहा है. घोड़ामारा द्वीप की आबादी पहले पांच हजार थी. लेकिन वहां अब डेढ़ हजार लोग ही बचे हैं. यह द्वीप नौ वर्गकिलोमीटर के मुकाबले बीते कुछ वर्षों में घट कर आधा रह गया है.
इस बार माकपा और तृणमूल कांग्रेस ने इन द्वीपों को बचाने के लिए ठोस पहल करने का वादा तो किया है. लेकिन लोगों को उन पर भरोसा कम ही है. इलाके में ज्यादातर ग्राम पंचायतों पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है. द्वीपों की इस समस्या के लगातार गंभीर होने की जिम्मेवारी दोनों राजनीतिक दल एक-दूसरे पर डाल रहे हैं. मथुरापुर सीट पर तृणमूल के उम्मीदवार चौधरी मोहन जटुआ कहते हैं कि ‘इलाके के माकपा सांसद बासुदेव बर्मन ने संसद में एक बार भी इन द्वीपों का मुद्दा नहीं उठाया.’ दूसरी ओर, माकपा उम्मीदवार अनिमेष सरकार कहते हैं कि ‘इन डूबते द्वीपों की समस्या इतनी गंभीर है कि राज्य सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती. इस समस्या पर राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान दिया जाना चाहिए.’ दिलचस्प बात यह है कि इस इलाके में किसी भी पार्टी ने सुंदरबन में होने वाले जलवायु परिवर्तन या डूबते द्वीपों का कोई जिक्र तक नहीं किया है. यहां भी खेती और औद्योगिकीकरण जैसे मुद्दे ही हावी रहे हैं.
मौसुनी ग्राम पंचायत के सदस्य रामकृष्ण मंडल कहते हैं कि ‘पंचायतें इस समस्या से निपटने में सक्षम नहीं हैं. तटबंध बनाने में करोड़ों का खर्च है. इतना पैसा आएगा कहां से?’ इलाके के लोगों के लिए यह चुनाव आशा की एक हल्की किरण लेकर आया है. उनको उम्मीद है कि शायद इस बार कहीं से इस द्वीप को बचाने की कोई शुरूआत हो. ऐसा नहीं हुआ तो यह द्वीप पूरी तरह डूब जाएगा और यहां के लोग भी पर्यावरण के शरणार्थियों की लगातार बढ़ती तादाद में शामिल हो जाएंगे.

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