Wednesday, May 20, 2009

सुंदरबन में टकराते बाघ और इंसान


पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाके में बाघों के जंगल से निकल कर मानव बस्तियों में आने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। अपने मैनग्रोव जंगल और रॉयल बंगाल टाइगर के लिए मशहूर सुंदरबन इलाका अब बाघ और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष की वजह से सुर्खियां बटोर रहा है। हाल के दिनों में इंसानी बस्तियों पर बाघों के हमले की कम से कम एक दर्जन घटनाओं में छह लोग लोग मारे जा चुके हैं और इतने ही घायल हुए हैं। वन विभाग ने बीते हफ्ते बस्ती में घूमते एक बाघ को दबोचने में भी कामयाबी हासिल की है। इस कड़ी की ताजा घटना में बाघ के जबड़े में फंस कर एक और मछुआरे की मौत हो गई। इन घटनाओं ने वन विभाग, राज्य सरकार और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को चिंता में डाल दिया है। सुंदरबन विकास मंत्री कांति गांगुली कहते हैं कि बाघों के हमले की ज्यादातर घटनाओं की रिपोर्ट ही नहीं दर्ज कराई जाती। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर लोग बिना किसी परमिट या मंजूरी के ही गहरे जंगल में घुसते हैं। इसलिए ऐसे मामलों की सही तादाद बताना मुश्किल है।
मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने जहां वन विभाग से इन मामलों की वजह पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, वहीं वन विभाग ने इसके कारणों का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया है। शुरूआती जांच में यह तथ्य सामने आया है कि सुंदरवन से सटी बंगाल की खाड़ी का जलस्तर बढ़ने, बाघों के चरने की जगह लगातार घटने और उनका पसंदीदा खाना नहीं मिलने की वजह से बाघ भोजन की तलाश में इंसानी बस्तियों में आने लगे हैं। इनसे बचाव के फौरी राहत के तौर पर वन विभाग ने सुंदरबन में सौ हिरण छोड़े हैं। लेकिन इसे ऊंट के मुंह में जीरा ही माना जा रहा है। अब चीफ वार्डन एस.बी.मंडल की अगुवाई में हुई बैठक में एक विशेषज्ञ समिति से महीने भर तक इलाके का सर्वेक्षण कराने का फैसला किया गया है।
बुद्धदेव भट्टाचार्य इंसानी बस्तियों में बाघों के घुसने की बढ़ती घटनाओं से चिंतित हैं। उन्होंने सुंदरबन विकास बोर्ड की बैठक में इस बात का पता लगाने पर जोर दिया कि बाघ भोजन की कमी के चलते जंगल से बाहर निकल रहे हैं या अपनी प्रकृति में बदलाव की वजह से। सुंदरबन विकास मंत्री कांति गांगुली कहते हैं कि बोर्ड के निदेशक से इस बारे में एक रिपोर्ट मांगी गई है। वे कहते हैं कि पहले किसी भी साल बाघों के इंसानी बस्तियों में आने की इतनी घटनाएं नहीं हुई हैं। गांगुली का कहना है कि सुंदरबन के बाघों की प्रकृति में भी बदलाव आ रहा है। अब वे निडर होकर बस्तियों में घुस कर इंसानों पर हमले कर रहे हैं।
सुंदरबन टाइगर रिजर्व के एक अधिकारी कहते हैं कि बाघ तभी जंगल से बाहर निकलते हैं जब वे बूढ़े हो जाते हैं और जंगल में आसानी से कोई शिकार नहीं मिलता। उस अधिकारी का कहना है कि सुदरबन की इंसानी बस्तियों में रहने वाले लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए मूल रूप से जंगली लकड़ियों की कटाई पर ही निर्भर हैं। अक्सर जंगल में बाघ से मुठभेड़ होने पर वे लोग उसे अपने धारदार हथियारों से घायल कर देते हैं। ऐसे ही बाघ भोजन की तलाश में इंसानों पर हमला करते हैं। प्रोजेक्ट टाइगर के पूर्व फील्ड डायरेक्टर प्रणवेश सान्याल इसके लिए वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को जिम्मेवार ठहराते हैं। वे कहते हैं कि सुंदरबन के जिस इलाके में बाघ रहते हैं वहां पानी का खारापन बीते एक दशक में 15 फीसद बढ़ गया है। इसलिए बाघ धीरे-धीरे जंगल के उत्तरी हिस्से में जाने लगे हैं जो इंसानी बस्तियों के करीब है।
वन विभाग ने सुंदरबन में इंसानी बस्तियों में बाघों को आने से रोकने के लिए लगभग 64 किमी दायरे में नायलान की बाड़ भी लगाई है। बावजूद इसके ऐसी घटनाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि तेजी से घटते जंगल भी बाघों के बाहर निकलने की एक अहम वजह है।
सुंदरबन इलाके में कुकुरमुत्ते की तरह उगने वाले होटलों व रिजार्टों ने भी इस समस्या को और जटिल बना दिया है। हर साल अक्तूबर से जनवरी तक हजारों पर्यटक सुंदरबन घूमने जाते हैं। उनके शोरगुल और प्रदूषण से इलाके के पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचता ही है, बाघ भी भ्रम के शिकार होकर बाहर निकलने लगे हैं। मुख्यमंत्री ने इन होटलों की बढ़ती तादाद पर अंकुश लगाने पर जोर दिया है।

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