Sunday, May 10, 2009

ब्लागम शरणम् गच्छामि..

लंबे अरसे से मित्रों, सहकर्मियों और परिचितों को ब्लागिंग करते देख-सुन रहा था. चाहता मैं भी था कि ब्लाग बना लूं. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद इसमें कोई एक-डेढ़ साल की देर हो गई. खैर, देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर रात को घर पर कंप्यूटर पर बैठे-बैठे ब्लाग भी बना लिया. मेरी अब तक की पूरी पत्रकारिता पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में ही सिमटी रही है. उन दो-ढाई महीनों को छोड़ कर जब कोई १३ साल पहले अपने अखबार के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनावों की कवरेज के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश गया था. पूरब और पूर्वोत्तर प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से तो बेमिसाल हैं ही, इलाके की संस्कृति भी सतरंगी है. खासकर पूर्वोत्तर तो अपने आप में इतनी विविधताएं समेटे है कि यहां अनेकता में एकता वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है. इस ब्लाग के जरिए इस इलाके की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तस्वीर दिखाने की एक छोटी कोशिश करना चाहता हूं. दैनिक अखबार में काम करते हुए कई चीजें तो रिपोर्ट बन कर अखबार के पन्नों पर छ्प जाती हैं. लेकिन कुछ अनुभव ऐसे भी होते हैं जो या तो रिपोर्ट की शक्ल नहीं ले पाते और लेते भी हैं तो छप नहीं पाते. इनकी तादाद छपने वाले अनुभवों से कहीं ज्यादा होती है. अब उन सब को इस ब्लाग पर सहेजने और सिलसिलेवार तरीके से रखने का प्रयास कर सकता हूं.

3 comments:

  1. હિન્દી બ્લૉગ જગત્ મેં આપકા સ્વાગત હૈ. हिन्दी ब्लॉग जगत् में आपका स्वागत् है।

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  2. आपका ब्लाग जगत में स्वागत है। पूर्वोत्तर या फिर पूर्वीभारत पर अब आप जैसे अनुभवी ब्लागर की लेखनी चलेगी तो मुझे पूरी उम्मीद है कि हिंदी ब्लागजगत इससे पर्याप्त लाभान्वित होगा। जैसा कि नाम पुरवाई रखा है तो हमें पूरा भरोसा है कि ब्लाग पर भी शब्दों में चित्रित पूर्वी भारत नजर आएगा। एक अनुरोध है कि कमेंट वैरिफिकेशन का प्रतिबंध हटा लें तो हमें थोड़ी सुविधा होगी।

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  3. प्रभाकर जी नमस्कार...यूं ही कुछ तलाशते हुए मैं आपके ब्लाग तक पहुंच गया। करीब पैतालिस मिनट आपके पन्नों को छानते-छानते गुवाहाटी से जुड़ी आपकी कई यादों के सहारे वहां अपने दिन को याद करता रहा। सचमुच अदभुत था वो समय...हिंदी पट्टी के पत्रकारों की दूसरी खेप जो वहां पहुंची थी मैं उसका हिस्सा था...सेंटिनल में सब ए़डिटर था मैं। सुधीर सुधाकर के साथ कभी आपसे मिला भी था मैं पर ज्यादा याद नहीं...अच्छा लगा..आपको अफसोस नहीं होना चाहिए कि आपने दिल्ली की पत्रकारिता नहीं की या हिंदी पट्टी के बाहर नहीं गए। आपने खूब लिखा है जोरदार लिखा है..कभी मुलाकात होगी...कुमार भवेश चंद्र, लखनऊ

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