कोलकाता, 16 मार्च। पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की चुनावी ट्रेन एक बार फिर छूट गई है। महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने वाले विधेयक की पुरजोर वकालत करने वाले वामपंथी दलों ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों पर महज दो महिलाओं को ही टिकट दिया है, जो पिछली बार के मुकाबले आदे से भी कम है। कहां तो अबकी बीते चुनावों के मुकाबले इसकी तादाद बढ़ने की उम्मीद थी, लेकिन उसमें भी कटौती हो गई है। चौदह सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस ने दो महिलाओं को टिकट दिया है। भाजपा ने एक महिला को मैदान में उतारा है। दूसरी ओर, नंदीग्राम व सिंगुर जैसे मुद्दों और कांग्रेस के साथ तालमेल व फिल्मी सितारों के सहारे मैदान में उतरी तृणमूल कांग्रेस ने 28 में से पांच सीटों पर महिलाओं को मैदान में उतारा है। राज्य में सत्तारूढ़ वाममोर्चा के नेता महिला उम्मीदवारों का टोटा होने का रोना रो रहे हैं।
वाममोर्चा ने वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों में पांच महिलाओं को टिकट दिया था। इनमें से तीन चुनाव जीत गई थी। लेकिन अबकी उनमें से भी एक का पत्ता साफ हो गया है। 42 में 32 सीटों पर लड़ने वाली माकपा ने पिछली बार जीतने वाली तीन में दो महिलाओं को दोबारा टिकट दिया है। इनमें से ज्योतिर्मयी सिकदर कृष्णनगर और सुष्मिचता बारूई विष्णुपुर आरक्षित सीट से लड़ेंगी। पिछली बार जीतने वाली मिनती सेन को अबकी टिकट नहीं दिया गया है। मोर्चा के बाकी तीन घटकों-आरएसपी, फारवर्ड ब्लाक और भाकपा ने तो दस में किसी भी सीट पर किसी महिला को टिकट नहीं दिया है। विडंबना यह है कि राज्य में माकपा के महिला सदस्यों की तादाद 30 हजार से ऊपर है। लेकिन पार्टी के नेताओं की दलील है कि उनको कोई योग्य महिला उम्मीदवार ही नहीं मिली।
माकपा के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सदस्य श्यामल चक्रवर्ती की दलील है कि हर सीट का महत्व है। इसलिए हमने उम्मीदवारों के चयन में काफी सावधानी बरती। वे कहते हैं कि काफी विचार-विमर्श के बाद जीत सकने लायक उम्मीदवारों को ही टिकट दिए गए। पार्टी के एक अन्य नेता कहते हैं कि राज्य में ऐसी योग्य महिलाओं की कमी है जो लोकसभा चुनाव लड़ कर जीत सकें। उनकी दलील है कि विधानसभा, नगर निगम व पंचायत चुनावों में इसकी भरपाई कर दी जाएगी। पिछली बार जीतने वाली माकपा की महिला नेता मिनती सेन, जिनको अबकी टिकट नहीं मिला है, ने कहा है कि उको टिकट नहीं देने का फैसला पार्टी का है। लेकिन वे कहती हैं कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए।
माकपा के नेता भले कुछ भी दलील दें, यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच प्रस्तावित तालमेल से वोट घटने के अंदेशे के चलते ही माकपा ने कम से कम महिला उम्मीदवारों को टिकट देने का फैसला किया। यह सही है कि तालमेल बाद में हुआ और मोर्चा के उम्मीदवारों की सूची पहले जारी हुई। लेकिन उस समय तक तालमेल की संभावना तो बढ़ ही गई थी और पार्टी के तमाम नेता इसके चलते वोट और सीटें घटने का अंदेशा जता रहे थे।
कांग्रेस ने जिन दो महिलाओं को टिकट दिया है उनमें से एक दीपा दासमुंशी को तो अपने पति के कोटे के तहत ही रायगंज से टिकट मिला है। रायगंज प्रिय रंजन दासमुंशी की पारंपरिक सीट रही है। दीपा भी उसी लोकसभा क्षेत्र के तहत पड़ने वाली विधानसभा सीट से पिछली बार चुनाव जीत चुकी हैं। अपनी लंबी बीमारी की वजह से दासमुंशी अबकी चुनाव लड़ने की हालत में नहीं हैं। इसलिए वंशवाद की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस ने उनके बदले उनकी पत्नी को टिकट दियाा है। इसके अलावा बर्दवान-दुर्गापुर सीट से नरगिस बेगम को टिकट दिया गया है। भाजपा ने प्रदेश महिला शाखा की प्रमुख ज्योत्सना बनर्जी को कोलकाता दक्षिण संसदीय सीट पर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के खिलाफ मैदान में उतारा है। बीते चुनावों में भाजपा व तृणमूल साथ थी। लेकिन अब दोनों के रास्ते अलग हो गए हैं। इसलिए भाजपा ने ममता के खिलाफ एक महिला को ही उतार दिया है।
जहां तक तृणमूल कांग्रेस की बात है उसमें ममता के अलावा फिल्मी अभिनेत्री शताब्दी राय मैदान में हैं। डा.काकोली घोष दस्तीदार भी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। कांग्रेस के साथ तालमेल के तहत 28 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी ने पांच महिलाओं को मैदान में उतारा है। ममता कहती हैं कि हमारी कथनी व करनी में फर्क नहीं है। हमारी सूची में लगभग 15 फीसद महिलाओं के नाम हैं। लेकिन वाममोर्चा ने तो आधे फीसद से भी कम महिलाओं को टिकट दिया है। पार्टी की दलील है कि कांग्रेस के साथ तालमेल के बाद दोनों की सूची को जोड़ने पर कुल 42 में से सात सीटों पर महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं। जबकि वाममोर्चे ने इतनी ही सीटों पर दो महिलाओं को टिकट दिया है। यानी हमने मोर्चा के मुकाबले साढ़े तीन गुना ज्यादा महिलाओं को टिकट दिया है।
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