Tuesday, June 2, 2009

सरहद पार कर भूटान तक पहुंची सिंगुर की आंच

हुगली जिले के सिंगुर में बीते साल टाटा मोटर्स की लखटकिया और जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हुए आंदोलन की आंच अब लगता है बंगाल और देश की सरहद पार करते हुए पड़ोसी भूटान तक पहुंच चुकी है। भूटान की राजधानी थिम्फू शहर के आसपास फैले करीब एक सौ किसानों ने अपने खेतों के अधिग्रहण की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए बेहतर मुआवजे की मांग की है। ध्यान रहे कि सरकार ने मुख्य प्रशासनिक भवन ताशीछोजोंग के पीछे धान के 52 एकड़ खेत के अधिग्रहण की योजना बनाई है। लेकिन किसान इसका विरोध कर रहे हैं। हेजो, लांजोपाखा व जिलूखा के किसानों का कहना है कि इसके पहले जो अधिग्रहण हुए हैं उसमें भूमि अधिनियम और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया था।
इसी इलाके के कई किसानों ने अपनी पैतृक जमीन का ज्यादातर हिस्सा बहुत ही सस्ती दर में सरकार को दे दिया है। नेशनल असेंबली, नेशनल काउंसिल, काष्ठ कला, सुप्रीम कोर्ट और गोल्फ कोर्स के लिए सरकार ने चार रुपए प्रति डेसीमल की दर से जमीन ली थी। नेशनल काउंसिल के सांसद सांगे जाम ने कहा कि अगर सर्वेक्षण किया जाए तो पता चलेगा कि इन किसानों के पास अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए इसके सिवा कोई और संपत्ति नहीं है। सांसद ने कहा कि उक्त क्षेत्र को 1994 में थिम्फू थ्रोमदे के अधीन लाया गया था। इसके बावजूद इन किसानों को भवन निर्माण की अनुमति समेत अन्य शहरी सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है।
भूमि अधिग्रहण के मद्देनजर सरकार ने हेजो, लांजोपाखा एवं जिलूखा को निर्माण निषिद्ध क्षेत्र में रख दिया है। इससे राजधानी क्षेत्र में रहने के बावजूद ये इसका व्यावसायिक लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। सांगे जाम का आरोप है कि सरकार इस क्षेत्र के किसानों को 150 भूटानी न्यूट्रान (मुद्रा) प्रति वर्ग फीट की दर से मुआवजा दे रही है जो बाजार दर से बहुत कम है। ये किसान 433 भूटानी न्यूट्रान की दर से मुआवजे की मांग कर रहे हैं जो मुख्य शहर की सरकारी कीमत है। दूसरी ओर, सरकार की दलील है कि उक्त तीन इलाकों को 1986 की थिम्फू विकास योजना के तहत संरक्षित हरित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। किसानों का कहना है कि उक्त इलाके भी मुख्य शहर के तहत ही आते हैं इसलिए सरकार को नई दर के मुताबिक पुनर्वास पैकेज तैयार करना चाहिए था।
किसानों का आरोप है कि सरकार की ओर से पहले अधिग्रहित जमीन अब मंत्रियों एवं वरिष्ठ अधिकारियों के कब्जे में हैं। लेकिन सरकार उनकी जमीन का अधिग्रहण नहीं कर रही है। किसानों का आरोप है कि यह भूमि अधिनियम, 2007 का खुला उल्लंघन है उक्त अधिनियम में साफ कहा गया है कि कोई सरकारी जमीन किसी व्यक्ति विशेष के नाम से हस्तांतरित नहीं की जाएगी। उक्त कानून के तहत अगर शहरी क्षेत्र की जमीन किसानों की एकमात्र संपत्ति है तो इसके बदले वैकल्पिक जमीन के अलावा अतिरिक्त नकद राशि देनी होगी। सांसद के अनुसार सरकार के पास विकल्प के तौर पर कोई अतिरिक्त जमीन नहीं है।
ध्यान रहे कि भूमि अधिनियम में संरक्षित हरित क्षेत्र के अधिग्रहण का कोई प्रावधान नहीं है। किसानों का कहना है कि सरकार एक तरफ तो कहती है कि संबंधित जमीन ऐसे इलाके में है जहां नए निर्माण पर पाबंदी है और इसलिए उसकी कोई कीमत ही नहीं है।
दूसरी ओर वह खुद सुप्रीम कोर्ट भवन का निर्माण करा रही है। किसानों ने दो प्रमुख संवैधानिक सवाल उठाए हैं। पहला यह कि सरकार ने किस अधिकार से उक्त क्षेत्र को संरक्षित हरित क्षेत्र घोषित कर रखा है जबकि यह अधिकार केवल संसद को है। दूसरा सवाल यह है कि भूमि अधिग्रहण में समानता व न्याय के सिद्धांतों का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है। सरकार के इस फैसले से किसानों का भविष्य खतरे में पड़ गया है। इस बारे में निर्माण व बस्ती विकास मंत्री ल्योनपो यीशे जिम्बा का कहना है कि सरकार ने मुआवजे की राशि को 100 नू. को बढ़ाकर 180 नू. कर दिया है। अगर लोग इससे भी संतुष्ट नहीं हैं तो सरकार इस मामले पर पुनर्विचार करना होगा। उनके इस भरोसे के बावजूद किसानों की नाराजगी लगातार बढ़ रही है और वे सिंगुर के किसानों की राह पर चलने का मन बना रहे हैं। जनसत्ता

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