कोलकाता, 31 मार्च। पश्चिम बंगाल में अबकी लोकसभा चुनावों में तमाम राजनीतिक दलों और गठबंधनों के समीकरण उलझे नजर आ रहे हैं। इसकी वजह हैं कि चुनाव मैदान में कूदी ऐसी राजनीतिक पार्टियां जो महज दूसरों का वोट काटने के लिए चुनाव लड़ रही हैं। भाकपा (माले), एसयूसीआई, पीडीएस, जनता दल (यूनाइटेड), राजद, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), समाजवादी पार्टी, ममता के सहयोगी रहे सिद्दीकुल्ला चौधरी की पीडीसीआई और माकपा की सहयोगी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसी कई पार्टियां राज्य में बह रही चुनावी गंगा में हाथ धोने के लिए कूद पड़ी हैं। यह तमाम पार्टियां ऐसी हैं जिनका राज्य में कहीं कोई खास जनाधार नहीं है। लंबे अरसे तक राजग में तृणमूल की सहयोगी रही भाजपा ने भी ममता बनर्जी के रवैए से नाराज होकर सभी सीटों पर उम्मीवार उतारने का फैसला किया है। यह पार्टियां अपने बूते भले ही एक भी सीट नहीं जीत सकें, कुछ सीटों पर यह कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस गठबंधन और सत्तारूढ़ वाममोर्चा का खेल जरूर गड़बड़ा सकती हैं। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता ने माकपा पर जानबूझ कर विपक्ष के वोट काटने के लिए वोटकटवा पार्टियों के अधिक से अधिक उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की साजिश रचने का आरोप लगाया है।
रामविलास पासवान की लोजपा, लालू के राजद व मुलायम की सपा ने राज्य की 42 में से दस-दस लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है तो वामपंथियों की मित्र और तीसरे मोर्चे की एक प्रमुख नेता मायावती यहां सभी 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने का मन बना रही है। राज्य में एसयूसीआई तृणमूल कांग्रेस की सहयोगी है। इस तालमेल के तहत तृणमूल ने एक सीट उसके लिए छोड़ी है। लेकिन एसयूसीआई ने यह कहते हुए नौ सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है कि उसका न तो कांग्रेस के साथ उसका कोई लेना-देना है और न ही तृणमूल के साथ उसके गठजोड़ से। इसी तरह, भाकपा(माले) ने भी सात सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं।
ममता ने कहा है कि माकपा विपक्ष के वोट काटने के लिए बंगाल में वोटकटवा पार्टियों की भीड़ जुटा रही है। उन्होंने आरोप लगाया है कि माकपा नेतृत्व ने भाजपा व बसपा के साथ चुनावी तालमेल किया है। बंगाल में बसपा का कोई जनाधार नहीं है लेकिन माकपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रकाश करात उत्तार प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर बंगाल में सभी 42 संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ाने के लिए तैयारी कर रहे हैं। इसी तरह भाजपा को भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने को कहा गया है। ममता की दलील है कि वोटर वामपंथियों की इस चाल से वाकिफ हैं। वे मतदान के दिन ही इसका जवाब देंगे।
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज हालदार कहते हैं कि बहन जी (मायावाती) ने राज्य की सभी 42 सीटों के लिए उम्मीदवारों की सूची मांगी थी जो उनको भेज दी गई है। उनका कहना है कि हम राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर पंजीकरण के लिए यहां अपने वोट बढ़ाना चाहते हैं। पार्टी ने कहा है कि वह यहां बहुजन समाज के लिए प्रचार करेगी, किसी पार्टी के खिलाफ नहीं। अबकी हमें राज्य में अपने वोट बढ़ने का भरोसा है। बसपा ने वर्ष 2006 के विधानसबा चुनावों में राज्य की 294 में से 128 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। उन सबकी जमानत जब्त हो गई थी और पार्टी को कुल 0.70 फीसद वोट मिले थे। बीते लोकसभा चुनावों में भी पार्टी के 38 उम्मीदवारों को कुल मिला कर 0.21 फीसद वोट मिले थे।
पार्टी ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रही है। हालदार का दावा है कि बंगाल के मुकाबले उत्तर प्रदेश में दलित ज्यादा सुखी हैं। पार्टी के 42 उम्मीदवारों में से 38 अनसूचित जाति व अवुसूचित जनजाति तबके के होंगे और बाकी चार साधारण वर्ग के।
सिंगुर व नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन में सपा तृणमूल के साथ थी। सपा महासचिव अमर सिंह भी ममता के साथ धरना देने के लिए सिंगुर तक गए थे। इसलिए पार्टी तृणमूल से राज्य में कम से कम एक सीट मांग रही थी। लेकिन पार्टी ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। इसलिए सपा ने यहां दस उम्मीदवारों को उतारने का फैसला किया है।
दूसरी ओर, ममता बनर्जी द्वारा लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिए जाने पर पीडीएस ने अपने बूते यादवपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पूर्व माकपा सांसद सैफुद्दीन चौधरी यादवपुर से चुनाव लड़ेंगे। पीडीएस नेता बहुत दिनों ममता के भरोसे बैठे रहे और जब टिकट नहीं मिला तो पार्टी में चौधरी को चुनाव लड़ाने पर सहमति बनी । इस सीट के लिए माकपा के सुजन चक्रवर्ती व तृणमूल कांग्रेस की ओर से गायक कबीर सुमन मैदान में हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रणव मुखर्जी ने हालांकि सैफुद्दीन से अपना नाम वापस लेने की अपील की थी। लेकिन अब तक यह अपील बेअसर ही रही है। ममता ने भाजपा पर भी माकपा की मदद के लिए तमाम सीटों पर चुनाव लड़ने का आरोप लगाया है।
इसबीच, लोकसभा चुनाव में भाकपा (माले) ने राज्य की सात सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पोलित ब्यूरो के सदस्य कार्तिक पाल ने लोकसभा चुनाव लड़ने वाले सात उम्मीदवारों के नामों का एलान करते हुए कहा था कि सिंगुर व नंदीग्राम में सरकारी उत्पीड़न को चुनावी मुद्दा बनाया जाएगा। वाममोर्चा सरकार ने पिछले बत्तीस वर्षों में सर्वहारा वर्ग के विकास के लिए कुछ नहीं किया। आज भी सर्वहारा समाज उपेक्षित है और उसके पास बुनियादी सुविधाएं भी नहीं पहुंची हैं। माले नेता ने कहा कि सत्तारूढ़ दलों के नेता सुविधाभोगी हो गए हैं और उन्हें वामपंथी विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है। पार्टी केन्द्र व राज्य सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ चुनाव प्रचार करेगी। वामो के समर्थन से लगभग पांच वर्षो तक यूपीए सरकार केंद्र में शासन में रही, लेकिन जनहित में विकास के नाम पर एक भी काम नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कांग्रेस व तृणमूल में सीटों पर तालमेल से राज्य का भला नहीं होगा क्योंकि यह तालमेल स्वार्थ पर आधारित है।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीते चुनावी नतीजों से साफ है कि इन दलों के तमाम उम्मीदवार वोटकटवा बन कर ही उभरेंगे। लेकिन जिन सीटों पर हार-जीत का फैसला कुछ हजार वोटों के अंतर से होना हो, वहां यह लोग दूसरों की किस्मत बिगाड़ ही सकते हैं।
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