कोलकाता, 10 मई। पश्चिम बंगाल में 13 मई को अंतिम दौर में होने वाले मतदान के लिए वाममोर्चा और कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस गठबंध की लड़ाई अब गांवों से निकल कर शहरों तक सिमट आई है। आखिरी दौर में ही ममता बनर्जी और मोहम्मद सलीम समेत कई दिग्गज मैदान में हैं। दोनों प्रमुख गठबंधनों में दलों ने अब शहरी वोटरों को लुभाने की होड़ मच गई है। पहले दो दौर के मतदान में अस्सी फीसद वोट पड़ने से चिंतित माकपा ने ममता को उनके दक्षिण कोलकाता संसदीय क्षेत्र में घेरने के लिए अपने स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य समेत पोलितब्यूरो के आधा दर्जन सदस्यों को मैदान में उतार दिया है।
इस अंतिम दौर से पहले दोनों गठबंधनों ने एक-दूसरे पर हमले तेज कर दिए हैं। परिसीमन के बाद महानगर में सीटों की तादाद तीन से घट कर दो रह गई है। इनमें से एक यानी दक्षिण कोलकाता ममता की पारंपरिक सीट है तो कोलकाता उत्तर संसदीय सीट पर माकपा के मोहम्मद सलीम जीत का दावा करते फिर रहे हैं। माकपा नेतृत्व तीसरे दौर की इन 11 सीटों पर खास ध्यान दे रहा है। पार्टी का एक तबका पहले दो दौर में अस्सी फीसद मतदान से चिंतित है। उसका मानना है कि इतना भारी मतदान आमतौर पर सत्ताविरोधी रुझान की वजह से ही होता है। हालांकि वर्ष 2006 के विधानसभा चुनावों में भी भारी मतदान हुआ था और तब वाममोर्चा को रिकार्ड सीटें मिली थीं। लेकिन तब और अब की राजनीतिक परिस्थिति में अंतर है। उस समय विपक्ष बिखरा था और अबकी कांग्रेस और तृणमूल एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं। यही वजह है कि दमदम और बारासात जैसी सीटों पर माकपा जीत के लिए भाजपा की ओर ताक रही है।
तीसरे दौर में भी किसी दल के पास कोई मुद्दा नहीं है। हकीकत तो यह है कि बंगाल में अबकी लोकसभा चुनाव में कोई ठोस मुद्दा ही नहीं उभरा। खेती और उद्योग जैसे मुद्दे तो बीते विधानसभा चुनावों से ही चल रहे हैं। अबकी भी तमाम दलों के लिए यही मुद्दा रहा। अब नंदीग्राम में चुनाव बाद होने वाली हिंसा को कोलकाता में मुद्दा बनाने का प्रयास हो रहा है। लेकिन कोलकाता के वोटरों पर नंदीग्राम का क्या व कितना असर होगा, यह कहना मुश्किल है।
अंतिम दौर में दोनों गठबंधनों के बीच महज सीटों की ही नहीं, बल्कि साख की लड़ाई भी है। इस दौर के मतदान और उसके नतीजों से ही तय होगा कि शहरी लोग आखिर उद्योग और जमीन अधिग्रहण जैसे मुद्दों पर क्या राय रखते हैं। ममता बनर्जी, मोहम्मद सलीम और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के इलाके यादवपुर से मैदान में उतरे सुजन चक्रवर्ती के अलावा डायमंड हार्बर संसदीय सीट से किस्मत आजमा रहे प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सोमेन मित्र जैसे दिग्गज इसी दौर में हैं। यादवपुर नामक विधानसभा सीट से ही मुख्यमंत्री जीतते रहे हैं। इसी नाम से संसदीय सीट भी है। वहां तृणमूल ने गायक कबीर सुमन को मैदान में उतारा है। मुख्यमंत्री का इलाका होने की वजह से इस सीट पर माकपा खास जोर दे रही है। लेकिन दक्षिण कोलकाता में तो पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इलाके में पार्टी के चुनाव अभियान में पोलितब्यूरो के आधा दर्जन सदस्य मैदान में उतर पड़े हैं। इनमें महासचिव प्रकाश कारत, वृंदा कारत, सीताराम येचुरी, वाममोर्चा अध्यक्ष विमान बसु, मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और उद्योग मंत्री निरुपम सेन शामिल हैं।
माकपा की इस कवायद से साफ है कि वह शहरी क्षेत्र के मतदाताओं पर अपनी पकड़ मजबूत करने के प्रति काफी गंभीर है। कोलकाता और आसपास के इलाकों पर पहले तृणमूल की पकड़ काफी मजबूत थी। लेकिन बीते विधानसभा चुनावों में माकपा को इन इलाकों में खासी कामयाबी मिली थी। अंतिम दौर में वह जहां अपनी उस पकड़ को और मजबूत बनाने का प्रयास कर रही है, वहीं तृणमूल कांग्रेस शहरी वोटरों को दोबारा अपने खेमे में खींचने का प्रयास कर रही है। इसलिए पार्टी ने बदलाव का नारा दिया है। लेकिन माकपा के एक नेता कहते हैं कि अंतिम दौर में कुछ नहीं बदलेगा। कोलकाता दक्षिण के अलावा बाकी सभी सीटों पर वाममोर्चा उम्मीदवारों की जीत लगभग तय है।
Wednesday, June 10, 2009
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