कोलकाता, 8 अप्रैल। उत्तर बंगाल के डुआर्स इलाके में लंबे अरसे से बंद चाय बागान, सिर उभारता उग्रवाद और गोरखालैंड आंदोलन के खिलाफ आदिवासियों का प्रतिरोध ही प्रमुख चुनावी मुद्दे के तौर पर उभर रहे हैं। लेकिन इनमें से बंद बागान ही सबसे बड़ा मुद्दा है। जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर संसदीय इलाके में यह मुद्दा निर्णायक साबित हो सकता है। यही वजह है कि तमाम दलों का चुनाव अभियान इसी धुरी पर केंद्रित है। तमाम उम्मीदवार चुनाव जीतते ही इन बंद बागानों को खुलवाने के लंबे-चौड़े दावे करते नजर आ रहे हैं।
जलपाईगुड़ी के डुआर्स इलाके में धीरे-धीरे बंद होते बागान अब चाय के पत्तों के साथ मजदूरों को भी लील रहे हैं। नुकसान के बहाने चार साल पहले बागानों में तालाबंदी का जो दौर शुरू हुआ था उसने अब तक सात सौ से ज्यादा मजदूरों की बलि ले ली है। इलाके में 14 बागान लंबे अरसे से बंद पड़े थे। इनमें से मुश्किल से एक बागान खोला गया है। लेकिन उसकी हालत भी ठीक नहीं है। जो बागान खुले हैं उनमें से भी एक तिहाई बीमार हैं। इलाके के तीन सौ में से लगभग सौ बागान बीमार हैं। उनमें मजदूरों को पूरी मजदूरी तक नहीं मिलती। तीन साल पहले लंबी हड़ताल के बाद न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 47 रुपए की गई थी। पहले यह 45 रुपए थी। मजदूरी कम होने से मजदूरों में भारी असंतोष है। नतीजतन उन बागानों में मारपीट व हिंसा की घटनाएं अब आम ह¨ गई हैं। मजदूरों का आक्रोश जब-तब फूट पड़ता है। दूसरी ओर, बागान मालिकों की दलील है कि चाय उद्योग अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। ऐसे में मजदूरी बढ़ाना उनके लिए संभव नहीं है। बंद बागानों को छोड़ भी दें तो घिसटते हुए चलने वाले बागानों में भी मजदूरों को नियमित तौर पर राशन नहीं मिलता।
अब चाय बागानों में वोट मांगने जाने वाले उम्मीदवारों को मजदूरों के एक ही सवाल का सामना करना पड़ता है-क्या इस बार वोट देने से हमारा बागान खुल जाएगा? हर उम्मीदवार इसका जवाब हां में ही देता है। लेकिन अब मजदूरों का भरोसा तमाम राजनीतिक दलों से उठ चुका है। कालचीनी के पास रायमटांग चाय बागान के एक मजदूर सुरेश मुंडा कहते हैं कि इससे पहले बागान खुलवाने का वादा कर पंचायत और विधानसभा चुनाव में भी नेताओं ने हमसे वोट ले लिया। लेकिन बागान नहीं खुला। वह कहता है कि अबकी ज्यादातर मजदूरों ने वोट नहीं देने का फैसला किया है।
बंद बागानों में मजदूरों का हालत बेहद खऱाब है। बिजली और राशन तो बंद ही है, वहां पीने का साफ पानी तक मुहैया नहीं है। बागान का स्वास्थ्य केंद्र बहुत पहले बंद हो चुका है। नतीजतन छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज के लिए दूर-दराज स्थित कस्बे तक जाना पड़ता है। मजदूर किसी तरह बागान में बची-खुची पत्तियां तोड़ कर उनको किसी फैक्टरी में बेच कर अपना घर चला रहे हैं। ज्यादातर लोग बाहर दैनिक मजदूरी कर किसी तरह पेट पाल रहे हैं। भरपेट भोजन और साफ पानी के अभाव के चलते ज्यादातर मजदूर तरह-तरह की बीमारियों की चपेट में हैं।
डुआर्स के मालबाजार ब्लाक के तहत योगेश चंद्र चाय बागान के मजदूरों ने चाय बागान की समस्याओं के समाधान की मांग में बुधवार से मालबाजार बस स्टैंड के पास अनशन पर बैठ गए हैं। नवबंर, 2007 में प्रबंध ने बिना किसी नोटिस के ही बागान में तालाबंदी का एलान कर दिया और बागान छोड़ कर चला गया। फिलहाल उस बागान में मजदूरों व कर्मचारियों समेत लगभग पांच हजार लोग रहते हैं। बागान में बिजली, राशन व पानी मुहैया नहीं है। प्रशासन से कई बार कहने के बावजूद जब समस्या का कोई समाधान नहीं नजर आया तो चुनाव से पहले मजदूरों ने अनशन करने का फैसला किया है।
इन दोनों (जलपाईगुड़ी व अलीपुरदुआर) संसदीय सीटों पर चाय मजदूरों के वोट निर्णायक हैं। इसलिए तमाम दलों ने अपने घोषणापत्रों में भी बंद बागान खुलवाने का वादा किया है। अलीपुरदुआर संसदीय सीट से आरएसपी उम्मीदवार मनोहर तिर्की भी मजदूरों से बंद बागान खुलवाने का वादा कर रहे हैं। वे मानते हैं कि लंबे अरसे से बागान बंद या बीमार होने की वजह सले विकट हालात में दिन काट रहे मजदूरों में भारी नाराजगी है। मनोहर कहते हैं कि चुनाव के बाद वे इन बागानों का मुद्दा केंद्र सरकार के समक्ष उठाएंगे। जलपाईगुड़ी संसदीय सीट के लिए मैदान में उतरे सुखविलास वर्मा भी यही बात दोहराते हैं।
इलाके में कामतापुरी लिबरेशन आर्गनाइजेशन (केएलओ) समेत माओवादी व कई अन्य उग्रवादी संगठन भी सक्रिय हैं। भूटान से लगी सीमा और घने जंगल की वजह से ऐसे संगठनों के लिए यह इलाका काफी मुफीद है। उल्फा समेत पूर्वोत्तर के कई उग्रवादी संगठन भी केएलओ की सहायता करते रहे हैं। इसके अलावा इलाके के आदिवासियों ने प्रस्तावित गोरखालैंड में डुआर्स इलाके को शामिल करने की मांग के विरोध में बड़े पैमाने पर आंदोलन छेड़ रखा है। इनके संगठन अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद ने लोकसभा चुनाव के बायकाट की अपील की है। मंगलवार को संगठन ने एक चाय बागान में अलीपुरदुआर के आरएसपी उम्मीदवार मनोहर तिर्की की एक जनसभा में खलल डाला। नतीजतन वहां सभा आयोजित नहीं की जा सकी।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इलाके में बंद चाय बागान बीते कुछ चुनावों में सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर उभरा है। हर बार चुनावों के दौरान यह खूब जोर-शोर से उछलता है। लेकिन उसके बाद फिर यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है और मजदूर तिल-तिल कर मरने पर मजबूर हो जाते हैं। अबकी मजदूरों में नाराजगी है। उनकी नाराजगी उम्मीदवारों को भारी पड़ सकती है।
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