कोलकाता, 29 अप्रैल। पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 14 सीटों के लिए गुरुवार को होने वाले मतदान के पहले दौर में तो दागी और बागी उम्मीदवारों का ही बहुमत है। इस दौर में दागी उम्मीदवारों को उतारने के मामले में बंगाल ने देश के बाकी तमाम राज्यों को पीछे छोड दिया है। 14 सीटों के लिए किस्मत आजमा रहे 134 उम्मीदवारों में दो दर्जन दागी हैं। यानी कुल 18 फीसद, जबकि राष्ट्रीय औसत 17 फीसद है। दागियों के अलावा बागी भी इस दौर में निर्णायक साबित हो सकते हैं। इन 24 लोगों में से 14 तो तृणमूल कांग्रेस, फारवर्ड ब्लाक, कांग्रेस, बसपा, भाजपा और झामुमो जैसे पंजीकृत दलों के हैं और बाकी 10 निर्दलीय के तौर पर मैदान में हैं। इनमें से चार को तो सजा भी हो चुकी है। दागियों के मामले में बंगाल जहां राष्ट्रीय औसत से आगे है, वहीं पढ़े-लिखे उम्मीदवारों के मामले में यह उससे पीछे है। देश में ग्रेजुएट उम्मीदवारों का औसत 60 फीसद है, लेकिन बंगाल में यह 55 फीसद ही है।
चुनावों पर नजर रखने वाले गैर-सरकारी व सामाजिक संगठनों के साझा मंच नेशनल इलेक्शन वाच की राज्य शाखा ने दागी उम्मीदवारों के आंकड़े जुटाए हैं। बंगाल शाखा के अध्यक्ष जनरल शंकर राय चौधरी कहते हैं कि हमने तमाम उम्मीदवारों की ओर से दायर हलफनामे के आधार पर उक्त आंकड़े जुटाए हैं। हम लोगों को उम्मीदवारों के हर पक्ष से परिचित कराना चाहते हैं ताकि उनको सही-गलत का चुनाव करने में सहूलियत हो। संगठन ने इन 14 लोकसभा क्षेत्रों के तमाम स्कूलों व कालेजों को पत्र भेज कर पहली बार वोट देने वाले मतदाताओं को इन तथ्यों से अवगता कराने की अपील की है।
दागी उम्मीदवार उतारने के मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) पहले नंबर पर है। उसने सात ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। उसके बाद दो-दो उम्मीदवारों के साथ भाजपा व मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का नंबर है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वाममोर्चा की घटक फारवर्ड ब्लाक की ओर से ऐसे एक-एक उम्मीदवार मैदान में हैं।
शंकर राय चौधरी कहते हैं कि लगभग सभी दलों ने आपराधिक रिकार्ड वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया है। उत्तर बंगाल की जलपाईगुड़ी, रायगंज व कूचबिहार सीटों पर तो तीन-तीन दागी उम्मीदवार हैं। 24 दागी उम्मीदवारों पर हत्या, अपहरण और जबरन वसूली के कुल 45 मामले हैं।
पहले दौर के उम्मीदवारों में से सात की संपत्ति एक करोड़ या उससे ज्यादा है। लेकिन उससे भी अचरज की बात यह है कि नौ उम्मीदवारों ने अपने हलफनामे में कहा है कि उके पास कोई संपत्ति ही नहीं है। बारह उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी संपत्ति 50 लाख से एक करोड़ के बीच है। कुल उम्मीदवारों में से 44 फीसद के पास या तो पैन (परमानेंट अकाउंट नंबर) नहीं है या फिर उन्होंने हलफनामे में इसका ब्योरा नहीं दिया है।
पहले दौर के मतदान में अगर दागी भारी पड़ रहे हैं तो बागी भी उनसे पीछे नहीं हैं। 14 में से ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवारों की हार-जीत में इन बागियों की अहम भूमिका रहने की संभावना है। अलीपुरद्वार संसदीय सीट पर आरएसपी ने अपने सांसद जोयाकिम बाकला का टिकट काटकर पीडब्ल्यूडी राज्य मंत्री मनोहर तिर्की को मैदान में उतारा है। इससे नाराज बाकला आरएसपी से इस्तीफा देकर निर्दलीय ही चुनाव लड़ रहे हैं। उनके साथ सैकड़ों समर्थकों ने भी पार्टी छोड़ दी है। अलीपुरदुआर से लगी कूचबिहार संसदीय सीट पर भी फारवर्ड ब्लाक से हितेन बर्मन को निकाले जाने की वजह से बगावत की स्थिति है। पार्टी का एक बड़ा तबका इससे नाराज है। हितेन बर्मन का टिकट कटने के बाद से अब तक सौ से अधिक समर्थकों ने पार्टी से नाता तोड़ लिया है। रायगंज सीट पर उत्तर दिनाजपुर के तृणमूल कांग्रेस जिला अध्यक्ष अब्दुल करीम चौधरी बागी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं। उनको इस सीट पर पार्टी की ओर टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन तालमेल के तहत यह सीट कांग्रेस की झोली में चली गई। इससे नाराज अब्दुल करीम चौधरी ने तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व से बगावत करते हुए अपनी उत्तर बंगाल विकासगामी पार्टी बना ली है और निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां से केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी के बदले कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही दीपा दासमुंशी को चौधरी की बगावत भारी पड़ सकती है। उससे सटी बालूरघाट सीट पर भी आरएसपी का उम्मीदवार बदलने की वजह से बगावत की हालत है। यह तो हुई प्रमुख सीटों की बात। इनके अलावा भी कई सीटें बगावत की चपेट में हैं। यानी बंगाल में पहले दौर के मतदान में दागी और बागी उम्मीदवार ही सब पर भारी पड़ रहे हैं।
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