Wednesday, June 10, 2009

बागी व भितरघाती ही बने सबसे बड़ा खतरा

कोलकाता,29 अप्रैल। पश्चिम बंगाल में 30 अप्रैल को पहले चरण के दौरान जिन 14 लोकसभा सीटों पर वोट पड़ेंगे, उनमें से आठ उत्तर बंगाल में हैं। उन आठों सीटों पर मैदान में उतरे उम्मीदवारों के लिए भितरघाती ही सबसे बड़े खतरे के तौर पर उभरे हैं। वामपंथी दलों के अलावा कांग्रेस और भाजपा भी इन भितरघातियों से अछूती नहीं हैं। ऐसे में लगभग सभी सीटों पर वजनी उम्मीदवारों को भी दूसरे मुद्दों के अलावा अपने लोगों की बगावत व भितराघात से भी जूझना पड़ रहा है। अबकी इन आठ सीटों पर भितरघाती ही अहम भूमिका निभाएंगे।
इन सीटों पर जिनको टिकट मिला वे तो कड़ी धूप में अपना पसीना बहाते हुए चुनाव प्रचार में जुटे हैं, लेकिन जिनको टिकट नहीं मिला उनमें काफी नाराजगी है और वे पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव में मजा चखाने पर तुले हुए हैं। कुछ तो खुलकर अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ हो गये हैं। मालदा कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर शुरू से ही एबीए गनी खान चौधरी परिवार का कब्जा रहा है। इस बार परिसीमन के चलते मालदा जिले में दो सीटें हो गई हैं-दक्षिण मालदा व उत्तर मालदा। उत्तर मालदा सीट पर कांग्रेस ने सुजापुर की विधायक मौसम बेनजीर नूर को उम्मीदवार बनाया है। मौसम नूर एबीए गनी खान चौधरी की भांजी हैं। इस सीट पर एबीए गनी खान चौधरी के छोटे भाई अबू नासेर खान कांग्रेस का टिकट मांग रहे थे, मगर उनकी राह में दोहरी नागरिकता का मामला रोड़ा बन गया। इससे उनके समर्थक नाराज हो गए और यहां तक एलान कर दिया कि मौसम नूर को चुनाव प्रचार तक करने नहीं देंगे। अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी ने यह विवाद भले ही सुलझा दिया है, फिर भी 'हाथ मिला है दिल नहीं' की स्थिति बरकरार है और नासेर खान के समर्थक भितरघात में जुटे हुए हैं।
है। इस भितरघात का असर दक्षिण मालदा में भी नजर रहा है, क्योंकि इस सीट पर भी एबीए गनी खान चौधरी एक अन्य छोटे भाई अबु हासेम खान चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं। रायगंज लोकसभा क्षेत्र में भी यही स्थिति है। यहां तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन के चलते ही कांग्रेस में भितरघात की शुरूआत पड़ी है। ऐसे में रायगंज में दीपा को बगावत और भितरघात का सामना करना पड़ रहा है।
दक्षिण दिनाजपुर जिले की बांग्लादेश से लगी बालुरघाट संसदीय सीट पर भी माकपा व आरएसपी में अंत‌र्द्वंद है। बीते साल हुए पंचायत चुनाव के दौरान दोनों दलों में झड़प भी हुई थी, जिसमें आरएसपी के पंचायत अध्यक्ष जेड रहमान समेत कई नेता घायल हुए थे। उसका भी असर इलाके में वाममोर्चा के अभियान पर नजर आ रहा है।
जलपाईगुड़ी संसदीय क्षेत्र में भी कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस में मतभेद है। यहां कांग्रेस उम्मीदवार सुखविलास बर्मन के चुनाव अभियान को तृणमूल कांग्रेस का समर्थ नहीं मिल रहा है। इसी तरह आपसी मतभेद के बाद कामतापुर प्रोग्रेसिव पार्टी व कामतापुर पीपुल्स पार्टी ने अपने अलग-अलग उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। कामतापुर पीपुल्स पार्टी के समर्थन से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने नीरेंद्र नाथ दास को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि कामतापुर प्रोग्रेसिव पार्टी के उम्मीदवार हैं पृथ्वीराज राय। लंबे समय से एकजुट होकर कामतापुर राज्य व भाषा की मांग करते आ रहे इन दलों के मतभेद का फायदा विपक्ष को मिलना तय है।
जलपाईगुड़ी जिले में असम व भूटान की सीमा से सटी इसी सीट पर तृणमूल कांग्रेस का एक खेमा अ‌र्घ्य राय को टिकट देने से नाराज चल रहा है, क्योंकि उनके पिता फारवर्ड ब्लाक समर्थक हैं।
दार्जिलिंग में जसंवत सिंह पर भी बाहरी होने का आरोप लग रहा है। भाजपा ने पहले इस सीट पर दावा शेरपा को अपना उम्मीदवार बनाया था। बाद में गोरखा मोर्चा से समझौता होने पर उसने जसवंत सिंह को मैदान में उतारा। इससे भाजपाई खेमे में नाराजगी है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि उत्तर बंगाल में हर पार्टी बागियों व भितरघातियों से परेशान है। कहीं कोई किसी का टिकट मिलने से परेशान है तो कहीं किसी का टिकट कटने से। ऐसे में इन आठ सीटों के चुनावी नतीजों में बागी और भितरघाती ही अहम भूमिका निभाएंगे।

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