Tuesday, June 2, 2009

वहां धडल्ले से चलती है भूटानी मुद्रा


उत्तर बंगाल के डुआर्स इलाके में पहले माओवादियों की सक्रियता, फिर कामतापुरी और गोरखालैंड आंदोलन के बाद अब भूटानी मुद्रा न्यूट्रान का बढ़ता प्रचलन राज्य की वाममोर्चा सरकार के लिए भारी सिरदर्द बनता जा रहा है। यह इलाका भूटान से सटा है। भूटान के प्रवेश द्वार जयगांव में तो बैंकों के सिवा कहीं भारतीय मुद्रा देखने तक को नहीं मिलती। भूटानी मुद्रा की कीमत भारतीय रुपए के बराबर ही है। इलाके में भारतीय मुद्रा की भारी कमी ने आम लोगों और व्यापारियों को भूटानी मुद्रा की शरण में जाने पर मजबूर कर दिया है। बाजार में प्रचलित करोड़ों रुपए की भूटानी मुद्रा इलाके की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन गई हैं। मजे की बात यह है कि पुलिस व प्रशासन के जिन लोगों पर इसके रोकथाम की जिम्मेवारी है वे भी भूटानी मुद्रा का बेहिचक इस्तेमाल करते हैं। जयगांव थाने के एक अधिकारी कहते हैं कि ऊपर से किसी निर्देश के बिना हम किसके खिलाफ कार्रवाई करें। और फिर इलाके में भारतीय नोट तो जैसे गायब हो गए हैं। खुले पैसों की भी भारी किल्लत है। जबकि दूसरी ओर भूटानी मुद्रा काफी तादाद में उपलब्ध है।
पहले भूटानी मुद्रा का प्रचलन सीमा पर बसे जयगांव और आसपास के इलाकों तक ही सीमित था। लेकिन अब जिला मुख्यालय जलपाईगुड़ी तक धड़ल्ले से इनका लेन-देन होता है। जिला मुख्यालय से आगे बढ़ते ही भारतीय मुद्राएं दुर्लभ हो जाती हैं। बसों से लेकर चाय की दुकानों तक हर जगह भूटानी मुद्रा में ही लेन-देन होता है। जिले के अलीपुरद्वार सबडिवीजन में तो भारतीय मुद्रा के बारे में कहा जाता है कि ढूंढ़ते रह जाओगे। इलाके में बीरपाड़ा, बानरहाट, फालाकाटा, धूपगुड़ी और मालबाजार जैसे कस्बों में भी यही स्थिति है। हालत यह है कि डुआर्स इलाके के कई चाय बागानों में कर्मचारियों और मजदूरों को वेतन का भुगतान भी भूटानी मुद्रा में ही किया जाता है।
कानूनी नजरिए से यह भले गैरकानूनी हो, इलाके को लोगों के लिए यह आम बात है। कालचीनी के एक व्यापारी श्यामल राय कहते हैं कि यहां बैंकों में हमेशा छोटे नोटों की भारी किल्लत रहती है। ऐसे में भूटानी मुद्रा नहीं लें तो हमारा कारोबार ही चौपट हो जाएगा। वे अपने बच्चों की स्कूल फीस भी भूटानी मुद्रा में ही जमा करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इलाके के लोग या दुकानदार मैले-पुराने भारतीय नोट लेने में तो हिचकते हैं लेकिन भूटानी मुद्रा चाहे कितनी भी पुरानी हो,उसे लेने में कोई आनाकानी नहीं करता। इसकी वजह यह है कि पुराने भारतीय नोट बैंक वाले भी नहीं लेते जबकि पुरानी भूटानी मुद्रा के बदले भूटान के बैंक तुरंत नए नोट दे देते हैं। भूटानी चवन्नी, अठन्नी या दूसरे सिक्के भी काफी तादाद में बाजार में उपलब्ध हैं।
भूटान स्थित शिविरों से पहले सक्रिय पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुट भी इलाके में अपहरण के बाद भूटानी मुद्रा में ही फिरौती लेते थे ताकि कहीं कोई खतरा नहीं हो। इन रुपयों को वे भूटान स्थित बैंकों में जमाकर मनचाही जगह भेज देते थे।
परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, इन इलाकों में बड़े पैमाने पर भूटानी मुद्रा के प्रचलन से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो रहा है, यह बात जिला प्रशासन के आला अधिकारी भी बेहिचक कबूल करते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए यहां लंबे समय से एक विदेशी मुद्रा खोलने की मांग उठती रही है। इस समस्या की गंभीरता से वाकिफ जिला प्रशासन ने केंद्र व राज्य सरकार को कई बार इसकी जानकारी दी है लेकिन दोनों सरकारें इस ओर से उदासीन बैठी हैं।
भारतीय मुद्रा की कमी को ही इन इलाकों में भूटानी मुद्रा के बढ़ते प्रचलन की मुख्य वजह माना जाता है. लेकिन जिला प्रशासन मानता है कि कुछ लोग जानबूझकर भूटानी मुद्रा के प्रचलन को बढ़ावा दे रहे हैं। कालचीनी में लंबे अरसे तक बीडीओ रहे स्वपन कुंडू बताते हैं कि इस समस्या पर अंकुश लगाने की प्रशासन की तमाम कोशिशें अब तक नाकाम ही रही हैं। यही नहीं, विदेशी मुद्रा विनिमय केंद्र खोलने के लिए भी सरकार अब तक कोई ठोस पहल नहीं कर सकी है।
दूसरी ओर, रिजर्व बैंक के सूत्रों ने कोलकाता में बताया कि इस संकट पर काबू पाने के लिए डुआर्स इलाके में स्थित बैंकों की सभी शाखाओं को पर्याप्त मात्रा में नोट भेजे जा रहे हैं। बैंक की ओर से एक पत्र भेजकर जलपाईगुड़ी जिला प्रशासन को भी इसकी जानकारी दी गई है। लेकिन वर्षों की आदत छोड़कर लोग न्यूट्रान से रुपए की ओर लौटेंगे, इसकी उम्मीद कम ही है।

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