पश्चिम बंगाल में सत्तारुढ़ वाममोर्चा ने रविवार को यहां एक रैली के जरिए अपना अब तक का सबसे कठिन चुनाव अभियान शुरू किया। इससे पहले कभी किसी चुनाव के पहले मोर्चा को इतनी प्रतिकूल परिस्थितियों से नहीं जूझना पड़ा था। अभियान तो हर बार वह सबसे पहले शुरू करता था, लेकिन सिंगुर, नंदीग्राम, गोरखालैंड आंदोलन, लालगढ़, बीते साल हुए पंचायत चुनावों के नतीजे जैसे मुद्दों व सवालों से घिरे मोर्चा ने अबकी इनकी काट के तौर पर ही ब्रिगेड में रिकार्ड भीड़ जुटा कर अपना अभियान शुरू किया। मोर्चा इस आम चुनाव से पहले जिन समस्याओं से घिरा है, उसमें विपक्ष की बजाय उसी का हाथ ज्यादा है। यानी ज्यादातर मुसीबतें उसने खुद ही पैदा की हैं। मोर्चा के सबसे बड़े व ताकतवर घटक माकपा ने ही उसे लालगढ़ और गोरखा बनाम आदिवासी के झगड़े में फंसाया है।
सिंगुर से पहले तक जिस राज्य में औद्योगिकीकरण अबियान की धूम मची थी, वहां अब इसका कोई नामलेवा तक नहीं मिल रहा है। सिंगुर से टाटा मोटर्स के कामकाज समेटने के बाद यह मुद्दा लगभग ठप हो गया है। वैसे, मोर्चा ने इससे पांव पीछे नहीं खींचे हैं। लोकसभा चुनावों में औद्योगिकीरकरण भी उसका एक अहम मुद्दा बनने जा रहा है। सिंगुर, लालगढ़, गोरखालैंड और दिनहाटा में पुलिस फायरिंग जैसे मुद्दों पर मोर्चा के घटक दलों के बीच भी मतभेद उभरे। लेकिन इससे माकपा की नीतियों पर कोई अंतर नहीं पड़ने वाला। दरअसल, मोर्चा का मतभेद कागजी ही होता है। घटक दलों के नेता मीडिया में तो अपने मतभेदों के बारे में टिप्पणी करते हैं, लेकिन वाममोर्चा की बैठक में माकपा की घउड़की के आगे वे मुंह नहीं खोल पाते।
माकपा और मोर्चा का शीर्ष नेतृत्व उक्त मुद्दों के असर को लेकर चिंतित है। विपक्ष उसकी चिंता का विषय नहीं है। वह (विपक्ष) तो खुद राज्य में बिखराव का शिकार होकर एका और चुनावी तालमेल का बेसुरा राग अलाप रहा है। वामपंथियों की चिंता यह है कि अपने काडरों की गलतियों की वजह से उसने नंदीग्राम व लालगढ़ जैसे जो भस्मासुर पैदा किए हैं, उनका लोकसभा चुनावों पर क्या असर पड़ेगा। बीते पंचायत चुनावों और नंदीग्राम विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के नतीजों ने काफी हद तक भविष्य का संकेत तो दे ही दिया है। लेकिन अब मोर्चा नेतृत्व इसकी काट की तलाश में जुटा है। दागी नेताओं के चलते चुनावी नतीजों पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर को ध्यान में रखते हुए ही माकपा ने अभकी कोई एक दर्जन से ज्यादा नए चेहरों को टिकट देने का फैसला किया है। पार्टी के उम्मीदवारों की सूची भी जल्दी ही जारी कर दी जाएगी।
तीन महीने से ज्यादा बीत जाने के बावजूद लालगढ़ में बारूदी सुरंग के विस्फोट से शुरू हुई समस्या खत्म होने के बावजूद लगातार उलझती ही जा रही है। बीते दिनों माकपा नेता की शव यात्रा के दौरान हुई फायरिंग में तीन लोगों की मौत ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है। इसके अलावा दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग में साल भर से जारी आंदोलन की लपटें अब डुआर्स व तराई के मैदानी इलाकों तक भी पहुंचने लगी हैं। इलाके में हिंसा, आगजनी व बंद तो अब आम हो गया है। इसी शनिवार को बंद के दौरान गोरखालैंड समर्थकों व विरोधियों के बीच हुई हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई। आंदोलन की अगुवाई करने वाले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के बीच हुई हालिया बैठक बेनतीजा रहने के बाद यह समस्या और गंभीर रूप ले रही है।
इन तमाम समस्याओं से निपट कर अपना अभियान बेहतर तरीके से चलाने के मकसद से ही माकपा ने पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु की भी सहायता ली है। अपनी बढ़ती उम्र व बिगड़ते स्वास्थ्य की वजह से बसु अब पार्टी के कार्यक्रमों में शिरकत नहीं करते। लेकिन रैली के एक दिन पहले मोर्चा ने उनसे बयान जारी करा दिया। इस बयान में बसु ने विपक्षी दलों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि बंगाल में जो वाममोर्चा का विरोध कर रहे हैं, उनके पास न तो कोई योजना है और न कोई नीति। वे सत्ता में आने के लिए बन्दूक का सहारा ले रहे हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए प्रदेश के राजनेताओं और आमलोगों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा है कि सरकार बंगाल में लगातार विकास कार्य कर रही है। लेकिन प्रमुख विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस विकास विरोधी है। बसु ने कहा है कि विकास कार्यो में बाधा डालकर बंगाल और इसके लोगों का नुकसान किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव में वाममोर्चा को जिताने की अपील करते हुए उन्होंने लोगों से एक जिम्मेदार पार्टी को वोट देने को कहा है। उन्होंने कहा कि विरोधियों के पास कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। उनके पास नैतिकता और सिद्धांत का भी अभाव है। बसु ने राज्य सरकार की औद्योगिकीरण की नीति का समर्थन करते हुए कहा है राज्य में विकास के लिए उद्योगों की स्थापना जरूरी है। उद्योगों से ही युवकों को रोजगार मिलेगा। राज्य में कृषि के साथ उद्योग का भी विकास किया जाएगा।
दूसरी ओर, आम चुनावों से पहले सरकारी कर्मचारियों को अपने पाले में करने के लिए सरकार ने कर्मचारियों को महंगाई भत्ते की एक और किश्त देने का तो एलान किया ही है, छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी अगले वित्त वर्ष से लागू करने की बात कही है।
राज्य के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता के मुताबिक यह छह फीसदी महंगाई भत्ता एक मार्च से लागू होगा। इससे राज्य सरकार पर मौजूदा वित्त वर्ष में 63 करोड रूपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। सरकार ने छठे वेतन आयोग की सिफारिश भी पहली अप्रैल से लागू करने का भरोसा दिया है। सरकार पहले ही कह चुकी है कि आयोग मूल वेतन में 30 फीसदी से ज्यादा वृद्धि की सिफारिश करेगा।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि वाममोर्चा संगठन और सरकार के स्तर पर तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए ठोस कदम उठा रहा है। लोकसभा चुनावों में उसके यह उपाय कितने कारगर होंगे, यह तो बात में पता चलेगा। लेकिन अपनी रिकार्ड रैली के जरिए महानगर को अस्त-व्यस्त करते हुए उसने सबसे पहले अपना चुनाव अभियान तो शुरू कर ही दिया है।
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