Wednesday, June 10, 2009

लेकिन सिंगुर में मुद्दा नहीं है लखटकिया

सिंगुर (हुगली), 3 मई। पश्चिम बंगाल के बाकी इलाकों में अबकी लोकसभा चुनाव भले नैनो के मुद्दे पर लड़ा जा रहा हो, टाटा मोटर्स की यह लखटकिया उस सिंगुर में ही मुद्दा नहीं है जहां इसका उत्पादन होना था। सुन कर आश्चर्य जरूर हो सकता है, लेकिन यही हकीकत है। नैनो और सिंगुर के एक-दूसरे का पर्याय बनने के बावजूद इलाके में नैनो नहीं बल्कि खेती बनाम विकास ही सबसे प्रमुख चुनावी मुद्दा है। इलाके के लोगों की खामोशी ने नैनो परियोजना को अपने-अपने पक्ष में भुनाने के प्रयास करने वाली माकपा और तृणमूल कांग्रेस, दोनों को असमंजस में डाल दिया है। इलाके की सीटों पर दूसरे दौर में सात मई को मतदान होना है।
सिंगुर इलाके में दोनों राजनैतिक दल-माकपा और कांग्रेस नैनो को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं। माकपा टाटा परियोजना के इलाके से जाने के मुद्दे पर तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी को उद्योगविरोधी बताने का प्रयास कर रही है। लेकिन तृणमूल इस बात का प्रचार कर रही है कि अगर राज्य सरकार ने राजभवन में हुए समझौते का उल्लंघन नहीं किया होता तो सिंगुर का सपना नहीं टूटता। इलाके में चुनावों की खास गहमा-गहमी नहीं है। दूसरे इलाकों की तरह यहां पोस्टर-बैनर भी नहीं नजर आते। जमीन अधिग्रहण के खिलाफ ममता की अगुवाई में जोरदार आंदोलन के जरिए दुनिया भर में सुर्खियां बटोरने वाले स्थानीय किसानों की अब इस परियोजना में दिलचस्पी लगता है खत्म हो चुकी है।
दरअसल, इस खामोशी की एक ठोस वजह भी है। परिसीमन ने दूसरे इलाकों की तरह सिंगुर के समीकरण भी बदल दिए हैं। इलाके में अधिग्रहणविरोधी आंदोलन की धुरी रहे कमारकुंडू, गोपालनगर व दोलुईगाछा ग्राम पंचायतों को हुगली संसदीय सीट से निकाल कर आरामबाग सीट के तहत शामिल कर दिया गया है। इससे इलाके में तृणमूल कांग्रेस के आंदोलन की हवा निकल गई है। परिसीमन के पहले बीते साल हुए पंचायत चुनावों में माकपा को पटखनी देते हुए तृणमूल ने इलाके की 16 में से 15 पंचायतों पर कब्जा कर लिया था।
अब जिन तीनों ग्राम पंचायतों के तहत सिंगुर परियोजना लगनी थी, वहां के लोग भी कहते हैं कि गतिरोध दूर कर टाटा मोटर्स को यहां परियोजना लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए। बेराबाड़ी के गौतम सामंत, जिन्होंने नैनो परियोजना के लिए अपनी जमीन दी थी, कहते हैं कि हमें अब भी टाटा की वापसी की उम्मीद है। शायद चुनावों के बाद यह समस्या दूर हो जाए। वे कहते हैं कि परियोजना शुरू होने पर कम से कम छह हजार लोगों को रोजगार मिलता। आंदोलन वाले इलाकों के माकपा के गढ़ आरामबाग में शामिल होने के बाद लोग परियोजना के पक्ष में गोलबंद होने लगे हैं। लोगों का मूड भांप कर ही अब तृणमूल ने भी अपनी रणनीति में बदलाव लाते हुए खेती, रोजगार और उद्योगों की जरूरत पर जोर देते हुए नए पोस्टर लगाए हैं। आंदोलन खत्म होने के बाद ममता बनर्जी समेत तृणमूल का कोई भी बड़ा नेता इलाके में चुनाव प्रचार करने नहीं आया है।
माकपा उम्मीदवार इस मौके का फायदा उटाने में जुटे हैं। हुगली के पार्टी उम्मीदवार रूपचंद पाल और आरामबाग के शक्तिमोहन मल्लिक अपने अभियान में लोगों से वादा कर रहे हैं कि चुनाव बाद वे टाटा मोटर्स को दोबारा सिंगुर ले आएंगे। इसके लिए वे परियोजना स्थल की जमीन की लीज के करार के नवीनीकरण का हवाला दे रहे हैं। टाटा ने हाल में एक साल के लिए यह लीज बढ़ाई है। दूसरी ओर, हुगली की तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार रत्ना दे नाग भी उद्योगों की जरूरत पर जोर देते हुए कहती है कि सिंगुर में नए उद्योग लगने चाहिए। लेकिन इसके लिए सरकार को पहले एक ठोस नीति बनानी चाहिए। आरामबाग के कांग्रेस उम्मीदवार शंभुनाथ मल्लिक भी रत्ना का समर्थन करते हुए कहते हैं कि इलाके में कोई उद्योग नहीं है। यहां टाटा जैसे बड़े घरानों की जरूरत है। लेकिन सरकार को उद्योगों के लिए जमीन देने वाले किसानों की समस्या का भी ध्यान रखना चाहिए।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि टाटा मोटर्स के इलाके से कामकाज समेटने और परिसीमन के चलते संसदीय क्षेत्र का भूगोल बदलने के बाद तमाम दलों के समीकरण गड़बड़ा गए हैं। यही वजह है कि अब यहां मुद्दा नैनो नहीं बल्कि खेती बनाम विकास है।

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