Tuesday, June 16, 2009

अपनी ही दवा कड़वी लग रही है माकपा को

पश्चिम बंगाल में माकपा को अब अपनी ही दवा कड़वी लग रही है। हथियारों के जोर पर इलाकों पर कब्जे की जिस लड़ाई की शुरूआत उसने की थी वह अब उसे बहुत भारी पड़ रही है। अब जब विपक्ष ने उसे उसी की भाषा में जवाब देना शुरू किया है तो कामरेडों को जान के लाले पड़ गए हैं और अपने सबसे मजबूत गढ़ रहे लालगढ़ और खेजुरी इलाकों से उनका पलायन शुरू हो गया है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल में शुरू हुई राजनीतिक हिंसा थमने की बजाय लगातार तेज होती जा रही है।
बीते खास कर एक सप्ताह के दौरान पूर्व मेदिनीपुर जिले के खेजुरी और पश्चिम मेदिनीपुर जिले के लालगढ़ में तो हालात बेकाबू नजर आ रहे हैं। हाल तक माकपा के गढ़ रहे इन दोनों इलाकों में इस हिंसा के निशाने पर अबकी माकपाई ही हैं। अब अपने इस गढ़ से माकपाई बोरिया-बिस्तर समेट कर भाग रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे दो साल पहले नंदीग्राम से तृणमूल कांग्रेस समर्थकों को भाग कर अपनी जान बचानी पड़ी थी।
बीते महीने भर से होने वाली हिंसा में माकपा और तृणमूल दोनों दलों के दो दर्जन से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। खेजुरी में यह हिंसा इलाके पर पुनर्दखल की लड़ाई का नतीजा है। खेजुरी में तृणमूल कांग्रेस समर्थकों की गिरफ्तारी के विरोध में स्थानीय लोगों ने पुलिसवालों का सामाजिक बायकाट शुरू कर दिया है तो लालगढ़ में माओवादियों ने पुलिस व प्रशासन को सरेआम चुनौती दे दी है। रविवार को लालगढ़ में माकपा के तीन नेताओं की हत्या हो गई। पुलिस अत्याचार विरोधी समिति के समर्थकों ने माकपा के एक स्थानीय नेता के आलीशान मकान में जम कर तोड़फोड़ की।
माकपा ने नवंबर, 2007 में जब हथियारों के जोर पर नंदीग्राम पर दोबारा कब्जा जमाया था तब उसने कल्पना तक नहीं की होगी कि एक दिन खेजुरी से उसके नेताओं व काडरों को जान बचा कर भागना पड़ेगा। बंदूक के जोर पर इलाके के पुनर्दखल के जिस खेल की शुरूआत माकपा ने की थी अब वही उसे महंगा पड़ रहा है। नंदीग्राम के पुनदर्खल के समय मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य तक ने काडरों की उस कार्रवाई का यह कह बचाव किया था कि उनलोगों (विपक्ष) को उनकी ही भाषा में जवाब दिया गया है। तब उनकी इस टिप्पणी की काफी आलोचना हुई थी। वैसे, बाद में भट्टाचार्य ने यह कहते हुए उस बयान के लिए माफी मांग ली थी कि वे मुख्यमंत्री होने के साथ ही माकपा के नेता भी हैं। यानी उन्होंने वह बयान पार्टी के दबाव में दिया था।
वैसे, बंगाल में लाठी के जोर पर इलाकों पर कब्जे की लड़ाई कोई नई नहीं है। इसकी शुरूआत का सेहरा माकपा के सिर पर ही है। कोई दस साल पहले उसने मेदिनीपुर जिले के केशपुर से इसकी शुरूआत की थी। इसलिए यह महज संयोग नहीं है कि अब उसी मेदिनीपुर (जो अब पूर्व और पश्चिम में बंट गया है), में उसके पैरों तले की जमीन तेजी से खिसक रही है। माकपा को अब अपनी ही दवा कड़वी लग रही है।
नंदीग्राम आंदोलन के दौरान भी खेजुरी माकपा का सबसे मजबूत गढ़ था। तृणमूल के खिलाफ जवाबी हमले वहीं से होते रहे थे। अभी बीते सप्ताह माकपा के तीन नेताओं के घर से भारी तादाद में हतियार बरामद होना अपनी कहानी खुद कहता है। हालांकि माकपा ने उन तीनों से कोई संबंध होने से इंकार कर दिया है। लेकिन इलाके के लोग तो जानते ही हैं कि वहां कौन किस पार्टी का है। अब इस राजनीतिक हिंसा के सवाल पर तृणमूल कांग्रेस और माकपा के बीच शह और मात का खेल चल रहा है। और इसमें कोई शक नहीं है कि इस खेल में अब तक तृणमूल प्रमुख और रेल मंत्री ममता बनर्जी ही भारी पड़ रही हैं।
इसबीच, तृणमूल प्रमुख और रेल मंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र से बंगाल में शांति व सुरक्षा बहाल करने में दखल देने की अपील की है। सोमवार को राज्यपाल डा. गोपाल कृष्ण गांधी से भेंट कर उन्होंने राज्य की कानून व व्यवस्था की स्थिति से उन्हें अवगत कराया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में सरकार प्रायोजित आतंक जारी है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को हालात सुधारने तथा शांति व व्यवस्था की बहाली की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ममता ने राज्यपाल को बताया कि चुनाव के बाद पार्टी के 23 कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है। बंगाल में लगातार हिंसक वारदातें हो रही हैं और लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सत्तारूढ़ माकपा के समर्थकों का अत्याचार लगातार बढ़ रहा है और हालात को काबू करने में सरकार व प्रशासन नाकाम रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को अवैध हथियारों को जब्त करने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए। इन हथियारों के बूते ही हिंसा हो रही है। वैसे, राज्यपाल ने बीते सप्ताह ही इस राजनीतिक हिंसा पर गहरी चिंता जताई थी।
दूसरी ओर, सोमवार को वाममोर्चा विधायकों की बैठक में मुख्यमंत्री को भी विधायकों के सवालों का जवाब देना मुश्किल हो गया। विधायकों का कहना था कि माकपा के लोगों की चुन-चुन कर हत्याएँ की जा रही हैं। लेकिन पुलिस दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय हाथ पर हाथ धरे बैठी है। विधायकों ने भट्टाचार्य से पुलिस को और सक्रिय करने को कहा। मुख्यमंत्री ने विधायकों को कार्रवाई का भरोसा दिया और साथ ही संयम बरतने की सलाह दी। बुद्धदेव का कहना था कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले विपक्ष जानबूझ कर हिंसा व आतंक फैलाने का प्रयास कर रहा है। इसलिए उसकी चाल में फंसने की बजाय हमें संयम से काम लेना चाहिए।
उधर, लालगढ़ में हालात खराब होते जा रहे हैं। माकपा और आदिवासियों के बीच शुरू हुई जंग अब पूरी तरह से हिंसक हो गई है। आदिवासियों ने सोमवार को माकपा के कार्यालय में तोड़फोड़ की और रामगढ़ पुलिस चौकी में आग लगा दी।
वहां आदिवासियों ने माकपा को खुली चुनौती दे दी है। वहीं गुस्साए आदिवासियों के आगे सीपीएम कार्यकर्ता बेबस नजर आ रहे हैं। पुलिस से नाराज आदिवासियों ने एक चौकी को भी फूंक डाला। कभी ये माकपा का गढ़ हुआ करता था लेकिन अब माकपाई यहां से भागने में ही भलाई मान रहे हैं।
बीते तीन दिनों से आदिवासियों और माकपाइयों के बीच इलाके पर कब्जे को लेकर बवाल चल रहा है। पुलिस भी इन आदिवासियों के सामने लाचार नजर आ रही है। माकपा नेताओं व कार्यकर्ताओं की हत्या से आंतकित होकर कामरेडों ने इलाके से पलायन शुरू कर दिया है। बीनपुर माकपा जोनल समिति के सचिव अनुज पांडेय ने कहा कि लालगढ़ इलाके में माकपा नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इससे आतंकित होकर पार्टी के नेता व कार्यकर्ता सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर रहे है। उन्होंने आरोप लगाया है कि इलाके में आतंक का पर्याय बने माओवादी एवं पुलिस अत्याचार प्रतिरोध समिति के लोगों ने माकपा के स्थानीय नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के 11 लाइसेंसी बंदुकें भी छीन ली हैं। दूसरी ओर समिति के नेता छत्रधर महतो ने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा है कि समिति नहीं बल्कि माकपाई ही इलाके में आतंक फैला रहे हैं।
माकपा की बेलाटीकरी स्थानीय समिति के सचिव चंडी करण ने रविवार को इलाके में हुई हिंसा में माकपा के तीन लोगों की मौत की पुष्टि की है। उन्होंने आरोप लगाया कि इलाके में माओवादियों के साथ मिलकर पुलिस अत्याचार विरोधी समिति माकपा समर्थकों को चुन-चुनकर मार रही है।
अब माओवादियों ने एक कदम आगे बढकर राज्य स्तर पर पुलिस व प्रशासन के बायकाट का एलान किया है।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इलाके में अपना राजनीतिक बर्चस्व बहाल करने की इस लड़ाई में माकपा के पांव उखड़ रहे हैं। अगर सरकार ने खेजुरी व लालगढ़ में सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में ठोस पहल नहीं की तो यह दोनों इलाके नंदीग्राम में बदल सकते हैं।

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