Tuesday, June 2, 2009

जमीन ने खींची पैरों तले की जमीन

अबकी लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में जमीन के मुद्दे ने ही वामपंथियों के पैरों तले की जमीन खींच ली। नतीजों के विश्लेषण और आत्ममंथन के बाद अब पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने भी यह बात कबूल कर ली है। वाममोर्चा के घटक दल तो नतीजों के बाद से ही खुलेआम हार के लिए माकपा की नीतियों को ही जिम्मेवार ठहरा रहे हैं। यही वजह है कि राज्य सरकार ने अब जमीन अधिग्रहण के तमाम प्रस्तावों को लाल झंडी दिखा दी है। चुनावी नतीजों से सबक लेते हुए मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उद्योग मंत्री निरुपम सेन को उस बोर्ड से हटा दिया है जो राज्य में उद्योगों के लिए जमीन की पहचान किया करता था। वाममोर्चा सरकार ने अपने 32 वर्षों के शासनकाल की उपलब्धियों का बखान करने के बजाय अब खामियों को चिन्हित करने और उनको दूर करने पर जोर देने का भी फैसला किया है। बुद्धदेव ने तमाम मंत्रियों से उनके संबधित विभागों की ऐसी खामियों का पता लगाने का निर्देश दिया है। मंत्रियों को सात जून तक मुख्यमंत्री को अपनी कार्यसूची की रिपोर्ट सौंपनी है।
माकपा का मानना है कि भूमि-उपयोग बोर्ड का प्रभार सेन के मंत्रालय से हटा लेने से भूमि अधिग्रहण को लेकर कामरेडों की छवि में कुछ सुधार जरूर होगा। वैसे भी बुद्धदेव के बाद सेन ही ऐसे माकपा नेता हैं जिनकी पहचान उद्योगों और भूमि अधिग्रहण के पैरोकार के तौर पर होती है। यह भी माकपा की रणनीति का ही हिस्सा है कि बुद्धदेव ने इस बोर्ड का प्रभार भूमि सुधार मंत्री अब्दुर रज्जाक मुल्ला को सौंप दिया है। रज्जाक की छवि किसानों के बीच भूमि सुधार को लेकर अच्छी है। शुरू से ही रज्जाक जमीन अधिग्रहण पर बुद्धदेव की खुलकर आलोचना करते रहे हैं। माकपा के कुछ नेता तो अब मानते हैं कि रज्जाक के विरोध की अनदेखी करना महंगा पड़ गया।
माकपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि उद्योगों के लिए जमीन की पहचान करने वाले बोर्ड का प्रभार रज्जाक को देने के फैसले वाममोर्चा की छवि कुछ सुधरेगी। इससे किसानों के बीच यह संदेश तो जाएगा ही कि माकपा ने भूमि सुधार पर अपनी भूल सुधार की दिशा में कुछ कदम उठाना शुरू किया है।
मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने अपने सहयोगी मंत्रियों को अगले दो वर्षों के लिए प्राथमिकता के आधार पर विकास कार्यों का खाका तैयार करने का जो निर्देश दिया है, उसमें उन्होंने कहा है कि भूमि का वितरण, कृषि, पशु संसाधन, मत्स्य पालन, सिंचाई और उन्नत बीज पर विशेष नजर रखनी होगी। उद्योग के लिए राज्य में पूंजी का निवेश बढ़ रहा है। औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के लिए बिजली का उत्पादन बढ़ाना होगा। नए सिरे से बीपीएल कार्ड तैयार करने के लिए गरीबों से संपर्क करना होगा। समाज के पिछड़े वर्ग खास कर अल्पसंख्यकों के लिए रोजगार और शिक्षा के समान अवसर तैयार करने होंगे। उनके लिए आवास योजना को हकीकत का जामा पहनाना होगा। मुख्यमंत्री ने कहा है कि संपूर्ण साक्षारता के लिए सभी बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर प्रयास करना जरूरी है। उर्दू भाषियों के लिए स्कूलों की तादाद बढ़ाने का प्रयास भी करना होगा। पंचायत, ग्रामीण विकास और नगर विकास को अपनी अतिरिक्त जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी। उन्होंने विभिन्न सरकारी विभागों में जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने पर भी जोर दिया है।
इसबीच, वाममोर्चा के घटक आरएसपी ने चुनाव में खराब नतीजों के लिए माकपा को जिम्मेवार ठहराया है। इस हफ्ते यहां हुई आरएसपी राज्य कमेटी की बैठक में वाममोर्चा से जनता के अचानक मुंह फेरने के लिए माकपा को जिम्मेदार ठहराया गया। चुनाव के बाद पहली बार आरएसपी राज्य कमेटी की बैठक में हार के कारणों की गहन समीक्षा की गई। आरएसपी नेताओं का मानना है कि नंदीग्राम मुद्दे पर माकपा ने उनकी बात नहीं सुनी। सिंगुर में जमीन अधिग्रहण पर के मुद्दे पर भी घटक दलों की सलाह नहीं मानी गई। आरएसपी ने चुनाव में वामो को करारा झटका लगने के लिए माकपा महासचिव प्रकाश करात के एकतरफे फैसले को भी दोषी ठहराया है। क्षीति गोस्वामी और मनोज भट्टाचार्य जैसे वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि माकपा को हार की जिम्मेवारी लेनी होगी और आत्ममंथन करना होगा। गोस्वामी कहते हैं कि भूमि अधिग्रहण से किसानों में गलत संदेश गया। नंदीग्राम में गोली चलाने के मुद्दे पर घटक दलों को अंधकार में रखा गया। आरएसपी का मानना है कि भूमि अधिग्रहण के मामले में सरकार घटक दलों से बातचीत कर बीच का रास्ता निकाल सकती थी, लेकिन माकपा औद्योगिक विकास का सेहरा अपने माथे पर बांधने में जुट गई। माकपा की मनमानी नीतियों से लोग नाराज होते गए। आरएसपी के आगाह करने के बावजूद मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और उद्योग मंत्री निरुपम सेन विभिन्न सभाओं में जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर ही जोर देते रहे। घटक दलों का आरोप है उनके उम्मीदवारों को माकपा काडरों का समर्थन नहीं मिला।

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