Wednesday, June 10, 2009

चुभते नारे और कार्टून बने बंगाल में अहम चुनावी हथियार

कोलकाता, 23 अप्रैल। पश्चिम बंगाल में दीवार लेखन, नारों और कार्टूनों के जरिए अपना प्रचार करने की परंपरा बहुत पुरानी है। लेकिन मौजूदा लोकसभा चुनावों में तमाम राजनीतिक दलों ने कार्टूीनों के जरिए एक-दूसरे पर जो तीखे हमले शुरू किए हैं, उसकी कोई मिसाल नहीं मलिती। इन कार्टूनों के केंद्र में मुख्य तौर पर दो ही चरित्र हैं। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी। इन दोनों को लेकर बने कुछ कार्टूनों में तो चरित्र हनन की सारी हदें पार हो गई हैं। कहीं, बुद्धदेव को महादैत्य के तौर पर दिखाते हुए उनको सिंगुर, नंदीग्राम और माओवादी हिंसा के लिए जिम्मेवार ठहराया गया है तो कहीं ममता का चित्रण राक्षसी के तौर पर करते हुए उनको उद्योगों की संहारक बताया गया है।
दीवारों और बैनरों पर बने इन कार्टूनों के साथ तरह-तरह के नारे और कविताएं भी लिखी गई हैं। इनमें से कुछ तो सचमुच दिलचस्प हैं। यह कहना ज्यादा सही होगा कि बंगाल में अबकी वामपंथी दलों और कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस गठजोड़ ने एक-दूसरे के खिलाफ नारों की लड़ाई शुरू कर दी है। कई नारे और कार्टून तो देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर को चरितार्थ करते नजर आते हैं। वैसे राज्य में नारों का लंबा इतिहास रहा है। नक्सल आंदोलन के दिनों में आमार बाड़ी, तोमार बाड़ी नक्सलबाड़ी-नक्सलबाड़ी यानी हमारा घर, तुम्हारा घर-नक्सलबाड़ी हिट रहा था तो बाद में आमार नाम तोमार नाम, वियतनाम-वियतनाम जैसे नारे भी सबकी जुबान पर चढ़ गए थे।
तृणमूल कांग्रेस के एक बैनर में कहा गया है कि हाथे बोमा, मुखे प्रेम, ऐर नाम सीपीएम यानी हाथों में बम और मुंह से प्यार भरी बातें, इसी का नाम सीपीएम है। माकपा ने इसके जवाब में दीवार लेखन में तृणमूल को मौकापरस्त पार्टी करार देते हुए बताया है कि वह हर चुनाव में अपना साथी बदलती रही है। पार्टी ने नैनो के गुजरात जाने के लिए भी ममता को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा है कि आप किसे चुनेंगे, विकास या विनाश। इसके जवबा में तृणमूल कांग्रेस ने अपने बैनरों और दीवार लेख में नंदीग्राम और सिंगुर की हिंसा वाली तस्वीरें बनवाई हैं। एक रेखाचित्र में तो सिंगुर की तापसी मल्लिक के साथ बलात्कार होते भी दिखाया गया है। इसी तरह नंदीग्राम में पुलिस की फायरिंग में घायल वीभत्स तस्वीरें भी तृणमूल के चुनाव प्रचार का हिस्सा बन चुकी हैं।
दोनों गठबंधनों ने नैनो और औद्योगिकीकरण को अपने प्रचार के केंद्र में रखा है। सिंगुर में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन के दौर में ममता ने नारा दिया था कि कृषक मेरे टाटा प्रेम, शेम शेम सीपीएम (किसानों को मार कर टाटा से प्रेम, शर्म करो सीपीएम)। वह नारा इन चुनावों में भी इस्तेमाल हो रहा है। तृणमूल ने इस चुनाव को मां, माटी और मानुष यानी मां, जमीन और आम लोगों की लड़ाई करार दिया है। पार्टटी ने बदले दिन यानी वाममोर्चा को बदल दो, सकलेर पेटे भात, सकलेर जन्य काज (सबके पेट में अन्न, सबके लिए काम) और कृषि, शिल्प दू-टोई चाई (खेती व उद्योग दोनों चाहिए) जैसे नारे दिए हैं। दूसरी ओर, वाममोर्चा ने नैनो के गुजरात जाने और औद्योगिकीकरण को मुद्दा बनाते हुए तमाम कार्टूनों में ममता की खिंचाई की है। इनमें सवाल किया गया है कि दीदी आखिर अब क्या चाहती हैं।
अब तक इन नारों में पेशेवर पुट भले नहीं आया हो, आम लोगों पर इनका काफी असर होता है। हर राजनीतिक दल में कुछ लोग चुनावों के एलान के बहुत पहले से ही नारे लिखने लगते हैं। इसी तरह कार्टूनों की कल्पना करते हुए उनका स्केच बना लिया जाता है। रोज नए नारे ईजाद किए जा रहे हैं। अब चुनावों की तारीख नजदीक आने के साथ ही नारों की यह लड़ाई और तेज व दिलचस्प होती जा रही है।

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