Wednesday, June 10, 2009

नैनो पर चढ़ कर वोट मांग रही है माकपा

कोलकाता, 28 मार्च। टाटा मोटर्स की लखटकिया भले सिंगुर से सानंद जाने के बाद पंतनगर में बन कर मुंबई में लांच हो गई हो, पश्चिम बंगाल में इस परियोजना के कदमों के निशान जरा भी धूमिल नहीं हुए हैं। अबकी लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ वाममोर्चा की सबसे बड़ी घटक माकपा नैनो पर चढ़ कर ही वोट मांग रही है। लाख रुपए की यह नैनो राज्य में लाख टके का मुद्दा बन कर उभरी है। इसकी लांचिंग ने माकपा को एक धारदार हथियार दे दिया है। अब नैनो के मुद्दे पर पूरे राज्य खासकर कोलकाता और हुगली जिले में जम कर प्रचार चल रहा है। माकपा ने इस मुद्दे के समर्थन में सैकड़ों दीवारें रंग दी हैं। इनमें पार्टी ने सवाल उठाया है कि ‘नैनो-बंगाल में नहीं और गुजरात में हां, आपकी क्या राय है?’
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने नैनो को तवज्जो देने से इंकार करते हुए कहा है कि उनकी मुख्य चिंता जमीन और किसान हैं, कार नहीं। ममता चुनावों के समय नैनो की लांचिंग को एक स्टंट और अपने खिलाफ साजिश करार देते हुए कहती हैं कि उन्होंने टाटा को राज्य छोड़ने को नहीं कहा था। हमने तो सिर्फ उसे चार सौ एकड़ जमीन लौटाने को कहा था।
नैनो की लांचिंग के पहले ही मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने इस परियोजना के राज्य से बाहर जाने के लिए विपक्ष को जिम्मेवार ठहराने की मुहिम शुरू कर दी थी। लांचिंग के दिन उद्योग मंत्री निरुपम सेन ने भी इसे विपक्ष की गैरजिम्मेवार राजनीति का नतीजा करार देते हुए कहा कि इससे हजारों लोगों के सपने टूट गए हैं। पार्टी अब नैनो के सवाल पर तृणमूल कांग्रेस ही नहीं, बल्कि इस चुनाव में उसका हाथ थामने वाली कांग्रेस पर भी निशाना साधने लगी है। माकपा सवाल उठा रही है कि कांग्रेस आखिर किसी ऐसी पार्टी का साथ क्यों दे रही है जो राज्य के विकास के खिलाफ है।
मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य नैनो परियोजना को राज्य से बाहर भेजने के लिए राज्य की विपक्षी पार्टियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। अपनी तमाम चुनावी रैलियों में वे कह रहे हैं कि इस परियोजना के राज्य से बाहर चले जाने के कारण छह हजार लोगों के हाथ से रोजगार का मौका निकल गया। इससे 6,000 लोगों को नौकरी मिलती। भट्टाचार्य सवाल करते हैं कि नैनो को राज्य से बाहर भगाने के लिए कौन जिम्मेदार है? विपक्ष ने किसानों का कितना हित किया है? सिंगुर आज अंधेरे में है। विपक्ष ने वहां परियोजना नहीं लगने दी। क्या सिंगुर इसी लायक है?
उधर, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि चुनाव से ठीक पहले टाटा मोटर्स की नैनो कार को बाजार में लाना उनके खिलाफ साजिश है।
उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के समय नैनो को बाजार में लांच करने का बस एक ही मकसद है। यह उनके खिलाफ साजिश है। कार अभी तैयार नहीं है और कुछ मॉडल उतारे गए हैं।
हुगली जिले के सिंगुर, जहां नैनो परियोजना लगनी थी, में भी यह मुद्दा काफी जोर पकड़ रहा है। माकपा और तृणणूल कांग्रेस अपने-अपने तरीके से नैनो को भुनाने में जुटे हैं। सिंगुर के माकपा नेता बलाई साबुई कहते हैं कि स्थानीय लोग नैनो परियोजना के यहां के चले जाने से दुखी हैं क्योंकि इसमें वे अपने बच्चों का भविष्य देख रहे थे। इसके लिए विपक्षी दल जिम्मेदार हैं।
दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि नैनो मसले से पार्टी को फायदा होगा। सिंगुर पंचायत समिति के उपाध्यक्ष बेचाराम मान्ना, जो कृषि जमीन रक्षा समिति के संयोजक भी हैं, कहते हैं कि यहां हम बड़े अंतर से जीतेंगे। नैनो हमारी जीत में अहम भूमिका निभाएगी। मान्ना कहते हैं कि परियोजना के लिए जो चार सौ एकड़ अतिरिक्त जमीन ली गई थी, वह सरकार ने नहीं लौटाई। अब मतदान के दिन ही लोग इसका जवाब देंगे।
सिंगुर हुगली संसदीय क्षेत्र में आता है। यहां सात मई को वोट पड़ेंगे। बीते लोकसभा चुनावों में माकपा के रुपचंद पाल ने यह सीट जीती थी। वे वर्ष 1989 से लगातार इस सीट से जीतते रहे हैं। अबकी भी पाल ही माकपा के उम्मीदवार हैं। वर्ष 2004 में पाल ने तृणमूल कांग्रेस की इंद्राणी मुखर्जी को 1.65 लाख वोटों से पराजित किया था। कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर रही थी। तृणमूल कांग्रेस ने अबकी रत्ना नाग नामक एक महिला को यहां मैदान में उतारा है।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि चुनाव के पहले नैनो की लांचिंग ने माकपा को विपक्ष के खिलाफ एक ठोस मुद्दा दे दिया है। इसलिए उसने इसे भुनाते हुए बीते साल पंचायत और विधानसभा उपचुनाव में हुई हार का हिसाब बराबर करने के लिए कांग्रेस व तृणमूल गठजोड़ के खिलाफ मुहिम शुरू कर दी है। दूसरी ओर, नैनो मुद्दे के सामने आने के बाद ममता ने भी इसकी काट के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया है। ‘हमला ही सबसे बड़ा बचाव है ’ कि तर्ज पर चलते हुए उन्होंने माकपा से कहा है कि वह नैनो को बड़ा मुद्दा नहीं बनाए। उन्होंने माकपा से सवाल किया है कि पहले उसे इस बात का जवाब देना चाहिए कि वाममोर्चा के 32 साल लंबे कार्यकाल में राज्य में इतनी बड़ी तादाद में उद्योग क्यों बंद हुए हैं। वे केंद्र की यूपीए सरकार को समर्थन देने के लिए भी वामपंथियों की खिंचाई कर रही हैं।
यह छोटी कार राज्य में लोकसभा चुनाव पर कितनी गहरी छाप छोड़ेगी, यह तो नतीजे ही बताएंगे। लेकिन फिलहाल टाटा की यह लखटकिया राज्य के सबसे अहम चुनावी मुद्दे के तौर पर उभर रही है।

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