Wednesday, June 10, 2009

बंगाल में विपक्ष नहीं परिसीमन बना उम्मीदवारों का दुश्मन

कोलकाता, 28 अप्रैल। पश्चिम बंगाल में अबकी लोकसभा चुनावों में विपक्षी नहीं बल्कि परिसीमन ही तमाम उम्मीदवारों के सबसे बड़े दुश्मन के तौर पर उभरा है। परिसीमन के चलते बदले राजनीतिक समीकरण हर राजनीतिक दल पर भारी पड़ रहे हैं। किसी को अब तक इसका अनुमान ही नहीं लगा सका है कि परिसीमन क्या गुल खिलाएगा। राज्य में परिसीमन की कोख से निकली आठ नए संसदीय सीटों को ध्यान में रखें तो उम्मीदवारों का असमंजस समझ में आता है। बीते चुनावों के आंकड़ों और हिसाब-किताब को किनारे रख कर वहां उम्मीदवार अपने भाग्य के भरोसे ही चुनाव लड़ रहे हैं।
सबसे पहले मालदा उत्तर को देखें तो उसके तहत हबीबपुर, रतुआ, गाजोल, चांचल, हरिश्चंद्रपुर, मालतीपुर और मालदा विधानसभा क्षेत्र हैं। इस संसदीय सीट पर पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही कांग्रेस विधायक मौसम नूर का मुकाबला माकपा के शैलेन सरकार से है। वर्ष 1977 से ही हबीबपुर और गाजोल सीटों पर माकपा का कब्जा रहा है। मालतीपुर व चांचल सीटें परिसीमन के बाद बनी हैं। रतुआ सीट पर बीते दो विधानसभा चुनावों में शैलेन सरकार ही जीतते रहे हैं हालांकि पिछली बार उनकी जीत का अंतर महज पांच हजार था। हरिश्चंद्रपुर को फारवर्ड ब्लाक का गढ़ माना जाता है। वह पांच बार यह सीट जीत चुका है। वैसे, पिछली बार इस सीट पर उसके उम्मीदवार ताजमुल हुसैन महज दो हजार वोटों से ही जीते थे। 1977 के बाद माकपा मालदा सीट पांच बार जीत चुकी है। मालदा दक्षिण संसदीय सीट भी परिसीमन की उपज है। इसमें भी विधानसभा की सात सीटें हैं जिनमें से तीन सीटें नई हैं। सुजापुर क्षेत्र शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है।
रानाघाट (सुरक्षित) सीट भी नई है। वहां माकपा के बासुदेव बर्मन का मुकाबला तृणमूल कांग्रेस के सुचारू हालदार से है। इस संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली सात विधानसभा सीटों में से चार नई हैं। इन इलाकों पर शुरू से ही माकपा का बर्चस्व रहा है। 1996 और 2001 में कांग्रेस के शंकर सिंह रानाघाट पश्चिम सीट से चुनाव जीते थे। कृष्णगंज सीट पर तो तीन दशक से माकपा का कब्जा रहा है लेकिन कृष्णनगर पूर्व सीट पर माकपा उतनी मजबूत नहीं रही है। बीते विधानसभा चुनावों में माकपा यहां महज 559 वोटों से जीती थी। इसलिए अबकी लोकसभा चुनावों में यहां ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कयास का ही विषय है।
एक अन्य नई सीट बनगांव (सु) का मामला और दिलचस्प है। इसके तहत भी विधानसभा की सात सीटें हैं जिनमें तीन परिसीमन के बाद बनी हैं। इनमें से कुछ पर माकपा मजबूत है और कुछ पर तृणमूल कांग्रेस। महानगर कोलकाता में कोलकाता उत्तर पूर्व और कोलकाता उत्तर पश्चिम संसदीय सीट को मिला कर बनी नई सीट कोलकाता उत्तर में माकपा के मोहम्मद सलीम का मुकाबला तृणमूल के सुदीप बनर्जी से है। इसके तहत भी सात विधानसभा सीटें हैं। इनमें काशीपुर-बेलगछिया नामक नई सीट भी शामिल है।
परिसीमन के चलते बदले समीकरणों में कोलकाता दक्षिण सीट पर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। परिसीमन में इस संसदीय सीट से सोनारपुर, चौरंगी, अलीपुर,टालीगंज और ढाकुरिया जैसे तृणमूल के गढ़ समझे जाने वाले विधानसभा क्षेत्र बाहर निकल गए हैं। इनकी जगह कस्बा, बेहला पूर्व, बेहला पश्चिम और कोलकाता पोर्ट जैसी सीटें इस संसदीय क्षेत्र में शामिल हो गई हैं। इन चारों इलाकों में वाममोर्चा का बर्चस्व है। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो 2004 के लोकसभा चुनावों में ममता को मिले कुल वोटों का लगभग 50 फीसद सोनारपुर से ही मिला था। तब उन्होंने माकपा के रबीन देव को 98 हजार वोटों से हराया था। अबकी भी उनका मुकाबला देव से ही है।
इसके अलावा पूर्व मेदिनीपुर का घाटाल, बर्दवान पूर्व (सु) और बर्दवान-दुर्गापुर परिसीमन से उपजी तीन नई सीटें हैं। पूर्व मेदिनीपुर तो शुरू से ही वाममोर्चा का गढ़ रहा है। बर्दवान जिले में भी विपक्ष पिछले विधानसभा चुनाव में कटवा के अलावा कहीं नहीं जीत सका था। अब कटवा व अंडाल में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ होने वाले आंदोलन का कोई असर होता है या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन परिसीमन ने तमाम दलों के समीकरण इतने उलझा दिए हैं कि उम्मीदवारों को खुद भी अपनी जीत का पूरा भरोसा नहीं हो रहा है।

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