Wednesday, June 10, 2009

बालूचरी साड़ियों के गढ़ में मुकाबला महिलाओं के बीच

कोलकाता, 29 अप्रैल। झारखंड से सटे माओवाद प्रभावित बांकुड़ा जिले में बालूचरी साड़ियों और टेराकोटा के मंदिरों के लिए दुनिया भर में मशहूर विष्णुपुर (सुरक्षित) संसदीय सीट के लिए अबकी दो महिलाओं के बीच सीधी जंग है। माकपा ने जिन दो महिलाओं को टिकट दिया है उनमें से एक सुष्मिता बाउरी इसी सीट से मैदान में हैं। वे पिछली बार भी चुनाव जीती थी। उनके मुकाबले तृणमूल कांग्रेस ने भी यहां एक महिला सिउली साहा को मैदान में उतारा है। दोनों महिलाओं की यह जंग काफी दिलचस्प हो गई है। बंगाल में पहले चरण में जिन 14 सीटों के लिए वोट पड़ेंगे उनमें विष्णुपुर भी शामिल है।
सिंचाई की सुविधाओं व आधारभूत ढांचे की कमी और पिछड़ेपन से जूझ रहे विष्णुपुर में अबकी माकपा ने चौतरफा विकास, औद्योगिकीकरण व हर पंचायत में सिंचाई की सुविधा मुहैया कराने को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है तो तृणमूल कांग्रेस ने संसदीय क्षेत्र के जयपुर व कोटुलपुर समेत विभिन्न इलाकों में माकपा के कथित अत्याचार को। सिउली साहा नंदीग्राम की रहने वाली है। उन्होंने विष्णुपुर के बालूचरी साड़ी बुनकरों की उपेक्षा और दयनीय हालत को भी अपना मुद्दा बनाया है। साहा का आरोप है कि पांच साल के अपने कार्यकाल के दौरान माकपा सांसद इस हेरिटेज शहर को पर्यटन के नक्शे पर लाने में नाकाम रही हैं।
परिसीमन के बाद तालडांगरा, रायपुर और रानीबांध विधानसभा क्षेत्र इस इलाके से हटा कर बांकुड़ा संसदीय क्षेत्र में शामिल कर दिए गए हैं। इंदपुर विधानसभा क्षेत्र का तो वजूद ही खत्म हो गया है। विष्णुपुर में चार नए विधानसभा इलाके शामिल किए गए हैं। सिउली लोगों से नंदीग्राम और दूसरे इलाकों में माकपा काडरों के कथित अत्याचारों का हवाला देते हुए बदलाव के लिए वोट मांग रही हैं। उनका आरोप है कि विष्णुपुर के कोटूलपुर और सोनामुखी विधानसभा क्षेत्रों में काडरों का अत्याचार अब भी जस का तस है। उन्हौंने बांकुड़ा के जिलाशासक व पुलिस अधीक्षक से इसकी शिकायत भी की है। साहा ने चुनाव आयोग के पर्यवेक्षकों से मिल कर कहा है कि माकपा के लोग मोटरसाइकोंल पर गांव-गांव घूम कर तृणमूल के समर्थकों व आम लोगों को धमका रहे हैं।
लेकिन माकपा ने उनके इस आरोप को निराधार करार दिया है। बांकुड़ा जिला माकपा के सचिव अमिय पात्र कहते हैं कि तृणमूल कांग्रेस जानती है कि वह विष्णुपुर में मुकबले में ही नहीं है। सुष्मिता को हराना तो दूर वह उसके आसपास भी नहीं फटक सकती। इसलिए वह बेसिर-पैर के आरोप लगा रही है।
माकपा उम्मीदवार सुष्मिता बाउरी कहती है कि वे इलाके के वोटरों के लिए नई नहीं हैं। लोगों ने इस सीट पर उनकी मां संध्या बाउरी को लगातार तीन बार जिताया है। वे मानती हैं कि इलाके में सिंचाई व पीने के पानी की समस्या है। लेकिन जल्दी ही उनको दूर करने का वादा करती हैं। बाउरी का कहना है कि इस इलाके के गांवों में खासकर महिलाएं अब भी सामाजिक न्याय से वंचित हैं। समुचित शिक्षा-दीक्षा के अभाव में लोग अंधविश्वास के चक्कर में पड़ जाते हैं। उनका आरोप है कि विपक्ष विष्णुपुर जैसे शांत इलाके को अस्थिर बनाने का प्रयास कर रहा है। लेकिन लोग उसे खारिज कर देंगे।
दूसरी ओर, तृणमूल की सिउली साहा कहती है कि माकपा मेरे बाहरी होने का प्रचार कर रही है। मैं तो यहां की बहू हूं। लेकिन सुष्मिता बाउरी भी तो बांकुड़ा में रहती है जो दूसरे संसदीय क्षेत्र में है। साहा कहती है कि विष्णुपुर अपनी बालूचरी साड़ियों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। लेकिन माकपा सांसद ने बीते पांच सालों के दौरान साड़ी बुनकरों की दशा सुधारने की दिशा में कोई पहल नहीं की है। यहां पर्यटन को बढ़ावा देने के सवाल पर भी वे खामोश रही हैं। अब माकपा के काडर इलाके में वोटरों को आंतिकत करने का प्रयास कर रहे हैं।
दोनों महिलाओं की इस जंग में जीत का सेहरा किसके माथे बंधता है, इसका फैसला तो आगे चल कर होगा। लेकिन यह जंग काफी दिलचस्प मुकाम तक पहुंच गई है।

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