Wednesday, May 13, 2009

एक सपने की मौत


प्रभाकर मणि तिवारी
रंजन साहू नहीं रहा। उसका नाम रंजन की बजाय, रमेश, ,सुरेश, देवाशीष कुछ भी हो सकता था। लेकिन नाम में क्या रखा है? शायद ऐसे ही लोगों को ध्यान में रखते हुए विलियम शेक्सपियर ने बहुत पहले यह बात कह दी थी। रंजन की मौत की खबर कहीं किसी अखबार में नहीं छपी थी। मुझे भी इसकी जानकारी कोई पांच साल बाद मिली। हाल में पुरी जाने पर।
दरअसल, रंजन पुरी के समुद्रतट पर घूमने वाले उन सैकड़ों फोटोग्राफरों में से एक था जो सुबह से शाम तक पानी में भींगते हुए समुद्र में नहाते पर्यटकों की फोटुएं खींच कर घंटे-दो घंटे के भीतर उन तस्वीरों को उनके होटल तक पहुंचाते हैं। कोई पंद्रह साल पहले शादी के बाद पहली बार पुरी जाने पर उससे मुलाकात हुई थी। पुरी की वह यात्रा भी संयोगवश ही हुई थी। एक काम के सिलसिले में कोलकाता आया था। वहां पता चला कि जिससे मिलना है वह तीन-चार दिनों बाद लौटेगा। तब जिस रिश्तेदार के यहां ठहरा था उसी ने सलाह दी कि तीन-चार दिन क्या करेंगे, पुरी हो आइए। तबसे पुरी के साथ जो रिश्ता बना वह अब तक कायम है। पुरी के प्रति पत्नी के आकर्षण और आस्था की सबसे बड़ी वजह यह है कि हमारी इकलौती बिटिया पुरी से लौटने के बाद ही हुई थी। तब से वह पुरी जाने का कोई मौका नहीं चूकती है। इसबार, भी ससुराल के कुछ रिश्तेदारों के जोर देने पर ही उनके साथ पुरी जाना हुआ था। उसी समय रंजन की मौत की खबर मिली थी।
खैर, पहली बार पुरी जाने का फसला होने पर मेरे उस रिश्तेदार ने होटल और पंडे का पता बता दिया था। तब हमारे पास कैमरा नहीं था। उस समय कैमरा विलासिता की चीज थी। हावड़ा से चल कर सुबह-सबेरे पुरी स्टेशन पहुंच कर हम अपने रिशेतदार के बताए मुताबिक, पुरी होटल की बस पर बैठ कर होटल पहुंच गए। वहां कमरा लेने के बाद हम नहाने निकल पड़े। उसी समय रंजन से पहली मुलाकात हुई थी। कुछ रंजन के आग्रह और कुछ पहली बार समुद्र में नहाने की फोटो खिंचवाने के सम्मोहन ने हमें उससे फोटो खिंचवाने पर मजबूर कर दिया। उसने अपने याशिका कैमरे से ही हमारी इतनी अद्भुत तस्वीरें खींची थी जो अब भी घर में सजा कर रखी हैं और लोग देख कर बरबस ही सराहने लगते हैं। होटल के बगल वाली गली में ही उसका अपना स्टूडियो था। तीन-चार दिनों के उस प्रवास में हम जब भी होटल से निकलते रंजन मानो हमारा ही इंतजार कर रहा होता था। वह अचानक सामने खड़ा हो जाता था। यह कहते हुए कि सर, फोटो? उन तीन दिनों के दौरान उससे दोस्ती भी हो गई थी। उस बार उसने हमारी कोई पचास-साठ तस्वीरें खींची थी।
उसके बाद जब भी पुरी जाना होता था, हम उससे तस्वीरें जरूर खिंचवाते थे। इस तथ्य के बावजूद कि बाद में मैंने एक कैमरा ले लिया था। हर बार वह अनुरोध करता था कि सर, किसी अखबार में फोटोग्राफर की नौकरी मिले तो बताना। अब इस पेशे में मन नहीं लगता। मुझे नहीं तो मेरे बेटे को ही कहीं लगवा दें। मैं सुनता और कुछ करने का आश्वासन देकर लौट आता।
चार साल पहले एक दिन के लिए पुरी जाने पर उसका स्टूडियो बंद मिला। तब समय की कमी के चलते मैंने भी उसके बारे में पूछताछ नहीं की। लेकिन अब मार्च के तीसरे हफ्ते में तीन-चार दिनों के लिए जाने पर होटल में चेक-इन करने के बाद मैं जब उस गली में पहुंचा तो उस स्टूडियो का जगह अंग्रेजी शराब की दुकान देख कर भौंचक रह गया। वहां पूछताछ करने पर मुझे रंजन के दर्द और उसकी मौत का पता चला। रंजन का एक ही बेटा था। वह उसे अपनी तरह फोटोग्राफर नहीं बल्कि पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाने का सपना देखता था। पुरी जाने पर वह अक्सर अपने इस सपने की चर्चा करता था। लेकिन बेटे ने गलत संगत में पड़ कर पढ़ना-लिखना छोड़ दिया। मजबूरन रंजन ने उसे भी एक कैमरा पकड़ा दिया। लेकिन उसकी आदतें नहीं सुधरीं। दिन भर जो भी कमाता रात को वह उसे जुए व शराब में उड़ा देता था। इससे रंजन बहुत दुखी था। उसने उसे काफी समझाया-बुझाया, लेकिन लड़के पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। एक दिन शाम को शराब पीने के बाद वह कुछ दोस्तों के साथ समुद्र तट पर टहलने निकला तो अगले दिन सुबह उसकी लाश ही किनारे पर मिली।
रंजन के मित्र देवाशीष ने बताया कि उस घटना ने रंजन को तोड़ कर रख दिया था। उसने फोटोग्राफी से भी तौबा कर ली। जिस शराब से बेटे को दूर रखने का प्रयास करता रहा था अब खुद उसने उसी शराब की शरण ले ली। धीरे-धीरे कैमरा, सामान और स्टूडियो तक बिक गया। उसकी हालत पागलों जैसी हो गई थी। वह घंटो एकटक खड़ा होकर समुद्री लहरों को घूरता रहता था। इस उम्मीद में कि शायद कोई लहर उसके बेटे को लौटा दे। एक दिन नींद में ही उसकी मौत हो गई। दोस्तों ने मिल कर उसके कफन-दफन का इंतजाम किया। देवाशीष कह रहा था कि सर, सपने का टूटना क्या होता है, यह शब्दों में बताना मुश्किल है। आपने उन दिनों रंजन को देखा होता तो शायद आपको उसकी हालत पर भरोसा होता। देवाशीष से कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं बचे थे। भारी मन से मैं धीरे-धीरे समुद्र तट की बढ़ने लगा।

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