Thursday, July 30, 2009

अब न्याय दिलाना ही मिशन है फिऱोजा बीबी का


पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ़ आंदोलन और हिंसा की वजह से लंबे अरसे तक सुर्खियों में रहे नंदीग्राम की 57 साल की मुस्लिम गृहिणी फिऱोजा बीबी के जीवन का मिशन अब उन लोगों के परिजनों को न्याय दिलाना है जो 14 मार्च 2007 को हुई पुलिस फायरिंग में मारे गए थे. दो साल पहले हुई उस फायरिंग में फिऱोजा ने अपना बेटा भी खोया था. लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी थी. उसी का नतीजा था कि वह तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर नंदीग्राम विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में मैदान में उतरी और रिकार्ड वोटों से जीत हासिल की. इस जीत के बाद फिऱोजा विधानसभा के बजट अधिवेशन में हिस्सा लेने जब पहली बार सदन में पहुंची तो विधायकों से लेकर मीडिया तक तमाम निगाहें उसी पर टिकी थीं.
फिरोजा कहती है कि ‘मेरा बेटा शेख इमदादुल इस्लाम तो अब लौट कर नहीं आएगा. लेकिन मैं चाहती हूं कि अब नंदीग्राम का कोई परिवार उस पीड़ा से नहीं गुजरे, जो मैंने भोगी है. अब मेरा मकसद नंदीग्राम के हिंसापीड़ितों को न्याय दिलाना है.’ वह कहती है कि ‘सदन में सरकार भले मेरी आवाज नहीं सुने, मैं अपना विरोध जारी रखूंगी. सरकार मुझसे विरोध जताने का यह अधिकार नहीं छीन सकती.’ वह कहती है कि कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद ज्यादातर लोगों को अब तक कोई मुआवजा नहीं मिला है.
फिऱोज बताती है कि ‘हमारे परिवार के पास छह बीघे जमीन है. हम केमिकल हब के लिए वह जमीन नहीं देना चाहते थे. उस दिन मेरा बेटा भी दूसरों के साथ अधिग्रहण के प्रति विरोध जताने गया था. शाम को मुझे पता चला कि पुलिस की गोली से उसकी मौत हो गई है.’
बीते साल दिसंबर में हुए उपचुनाव में तृणमूल ने जब अपना उम्मीदवार बनाने का फैसला किया तो फिऱोजा पहले इसके लिए तैयार नहीं हुई. लेकिन बाद में गांव वालों के जोर देने पर वह चुनाव लड़ने पर राजी हो गई. तृणमूल ने तय किया था कि वह पुलिस फायरिंग में मरे किसी व्यक्ति के घरवाले को ही टिकट देगी. इसीलिए फिरोजा को चुना गया.
फिऱोजा के पति शेख मनीरुल रहमान हाल ही में कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट की नौकरी से रिटायर हुए हैं. वे कहते हैं कि ‘हमारा परिवार रुढ़िवादी है. लेकिन फिऱोजा ने एक नेक मकसद के तहत चुनाव लड़ने का फैसला किया था. यही वजह है कि इलाके के लोगों ने उसे रिकार्ड वोटों के अंतर से जीत दिलाई.’ अब 57 साल की उम्र में फिऱोजा ने अपने जीवन की दूसरी पारी शुरू की है. वह कहती है कि ‘उस पुलिस फायरिंग के दो साल बाद पीड़ितों को न्याय दिलाने की मेरी असली लड़ाई तो अब ही शुरू हुई है. अब यही मेरा मिशन है.’

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