Sunday, July 19, 2009

तो नहीं खिसकती पैरों तले की जमीन

द्योगों के लिए खेती की जमीन के अधिग्रहण के जरिए बर्रे के छत्ते में हाथ देने वाली वाममोर्चा सरकार ने कई बार हाथ जलाने के बाद आखिर जमीन अधिग्रहण से तौबा कर ली है। लेकिन अगर यही काम उसने और पहले किया होता तो शायद उसके पैरों तले की जमीन इतनी तेजी से नहीं खिसकती। सरकार ने अब साफ कर दिया है कि राज्य में नए उद्योगों की स्थापना के इच्छुक निवेशकों को अब जमीन मालिकों से सीधे जमीन खरीदनी होगी। अब पहले की तरह सरकार उनके लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं करेगी। सिंगुर, नंदीग्राम, सालबनी और अंडाल में विभिन्न परियोजनाओं के लिए जमीन के अधिग्रहण के सिलसिले में आम लोगों और वोटरों की जबरदस्त नाराजगी को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने यह फैसला किया है। अधिग्रहण के कई मामलों में हाथ जला चुकी सरकार ने इसी वजह से अब सलेम समूह की कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
वित्तमंत्री असीम दासगुप्ता ने हाल ही में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन में एलान किया कि अब सरकार उद्योगों के लिए भूमि का अधिग्रहण नहीं करेगी। उद्योग के लिए जमीन की व्यवस्था किसानों के साथ बातचीत कर उद्योगपतियों को ही करनी होगी। ध्यान रहे कि विपक्ष सरकार पर किसानों की खेती की जमीन उद्योगों के लिए जबरन अधिग्रहीत करने का आरोप लगाता रहा है। विपक्षी राजनीतिक दलों का आरोप है कि बर्दवान जिले के अंडाल प्रस्तावित एअरपोर्ट के लिए लगभग एक हजार एकड़ जमीन की जरूरत है लेकिन तीन हजार एकड़ से ज्यादा जमीन का अधिग्रहण किया गया है। सिंगुर व नंदीग्राम में भी जबरन अधिग्रहण के चलते ही मामला गंभीर हुआ और सिंगुर से लखटकिया परियोजना को बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ा। अब पंचायत, लोकसभा व नगरपालिका चुनावों में लगातार मुंहकी खाने के बाद माकपा और वाममोर्चा में उसके सहयोगी दल नहीं चाहते सरकार इस मामले में कोई पहल करे। वाममोर्चा की असली चिंता अब दो साल से भी कम समय में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। इसलिए वह कोई खतरा नहीं मोल लेना चाहती।
राज्य के भूमि और भूमि सुधार मंत्री अब्दुर रज्जाक मौल्ला का कहना है कि अब निवेशकों को ही जमीन का अधिग्रहण करना होगा। सरकार के इस फैसले का असर राज्य में वीडियोकॉन, भूषण स्टील और अभिजित समूह के प्रस्तावित इस्पात संयंत्रों पर पड़ना तय है। इससे राज्य में औद्योगिकीकरण की गति भी लगभग थम जाएगी। वैसे भी सिंगुर मामले के बाद निवेशकों की दिलचस्पी बंगाल में कम हो गई है।
पश्चिम मेदिनीपुर जिले के सालबनी में जिंदल समूह की इस्पात परियोजना के लिए भी अभी जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। वहां बीते साल नवंबर में शिलान्यास के बाद ही लालगढ़ आंदोलन शुरू हो गया था। इसी तरह वीडियोकॉन को अपनी परियोजना के लिए कम से कम तीन हजार एकड़ जमीन चाहिए। इस परियोजना के लिए अभी तक जमीन अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी नहीं की गई है। इन परियोजनाओं से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकार की सहायता के बिना जमीन का अधिग्रहण टेढ़ी खीर साबित होगा।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार के इस फैसले के दूरगामी नतीजे होंगे। अब नई परियोजनाओं की राह तो मुश्किल हो ही गई है, कई प्रस्तावित परियोजनाओं पर भी पुनर्विचार हो सकता है या फिर उनको टाटा समूह की तर्ज पर कहीं और ले जाने का फैसला हो सकता है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि टाटा मोटर्स के कारोबार समेटने का राज्य के औद्योगिक माहौल पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा है। लेकिन अब सरकार के इस फैसले से औद्योगिकीकरण की मुहिम ठप हो जाने का अंदेशा है। फिलहाल वाममोर्चा को राज्य में उद्योगों की स्थापना नहीं, बल्कि अपनी सरकार बचाने की चिंता है।

No comments:

Post a Comment