Thursday, August 6, 2009
लालगढ़ यानी नौ दिन चले अढाई कोस
पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार की ओर से केंद्रीय बलों की सहायता से कोई डेढ़ महीने पहले पश्चिम मेदिनीपुर जिले के लालगढ़ में ढोल पीट कर माओवादियों के खिलाफ शुरू किया अभियान आखिरकार फ्लॉप साबित हुआ है। लालगढ़ अभियान अब ‘नौ दिन चले अढाई कोस’ की कहावत को पूरी तरह चरितार्थ कर रहा है। मीडिया में तो यह बात काफी पहले से कही जा रही थी। राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी आफ द रिकार्ड यह बात कबूल कर रहे थे। लेकिन गुरुवार को राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग में एक उच्च-स्तरीय बैठक में इस अभियान की समीक्षा के बाद आखिर सरकार ने भी इस बात को मान लिया। बैठक के बाद गृह सचिव अर्द्धेंदु सेन का कहना था कि लालगढ़ अभियान पूरी तरह कामयाब नहीं रहा है। शब्दों की बाजीगरी में लिपटे इस बयान का साफ मतलब है कि अभियान पूरी तरह नाकाम रहा है। सेन ने कहा कि शुरूआती दौर में कुछ कामयाबी मिलने के बावजूद बाद में यह नाकाम साबित हुआ। लालगढ़ में केंद्रीय बल के चार हजार जवानों की मौजूदगी के बावजूद वहां हत्याएं और अपहरण बदस्तूर जारी हैं। सेन कहते हैं कि सुरक्षा बल हर जगह मौजूद नहीं रह सकते। माओवादी वहां माकपाइयों को ही अपना निशाना बना रहे हैं।
गृह सचिव का बयान तथ्यों पर आधारित है। इसी हफ्ते इलाके में आधा दर्जन माकपा नेता व काडर मारे जा चुके हैं। तथ्य यह भी है कि इतने बड़े पैमाने पर अभियान के बावजूद अब तक एक भी माओवादी नेता न तो मारा गया है और न ही पुलिस के हत्थे चढ़ा है। पुलिस अत्याचार विरोधी समिति के संयोजक छत्रधर महतो खुलेआम पत्रकारों से बातचीत और जनसभाएं करते हैं। उनकी गिरफ्तारी के एलान के बावजूद पुलिस अब तक महतो के आसपास तक नहीं फटक सकी है।
सरकारी सूत्र बताते हैं कि पश्चिम मेदिनीपुर जिले के एसपी और जिलाशासक ने इस बैठक में सरकार को जो रिपोर्ट पेश की उसमें साफ कहा गया है कि अभियान पूरी तरह फ्लॉप रहा है। लालगढ़ मुद्दे से चिंतित मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने प्रशासन से इस मामले में कोई ठोस रणनीति बनाने को कहा था। यह बैठक भी बेनतीजा ही रही। अब 13 अगस्त को इसी मामले पर दोबारा बैठक होगी। अब सरकार ने केंद्र से सुरक्षा बलों की कम से कम छह और कंपनियां मांगने का फैसला किया है। उसने मौजूदा जवानों को भी कम से कम तीन महीने तक लालगढ़ में रखने का अनुरोध किया है।
दूसरी ओर, इलाके में पुलिस अभियान के बावजूद माकपा काडरों की लगातार हत्याओं पर चिंता जताते हुए माकपा के प्रदेश सचिव विमान बसु ने इस मुद्दे पर प्रशासन के साथ बातचीत करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि माओवादियों ने हमले के बाद जंगल में फरार होने की रणनीति अपनाई है।
इधर, गृह सचिव का कहना था कि लालगढ़ में हालात काबू में आने में अभी कम से कम दो महीने का समय लग सकता है। वहां सामान्य स्थिति बहाल होने तक सुरक्षा बल मौजूद रहेंगे।
इससे साफ है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के दो दिन बाद शुरू हुआ यह अभियान अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका है। यानी बुद्धदेव सरकार की मुसीबत बढ़ती ही जा रही है।
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जो समस्या खुद माकपा ने पैदा की है उस से उस का निपटना बहुत भारी पड़ेगा।
ReplyDeleteराजनेता अपने जाल मे खुड ही फस जाते हैं....ऐसा कई बार हो चुका है....लेकिन भुअगता आम जनता को पड़ता है\
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