Tuesday, August 18, 2009

बुद्धदेव सरकार के लिए नासूर बन गया है लालगढ़

पश्चिम मेदिनीपुर जिले का माओवाद प्रभावित लालगढ़ बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुवाई वाली राज्य की वाममोर्चा सरकार के लिए धीरे-धीरे एक ऐसे नासूर में बदल गया है जो अक्सर टीसता रहता है। दो महीने से जारी लालगढ़ अभियान के बावजूद सुरक्षा बलों को वहां खास कामयाबी नहीं मिल सकी है। मजबूरन बीते हफ्ते सरकार ने भी मान लिया कि इस अभियान को कामयाबी नहीं मिल सकी है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए जहां केंद्र से पड़ोसी झारखंड में भी लालगढ़ की तर्ज पर माओवादियों के खिलाफ अभियान चलाने की मांग की है, वहीं वाममोर्चा के दूसरे घटक दल इस समस्या के लिए सरकार और माकपा की छीछालेदर कर रहे हैं।
लालगढ़ में बीते दो महीने से केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस का अभियान जारी रहने के बावजूद इलाके में माओवाद की समस्या सुलझने की बजाय और उलझती ही जा रही है। अब तक न तो कोई बड़ा नेता पुलिस की पकड़ में आया है और न ही इलाके में सामान्य स्थिति बहाल हो सकी है। इसलिए सरकार अब माओवादियों से निपटने के लिए रणनीति बदलने पर विचार कर रही है। इसी कवायद के तहत मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने बीते दिनों अपने मेदिनीपुर दौरे के दौरान पुलिस व प्रशासन के तमाम आला अधिकारियों के साथ बैठक में भावी रणनीति पर विचार किया। लेकिन अब तक नई रणनीति पर अमल नहीं शुरू हो सका है। उससे पहले ही सोमवार को लालगढ़ एक बार फिर अशांत हो गया। वहां माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच घंटों हुई गोलाबारी में पुलिस का एक जवान घायल हो गया। वैसे, सरकार इससे पहले ही मान चुकी है कि लालगढ़ अभियान कामयाब नहीं रहा है। इलाके में माकना नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। इलाके में विकास के काम ठप हैं। इससे लोगों की नाराजगी और बढ़ रही है। सरकार की मुश्किल यह है कि हालात सामान्य हुए बिना इलाके में विकास परियोजनाएं शुरू नहीं हो सकती।
राज्य सरकार का असली संकट है केंद्रीय बलों की मौजूदगी। गृह सचिव अर्द्धेंदु सेन मानते हैं कि केंद्रीय बल हमेशा के लिए लालगढ़ में नहीं रह सकते। राज्य सरकार ने केंद्र से उनको कम से कम और तीन महीने तक लालगढ़ में तैनात करने की गुहार की है। लेकिन मौजूदा हालात को ध्यान में रखते हुए तीन महीनों में भी समस्या के सुलझने के आसार कम ही हैं। सरकार को इस बात की चिंता खाए जा रही है कि जब केंद्रीय बलों के रहते यह स्थिति है तो उनके लौट जाने पर क्या होगा।
दूसरी ओर, वाममोर्चा की बैठक में सरकार व माकपा को सहयोगी दलों की आलोचना से जूझना पड़ रहा है। बीते सप्ताह हुई बैठक में घटक दलों ने सरकार से इस मुद्दे पर सफाई मांगते हुए कहा कि वह लालगढ़ अभियान की नाकामी की वजह बताए। आरएसपी और फारवर्ड ब्लाक ने इससे पहले माओवादियों पर पाबंदी लगाने का विरोध करते हुए इस मुद्दे को राजनीतिक तौर पर हल करने की वकालत की थी। फारवर्ड ब्लाक के एक नेता कहते हैं कि हमने सरकार से लालगढ़ अभियान की प्रगति रिपोर्ट मांगी है। भारी तादाद में सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद हत्याओं और अपहरण का सिलसिला थम नहीं रहा है। यह गहरी चिंता का विषय है। हम सरकार से जानना चाहते हैं कि वह माओवादियों से निपटने के लिए क्या रणनीति अपना रही है।
घटक दलों ने इस मामले पर मुख्यमंत्री के बयान की मांग की। मुख्यमंत्री उस बैठक में मौजूद नहीं थे। इसलिए अब इसी हफ्ते मोर्चा की बैठक दोबारा बुलाई जाएगी। उसमें बुद्धदेव भी मौजूद रहेंगे।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि लालगढ़ की समस्या अब धीरे-धीरे नासूर बनती जा रही है। यह लंबे अरसे तक जब-तब रिसता ही रहेगा। किसी ठोस रणनीति के अभाव में सुरक्षा बल अंधेरे में ही ही तीर चला रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में भी वहां हालात सामान्य होने की उम्मीद कम ही है। जनसत्ता से

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