Sunday, August 30, 2009
बंगाल में मुद्दा बने महापुरुष
नेताजी सुभाष चंद्र बोस, कवि नजरूल, मास्टर सूर्यसेन और उत्तम कुमार। पश्चिम बंगाल में लंबे अरसे से आम लोगों के नायक रहे यह तमाम महापुरुष फिलहाल राज्य में राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा बन गए हैं। दरअसल, मेट्रो रेलवे के विस्तार के बाद रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने तमाम स्टेशनों के नाम इन महापुरुषों के नाम पर रखने का जो फैसला किया है उस पर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी ममता के इस फैसले को एक तमाशा करार देते हुए कहा है कि महापुरुषों के साथ ऐसा मजाक ठीक नहीं है। राज्य सरकार ने फिलहाल इन नामों के पंजीकरण से इंकार कर दिया है।
पहले मेट्रो ट्रेन उत्तर कोलकाता के दमदम से लेकर दक्षिण में टालीगंज तक चलती थी। बीते हफ्ते विस्तार के बाद उसमें चार नए स्टेशन जोड़े गए हैं जिनके नाम क्रमशः नेताजी, मास्टरदा सूर्यसेन, गीतांजलि व कवि नजरूल हैं। इसके अलावा टालीगंज का नाम बदल कर महानायक उत्तम कुमार कर दिया गया है। उद्घाटन समारोह के बाद मेट्रो रेलवे अधिकारियों ने इन नामों के पंजीकरण के लिए मुख्य सचिव अशोक मोहन चक्रवर्ती को एक पत्र लिखा है। लेकिन सरकार इसे मान्यता देने के मूड में नहीं है। परिवहन मंत्री रंजीत कुंडू कहते हैं कि हमने उचित मंच पर इस फैसले का विरोध किया है। हम इनका पंजीकरण नहीं करेंगे। हालांकि यह पंजीकरण महज एक औपचारिकता है। लेकिन इसी मुद्दे पर माकपा और तृणमूल कांग्रेस ने एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें खींच रखी हैं।
मेट्रो रेलवे के विस्तार के मौके पर आयोजित समारोह में मुख्यमंत्री को नहीं बुलाने से नाराज माकपा और राज्य सरकार ने रेल मंत्रालय के खिलाफ कमर कस ली है। वैसे, ममता का दावा है कि उन्होंने मुख्यमंत्री और परिवहन मंत्री को समारोह में बुलाया था। लेकिन उनलोगों ने इसमें आने की बजाय महापुरुषों को मुद्दा बना दिया है। दूसरी ओर, परिवहन मंत्री रंजीत कुंडू कहते हैं कि राज्य सरकार ने इस परियोजना का एक तिहाई खर्च उठाया है। लेकिन मुख्यमंत्री को नहीं बुलाया गया। मुझे भी आखिरी वक्त पर एक सिपाही के हाथों न्योता भेजा गया। इसलिए मैंने समारोह में नहीं जाने का फैसला किया।
मुख्यमंत्री भट्टाचार्य भी रेलवे के इस तमाशे के लिए रेल मंत्री की खिंचाई कर चुके हैं। भट्टाचार्य ने कहा है कि क्या यह कोई तमाशा है जो कवि नजरूल इस्लाम, नेताजी और मास्टरदा सूर्यसेन जैसी महान हस्तियों की तस्वीरें रेलवे के कार्यक्रम में प्रदर्शित की गईं। उन्होंने कहा कि वामपंथी स्वाधीनता आंदोलन की महान विरासत के दुरुपयोग के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि यह कृत्य महान क्रांतिकारियों के प्रति अनादर दर्शाता है। उन्होंने सवाल किया है कि रेल मंत्रालय आखिर क्या कर रहा है? वह रोजाना एक नई रेलगाड़ी चला रहा है। यह क्या है? क्या वे सोचते हैं कि लोगों ने अपनी आंखें बंद रखी हैं? रेलवे की क्या स्थिति है? रेलवे की हालत बेहद खराब है।
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहने के दौरान केबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित कर रेलवे स्टेशनों के नाम महापुरुषों के नाम पर रखने पर पाबंदी लगा दी थी। उक्त अधिकारी कहते हैं कि ममता का फैसला कानूनन सही नहीं है। स्टेशनों के नामकरण के लिए संबंधित राज्य सरकार की सहमति जरूरी है। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया।
दूसरी ओर, रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि यह काफी आश्चर्य की बात है कि महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजंट और स्वामी विवेकानंद को प्रतिक्रियावादी कहने वाली माकपा अब महापुरुषों के नामों के कथित दुरुपयोग पर आंसू बहा रही है। ऐसे महापुरुषों से समाज को प्रेरणा मिलती है और हम उनका सम्मान करते रहेंगे। ममता का आरोप है कि राज्य सरकार व माकपा अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए हाथ धोकर रेलवे मंत्रालय के पीछे पड़ गई है। माकपा इसके लिए तमाम हथियार आजमा रही है। लेकिन उसे अब तक अपने अभियान में कोई कामयाबी नहीं मिल सकी है।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस और माकपा लोकसभा चुनावों के बाद से ही एक-दूसरे को पछाड़ने का मौका तलाशती रही हैं। राज्य में राजनीतिक हिंसा, राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी की टिप्पणी पर होने वाले विवाद और मंगलकोट की हिंसा के बाद अभ राज्य के महापुरुष इन दोनों के बीच राजनीतिक बर्चस्व की लड़ाई में पिस रहे हैं। फिलहाल इस लड़ाई के थमने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं।
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