Saturday, August 8, 2009

एक खामोश लेकिन सराहनीय क्रांति!


पश्चिम बंगाल के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार और माओवादी गतिविधियों के लिए अक्सर सुर्खियां बटोरने वाले पुरुलिया जिले में बीते कुछ महीनों से एक खामोश क्रांति हो रही है. लेकिन माओवादी गतिविधियों के तले दबी इस क्रांति को कभी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खी नहीं मिल सकी है. यह क्रांति शुरू की है कुछ छात्राओं ने. इलाके के विभिन्न गांवों और तबकों में लंबे अरसे से जारी बाल विवाह की परंपरा के खिलाफ. अशिक्षा व पिछड़ेपन के चलते उस जिले की ज्यादातर गांवों में लड़कियां 12-13 साल की होते न होते ब्याह कर जबरन पिया के घर भेज दी जाती हैं.
लेकिन अब शिक्षा के प्रति बढ़ते ललक ने इलाके में नाबालिग लड़कियों को इस परंपरा के खिलाफ खड़ा कर दिया है. रेखा कालिंदी नामक एक युवती ने कुछ महीने पहले अपने मां-बाप और समाज के विरोध के बावजूद इस दिशा में पहल की थी. उसकी इस पहल में अब धीरे-धीरे कई लड़कियां शामिल हो गई हैं. उनके इस अभियान में प्रशासन भी उनकी मदद कर रहा है. यह साहसिक फैसला करने वाली तीन लड़कियों-रेखा कालिंदी,सुनीता महतो व अफसाना खातून से राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने हाल ही में राष्ट्रपति भवन में मुलाकात कर उनका हौसला बढ़ाया था. राष्ट्रपति ने इन लड़कियों के साहसिक कदम के बारे में जानकर उनको दिल्ली बुलवाया था.
इन तीनों के साहस ने इलाके की दूसरी लड़कियों को भी बाल विवाह के खिलाफ एकजुट कर दिया है. अब अक्सर ऐसे खबरें जिले के विभिन्न गांवों से आ रही हैं जहां लड़कियां मा-बांप की मर्जी के खिलाफ बाल विवाह से इंकार करते हुए पढ़ाई को तरजीह दे रही हैं. सबसे ताजा मामला जिले के झालदा दो नंबर ब्लाक के ओलदी गांव के निवासी निमाई कुमार की पुत्री अहिल्या का है. उस के पिता निमाई कुमार बीड़ी मजदूर हैं. पढ़ाई में दिलचस्पी के चलते दो साल पहले अहिल्या का दाखिला पातराहातु चाइल्ड लेबर स्कूल में हुआ था. इसी दौरान अचानक उसके पिता ने कोटशिला थाना इलाके के बड़तलिया में एक लड़के से उसका विवाह तय कर दिया. अहिल्या ने इस मामले की जानकारी अपने मित्रों को दी. इसके बाद यह बात उसके शिक्षकों तक पहुंच गई. स्कूल के शिक्षकों ने अहिल्या के पिता को काफी समझाया-बुझाया और यह विवाह रोकने में कामयाब हो गए. अहिल्या के पिता की दलील है कि मजदूरी से पूरे परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करना काफी मुश्किल है. इसलिए उन्होंने अहिल्या का विवाह तय कर दिया था ताकि उसे इस दुख से मुक्ति मिल सके.
दूसरी ओर, जिले के सहायक श्रम आयुक्त प्रसेनजीत कुंडू का कहना है कि पुरुलिया के पिछड़े क्षेत्रों में नारी सशक्तिकरण व बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. इसी वजह से अब लोग जागरूक हो रहे हैं. विवाह रद्द होने के बाद अहिल्या फिर से स्कूल जाने लगी. वह अब पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है. अहिल्या कहती है कि मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं ताकि घर की गरीबी दूर कर सकूं. इन छोटी लड़कियों के इस अभियान ने सरकार व बाल विवाह रोकने का दावा करने वाले तमाम गैर-सरकारी संगठनों को आईना तो दिखा ही दिया है.

6 comments:

  1. इस सराहनीय क्रान्ति को स्वयं देख पाने और दूसरों में इस शुभ समाचार को बांटने के लिये साधुवाद।

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  2. बहुत अच्छा लगा। मनुष्य जब अपना संघर्ष स्वयं करना प्रारम्भ कर दे तो यह मुक्ति की ओर पहला कदम होता है। प्रशासन का सहयोग एक सुखद पहलू है।

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  3. साहसिक एवं सराहनीय प्रयास. इस खबर को पहुँचाने के लिए धन्यवाद.

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  4. बढ़ता रहे जागरूकता का यह कारवाँ।

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  5. aapne apne blog ke corner me print media me blog charcha ka tag raga rakha hai........lekin khud ka blog block kiya hua hai...............agar aap apne blog ka lock nahi kholengi to kaise aapka blog bhi paper me aaega

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