एक बहुत पुरानी कहावत है कि बुरे वक्त में परछाई भी साथ छोड़ देती है। माकपा की अगुवाई वाली वाममोर्चा सरकार को शायद अब इस कहावत का अर्थ समझ में आ रहा है। बीते लोकसभा चुनाव में वाममोर्चा की किस्मत क्या बिगड़ी, राज्य के आईएएस अफसरों में डेपुटेशन पर केंद्र में जाने की होड़ मच गई है। जिन अफसरों के सहारे बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार ने राज्य में औद्योगिकीकरण की जोरदार मुहिम शुरू की थी, अब वे भी एक-एक कर बंगाल को लाल सलाम करने लगे हैं। दो महीने बाद भी यह सिलसिला थमता नहीं नजर आ रहा है। बीते कुछ हफ्तों के दौरान राज्य के कई काबिल आईएएस अफसरों के केंद्र की सेवा में जाने की वजह से प्रशासन तेजी से पंगु होता जा रहा है। बीते सप्ताह भी दो अफसर दिल्ली चले गए। अभी कोई एक दर्जन अफसर केंद्र में जाने के लिए हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे अफसरों की लगातार लंबी होती सूची ने राज्य सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं। इन अफसरों की दलील है कि दिल्ली में कामकाज के बेहतर मौके तो हैं ही, वहीं राजनीतिक हस्तक्षेप भी बहुत कम है।
ताजा मामला दो अफसरों का है। 1984 बैच के आईएएस अफसर आर.डी.मीना दिल्ली में बंगाल के अतिरिक्त आवासीय आयुक्त बनाए गए हैं। इसी तरह स्वास्थ्य विभाग में परियोजना निदेशक रहे अनूप अग्रवाल के केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री शिशिर अधिकारी का निजी सचिव बनने की चर्चा है। इससे पहले बंगाल काडर के तीन अफसर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ जुड़ गए थे। तृणमूल कांग्रेस के मंत्री भी राज्य के आईएएस अफसरों को अपने साथ रखना चाहते हैं। कुछ अफसरों ने अपने गृह राज्य में तैनाती का आवेदन दे रखा है तो कुछ अध्ययन अवकाश पर जाना चाहते हैं।
बीते कुछ हफ्तों के दौरान जिन अफसरों ने केंद्र सरकार के तहत विभिन्न स्थानों पर तैनाती ली है उनमें राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुनील मित्र, वस्त्र आयुक्त मनोज पंत, विशेष सचिव (उद्योग) एस.किशोर, कोलकाता मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथारिटी (केएमडीए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पी.आर.वाभिष्कर व शहरी विकास मंत्रालय में प्रमुख सचिव पी.के.प्रधान जैसे लोग शामिल हैं। वाणिज्य कर आयुक्त एच.के. द्विवेदी (1988) को राज्य का नया मुख्य चुनाव अधिकारी बनाए जाने की चर्चा है। इस पर पर रहे देवाशीष सेन को पश्चिम बंगाल बिजली विकास निगम का प्रबंध निदेशक बनाया गया है।
एख आईएएस अफसर कहते हैं कि इस राज्य में काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी को भी पांच हजार रुपए खर्च करने के लिए ऊपर से मंजूरी लेनी पड़ती है। ऊपर से हर काम में राजनीतिक हस्तक्षेप होता है। एक अन्य अधिकारी कहते हैं कि हर आईएएस अधिकारी केंद्र में काम करना चाहता है। किसी भी काडर का अधिकारी कुछ साल तक राज्य सरकार के साथ काम करने के बाद केंद्र में जाना चाहता है। अबकी अगर आईएएस अफसरों का पलायन एक मुद्दा बन गया है तो इसकी वजह यह है कि सरकार के करीबी समझे जाने वाले अधिकारी भी बाहर जाने के लिए बेताब हैं।
यहां हालात ऐसे बन गए हैं कि दिल्ली में केंद्र सरकार के साथ डेपुटेशन की अवधि पूरी कर लेने वाले कम से कम दो अधिकारी राज्य में नहीं लौटना चाहते। इनमें से एक ने तो दो साल के अध्ययन अवकाश का आवेदन दे रखा है ताकि बंगाल नहीं लौटना पड़े।
फिलहार राज्य सरकार ने एक-एक अफसरों को दो-दो-तीन-तीन विभागों का जिम्मा सौंप रखा है। लेकिन इससे समस्या और जटिल हो रही है। अफसरों के पलायन से सरकार की हरी झंडी का इंतजार कर रहीं विभिन्न परियोजनाएं लटक गई हैं। अब भी लगभग एक दर्जन अधिकारी किसी तरह केंद्र में जाने के जुगाड़ में हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में इस समस्या के और गंभीर होने का अंदेशा है।
Sunday, August 16, 2009
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