(इधर कोई एक हफ्ते कोलकाता से बाहर रहा। इस दौरान कंप्यूटर से संबंध नहीं था। सो, ब्लॉग पर भी वीरानी छाई थी। इस एक हफ्ते कहां रहा, क्या किया, इसकी चर्चा कभी बाद में। फिलहाल तो जसवंत सिंह के निष्कासन और भाजपा में आए भूकंप के झटके पहाड़ियों की रानी कही जाने वाली दार्जिलिंग की वादियों में भी लग रहे हैं। इसी पर यह रिपोर्ट-प्रभाकर मणि तिवारी)
पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग की पहाड़ियों में बरसों से चलने वाले अलग गोरखालैंड राज्य की मांग में बरसों से चल रहे आंदोलन की राह अब पहाड़ी पगडंडियों की तरह ही सर्पीली हो गई है। पूर्व भाजपा नेता और स्थानीय सांसद जसवंत सिंह को पार्टी से निकाले जाने और भाजपा में लगातार बिखराव के चलते इस आंदोलन की धार अचानक कुंद होने लगी है। जसवंत को पार्टी से निकाले जाने पर आंदोलन की अगुवाई करने वाले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेताओं ने कहा था कि उनका गठजोड़ भाजपा से है, जसवंत से नहीं। लेकिन अब पार्टी जिस तरह तेजी से बिखर रही है उससे स्थानीय लोगों की आंखों में अंगड़ाई लेता अलग राज्य का सपना भी मुरझाने लगा है। इसके साथ ही मोर्चा के नेता अब इस असमंजस से जूझ रहे हैं कि वे जसवंत के साथ संबंध रखें या भाजपा के। मोर्चा के नेता भले असमंजस में हों, आम लोगों को तो लगता है कि जसवंत का भाजपा से जाना इन पहाड़ियों के लिए एक ऐसा भूस्खलन है जिसने अलग राज्य के रास्ते सामयिक तौर पर तो बंद कर ही दिए हैं।
जसवंत को पार्टी से निकाले जाने के बाद मोर्चा प्रमुख विमल गुरुंग उनसे कई बार फोन पर बातचीत कर चुके हैं। मोर्चा के दो नेता उनसे मुलाकात के बाद कल ही दिल्ली से यहां लौटे हैं। मोर्चा की केंद्रीय समिति के नेता अमर लामा कहते हैं कि हमारा गठजोड़ भाजपा से था। इसलिए हमने लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह का समर्थन किया। वे कहते हैं कि भाजपा ने उनकी जगह किसी और को भी यहां मैदान में उतारा होता तो हम उसका भी इसी तरह समर्थन करते। विमल गुरुंग ने फिलहाल इस मामले पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है। वे कहते हैं कि हम दोनों यानी जसवंत और भाजपा से संबंध बनाए रखेंगे। गुरुंग भले दोनों से संबंध बनाए रखने की बात कहें, वे भी जानते हैं कि ऐसा संभव नहीं है। इसके अलावा अब भाजपा में जिस तेजी से बिखराव शुरू हुआ है उससे मोर्चा के नेताओं की नींद उड़ गई है। केंद्र सरकार की ओर से आयोजित तितरफा बैठक में गोरखा पर्वतीय परिषद अधिनियम रद्द कर जिस वैकल्पिक प्रशासनिक ढांचे की बात कही गई थी, उसे इन नेताओं ने अलग राज्य की दिशा में एक ठोस कदम करार दिया था। लेकिन उसके तुरंत बाद हुए जसवंत प्रकरण ने उनकी उम्मीदें धूमिल कर दी हैं।
अब निर्दलीय सांसद बन चुके जसवंत सिंह ने जल्दी ही अपनी कर्मभूमि दार्जिलिंग लौटने की बात कही है। मोर्चा के एक नेता बताते हैं कि जसवंत सिंह जल्दी ही यहां आएंगे। लेकिन आम लोगों को इसका भरोसा नहीं है। चौक बाजार इलाके में चाय की दुकान चलाने वाले हरका बहादुर छेत्री कहते हैं कि हमने इस उम्मीद के साथ जसवंत सिंह को वोट दिया था कि वे गोरखालैंड की स्थापना में सहायता करेंगे। लेकिन पहले तो केंद्र में भाजपा की सरकार ही नहीं बनी। अब जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया। छेत्री कहते हैं कि मोर्चा के नेता अब भले जसवंत की बजाय भाजपा से गठजोड़ की बात कह कर लोगों को दिलासा दे रहे हों, अलग राज्य की राह आसान नहीं रही। भाजपा तो खुद ही अपने बिखरते कुनबे को बचाने के लिए जूझ रही है। ऐसे में उसे दार्जिलिंग में अलग राज्य का ख्याल कैसे आएगा। मॉल रोड स्थित एक होटल के मालिक सूरज थापा कहते हैं कि अब अलग राज्य का सपना टूटने लगा है। इस सपने को साकार करने के लिए इलाके के लोगों ने जसवंत सिंह को जो लाखों वोट दिए थे, वह लगता है कूड़ेदान में चला गया है।
जसवंत को निकाले जाने के साथ ही अब पहाड़ियों का माहौल बदल गया है। लोग कहते हैं कि जसवंत सिंह जब भाजपा में रहते कुछ खास नहीं कर पाए तो अब निर्दलीय होकर क्या करेंगे। लेकिन मोर्चा के नेताओं को अब भी जसवंत से उम्मीद है। मोर्चा प्रमुख गुरुंग कहते हैं कि हम जल्दी ही एक रैली में अपने रुख का खुलासा करेंगे।
वैसे, जसवंत की जिस किताब के चलते उनको पार्टी से जाना पड़ा, उसके जरिए उन्होंने दार्जिलिंग के लोगों का कर्ज कुछ हद तक जरूर चुका दिया है। उस पुस्तक के पिछले कवर पर जसवंत के परिचय में लिखा है कि वे दार्जिलिंग पर्वतीय राज्य से लोकसभा के लिए चुने गए हैं। पुस्तक के प्रकाशक का कहना है कि ऐसा गलती से हुआ है। लेकिन मोर्चा के नेता कहते हैं कि यह इस बात का सबूत है कि जसवंत सिंह इन पहाड़ियों को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के प्रति कितने गंभीर हैं।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अब जसवंत और गोरखा मोर्चा दोनों की आगे की राह कठिन हो गई है। अब जसवंत के दार्जिलिंग दौरे के बाद ही परिस्थिति साफ होने की उम्मीद है। जसवंत अपना राजनीतिक करियर दार्जिलिंग से ही आगे बढ़ाएंगे मोर्चा उनसे नाता रखेगा या भाजपा से अलग राज्य की मांग में चलने वाला आंदोलन अब किस दिशा में जाएगा इन सवालों का जवाब अब आने वाले दिनों में ही मिलेगा। तब तक तो अलग राज्य के सपने पर भी अनिश्चयता का कोहरा छा गया है। ठीक वैसा ही घना कोहरा जो बरसात के इस सीजन में इन पहाड़ियों की पहचान बन जाता है। जनसत्ता से
Thursday, August 27, 2009
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