आर्थिक मंदी और जरूरी वस्तुओँ की आसमान छूती कीमतों ने पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गापूजा के आयोजकों को मुश्किल में डाल दिया है। इस बार पूजा के लिए वसूली जाने वाली चंदे की रकम में गिरावट का अंदेशा तो है ही, प्रायजकों का भी टोटा पड़ रहा है। आयोजन समितियों का कहना है कि प्रायोजकों ने मंदी के चलते अपने बजट में भारी कटौती कर दी है। इसका असर आयोजन पर पड़ना लाजिमी है।
एक पूजा समिति के सदस्य देवाशीष पाल बताते हैं कि पूजा को अब महज पांच सप्ताह बचे हैं। लेकिन हमें अब तक ढंग का प्रायोजक नहीं मिला है। जिन प्रायोजकों से अभी तक बात हुई है उन्होंने इस बार काफी कम धन खर्च करने का प्रस्ताव दिया है। उल्लेखनीय है कि दुर्गा पूजा आयोजन समितियों को चंदे के अलावा पंडालों के आस पास होर्डिग बैनर तथा स्टालों के लिए प्रायोजकों पर निर्भर रहना पड़ता है। कई पूजा आयोजकों ने बताया अबकी दुर्गा पूजा आयोजन के लिए उनको चंदे में गिरावट का अंदेशा है। मंदी के लंबे दौर की वजह से कुम्हारटोली के मूर्तिकार भी आशंकित हैं कि इस साल उनको अपनी बनाई मूर्तियों के ठीक-ठाक दाम नहीं मिलेंगे। कुम्हारटोली शिल्पी संगठन के सचिव बाबुल पाल ने बताया कि इस बार छोटी मूर्तियों के लिये अधिक आर्डर मिल रहे हैं।
एक मूर्तिकार रमेश प्रमाणिक बताते हैं कि मूर्ति निर्माण के लिये जरूरी मिट्टी के अलावा, धान की भूसी, रस्सी, जूट, लकड़ी और सजावटी सामानों और रंग की कीमतों में बीते साल के मुकाबले लगभग 25 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन बजट में कटौती के चलते पूजा आयोजक मूर्तियों की अधिक कीमत देने को तैयार नहीं हैं।
जयपुर के हवा महल की तर्ज पर पंडाल बना रहे कालेज स्क्वायर के आयोजकों ने बजट के बारे में कोई भी खुलासा करने से मना कर दिया। बीते साल उनका बजट 25 लाख का था। समितियों का कहना है कि अबकी दुर्गा पूजा पर मंदी का असर साफ नजर आएगा। पंडाल का आकार तो घटेगा ही, इनकी साज-सज्जा पर होने वाले खर्च में भी भारी कटौती होगी। ध्यान रहे कि महानगर में दर्जनों ऐसे आयोजन होते हैं जिनका बजट पहले 50 लाख से एक करोड़ के बीच होता था। अकेले बिजली की सजावट पर ही लाखों रुपए खर्च किए जाते थे। कई आयोजन समितियों ने बीते साल के मुकाबले अपना बजट आधा कर दिया है।
Monday, August 17, 2009
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