Sunday, August 9, 2009

खेत ही बाड़ खाने पर उतारू है बंगाल में!

पश्चिम बंगाल में क्या खेत ही बाड़ को खाने पर उतारू है? बर्दवान जिले के मंगलकोट के पास शुक्रवार को पुलिस वालों ने जिस तरह तृणमूल कांग्रेस की रैली के लिए बने मंच पर चढ़ कर उसके नेताओं व कार्यकर्ताओं पर लाठियां बरसाईं उससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या यहां माकपा और प्रशासन मिल कर बुद्धदेव सरकार की कब्र खोदने पर तुले हैं। माकपा का प्रदेश नेतृत्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी की टिप्पणियों के लिए दो दिनों से लगातार उन पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए उनकी खिंचाई कर रहा है। बंगाल में मुख्य विपक्षी दल के मंच पर पुलिस के चढ़ कर लाठी भांजने की हाल के वर्षों में यह शायद पहली घटना है।
पश्चिम बंगाल में बर्दवान जिले का मंगलकोट कस्बा राजनीतिक हिंसा के सवाल पर नंदीग्राम बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। मंगलकोट में बीते दो महीने से माकपा के एक नेता की हत्या के मुद्दे पर माकपा काडर आक्रामक मूड में हैं। राजनीतिक हिंसा के सवाल पर पार्टी का प्रदेश नेतृत्व तो इतने आक्रामक मूड में है कि उसने राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी से भी दो-दो हाथ करने का मन बना लिया है। लोकसभा चुनावों के बाद बंगाल में राजनीतिक हिंसा का जो दौर शुरू हुआ है वह कहीं से थमता नहीं नजर आ रहा है। मंगलकोट ने इस मामले में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी हैं। इस मामले में उसने लालगढ़ को भी पीछे छोड़ दिया है।
मंगलकोट पर फिलहाल सरकार नहीं माकपा का राज है। कांग्रेस के कई विधायकों की बीते महीने वहां जम कर पिटाई हुई। उसके बाद कल मंगलकोट से काफी पहले तृणमूल कांग्रेस की एक रैली पर पुलिस ने जम कर लाठियां बरसाईं। तृणमूल वालों ने भी पुलिस पर पथराव किए। उसके बाद पुलिस के जवानों ने मंच पर चढ़ कर नेताओं की पिटाई की। अब पार्टी प्रमुख व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को मंगलकोट का दौरा करने का एलान किया है। इससे इलाके में उत्तेजना और बढ़ने का अंदेशा है।
इसबीच, राज्य में जारी राजनीतिक हिंसा पर राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी और माकपा में ठन गई है। गांधी ने एक बयान में सवाल उठाया था कि जब तमाम राजनीतिक दल हिंसा रोकने पर सहमत हैं तो आखिर इस पर अंकुश क्यों नहीं लग रहा है? उनका कहना था कि जो लोग कुछ करने की हालत में वे समुचित कदम नहीं उठा रहे हैं। राज्य सरकार से अवैध हथियारों की बिक्री रोकने और अपराधियों पर अंकुश लगाने का अनुरोध किया था। गांधी ने बंगाल में हिंसा जारी रहने पर गहरी चिंता जताई थी।
उन्होंने तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं से कहा था कि वे दलगत भावना से ऊपर उठ कर अपने-अपने संगठनों में हिंसक लोगों की पहचान करें और उन्हें कानून के हवाले करें।
गांधी ने अपने बयान में कहा था कि मुझे भरोसा है कि सरकार अवैध हथियारों के कारोबार को रोकने के लिए आगे आएगी। हिंसक लोगों पर नकेल लगाने के लिए तेजी के साथ कार्रवाई करेगी और लोगों में यह भरोसा पैदा करेगी कि उनकी सुरक्षा के साथ राजनीति नहीं जोड़ी जाएगी। राज्यपाल के इस बयान पर माकपा में तीखी प्रतिक्रया हुई। उसने ईंट का जवाब पत्थर से देने की तर्ज पर एक लिखित बयान में राज्यपाल को अपने संवैधानिक पद की गरिमा बनाए रखते हुए और तटस्थ रहने का सुझाव दिया। इसके अलावा भी बयान में कई बातें कही गईं थी। वैसे, माकपा और राज्यपाल में कोई पहली बार नहीं ठनी है। नंदीग्राम में हुई हिंसा पर राज्यपाल की टिप्पणी और फिर राजभवन में स्वेच्छा से बिजली की कटौती जैसे मुद्दों पर भी माकपा ने गांधी की जम कर खिंचाई की थी।
राज्यपाल की चिंता जायज थी। बीते बुधवार को तृणमूल कांग्रेस और वाममोर्चा का एक प्रतिनिधिमंडल अलग-अलग उनसे मिला था। इन दोनों ने राज्य में उनसे राज्य में जारी हिंसा को रोकने की दिशा में पहल की अपील की थी। ऐसे में गांधी का यह सवाल गलत नहीं था कि अगर तमाम दल इसे रोकने के लिए कृतसंकल्प हैं तो आखिर यह रुक क्यों नहीं रही है। माकपा और तृणमूल कांग्रेस इस हिंसा के लिए एक-दूसरे को जिम्मेवार ठहराते रहे हैं। लेकिन दोनों शायद इस मामूली तथ्य को भूल गए हैं कि एक हाथ से ताली नहीं बजती। इसी तरह दोनों दलों में हिंसा में मरने वाले अपने समर्थकों की तादाद बढ़ा-चढ़ा कर बताने की होड़ लगी है। अगर दोनों दलों के दावों को मान लें तो राज्य में बीते दो महीने से जारी इस हिंसा में मृतकों की तादाद दोगुनी हो जाएगी।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पूरा मामला खुद को इस हिंसा का शिकार बता कर सहानुभूति बटोरने और अपना राजनीतिक हित साधने का है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस हिंसा को रोकने की जिम्मेवारी प्रशासन व राज्य सरकार की है। लेकिन फिलहाल वह भी लालगढ़ की तरह मंगलकोट के मामले में भी फेल होती नजर आ रही है। ऐसे में मंगलकोट में सामान्य स्थिति बहाल होने के कोई आसार नहीं नजर आते।

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