Thursday, August 6, 2009

पाबंदियों वाला राज्य है मणिपुर


पूर्वोत्तर की सात बहनों में शुमार मणिपुर घाटी की गिनती उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में होती है। दरअसल, यह अब कोई नई खबर नहीं है। इसकी वजह यह है कि मणिपुर घाटी में जितने उग्रवादी संगठन हैं उतने शायद इलाके के किसी भी राज्य में नहीं हैं। इस राज्य में कोई तीन दर्जन छोटे-बड़े संगठन सक्रिय है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह घाटी हमेशा गलत वजहों से ही सुर्खियों में रही है। राजधानी इंफाल में इस समय भी कर्फ्यू जारी है।
राज्य में उग्रवाद के फलने-फूलने की एक प्रमुख वजह इस राज्य की सीमा का म्यामां से मिलना है। लेकिन यह भी कोई खबर नहीं है। खबर यह है कि बीते कुछ वर्षों के दौरान मणिपुर पाबंदियों वाला राज्य बन गया है। कभी कोई भूमिगत संगठन यहां हिंदी फिल्मों पर पाबंदी लगाता है तो कभी कोई छात्र संगठन छात्रों के दोपहिया वाहनों के इस्तेमाल पर। मामाला यहीं तक सीमित नहीं है। पाबंदी लगाने की इस होड़ में राज्य सरकार भी पीछे नहीं है। उसने किसी भी सरकारी भवन में सरकार विरोधी कोई कार्यक्रम आयोजित करने पर पाबंदी लगा दी है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह पर्वतीय राज्य अब इलाके में पाबंदी वाले सबसे बड़े राज्य के तौर पर उभर रहा है।
सबसे ताजा मामले में छात्र संगठन डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स अलायंस, मणिपुर (डीएसएएम) ने राजधानी इंफाल में जारी एक बयान में कहा है कि दोपहिया संस्कृति इस राज्य और कुछ परिवारों की अर्थव्यवस्था के अलावा अकादमिक गतिविधियों को भी प्रभावित कर रही है। संगठन ने कहा है कि बहुत से छात्र अपने शैक्षणिक संस्थानों तक आने-जाने के लिए दोपहिया वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। खासकर कोचिंग संस्थान तो रोमांस के अड्डे बन गए हैं। संगठन ने कहा है कि इस पाबंदी को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए समुचित कदम उठाए जाए जाएंगे। संगठन ने कहा है कि उसने मजबूरी में इस पाबंदी का फैसला किया है क्योंकि इससे छात्रों का कैरियर प्रभावित हो रहा है। संगठन ने कहा है कि यह पाबंदी 12वीं कक्षा तक के छात्रों पर लागू होगी। इस समय मणिपुर में ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को दसवीं की परीक्षा पास करने पर इनाम के तौर पर दोपहिया वाहन खरीद देते हैं। मौजूदा कानूनों के तहत राज्य में किसी भी व्यक्ति को 18 वर्ष की उम्र के पहले डा्रइविंग लाइसेंस नहीं दिया जा सकता । लेकिन मणिपुर में छात्रों को इस नियम से छूट दी गई है। संगठन ने कहा है कि इस पाबंदी को असरदार तरीके से लागू करने के लिए समुचित कदम उठाए जाएंगे। उसने परिवहन अधिकारियों से भी छात्रों को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने के मामले में नियमों का कड़ाई से पालन करने की अपील की है।
इससे पहले वर्ष 2000 में मणिपुर के लगभग 32 उग्रवादी संगठनों ने राज्य में हिंदी फिल्मों व संगीत पर भी पाबंदी लगा दी थी। यह पाबंदी आज तक लागू है। इस मामले में रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट यानी आरपीएफ ने सबसे अहम भूनमिका निभाई थी। संगठन की दलील थी कि हिंदी फिल्मों का राज्य की संस्कृति पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। यह संगठन पहले राज्य मे नशीली दवाओं के विक्रेताओं और अश्लील फिल्मों का कारोबार करने वालों पर भी पाबंदी लगा चुका है। संगठन ने इस कारोबार से जुड़े कई लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी है। इलाके के एक अन्य. प्रमुख संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट यानी यूएनएलएफ ने भी इन पाबंदियों का समर्थन किया है। इन संगठनों ने राज्य में शराबखोरी पर भी पूरी पाबंदी लगा दी है।
वैसे, मणिपुर सरकार भी पाबंदियों के मामले में किसी से पीछे नहीं है। सरकार ने बीते सप्ताह एक सर्कुलर जारी कर सरकारी भवनों में किसी सरकार-विरोधी कार्यक्रम के आयोजन पर पाबंदी लगा दी थी। सरकार की दलील है कि किसी सरकारी भवन का इस्तेमाल सरकार-विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकता। राज्य के मुख्य सचिव जरनैल सिंह की ओर से जारी इस सर्कुलर में कहा गया है कि सरकारी इमारतें सरकारी कामकाज के लिए ही इस्तेमाल की जा सकती हैं। इनका इस्तेमाल सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकता। कुछ गैसरकारी संगठनों ने आईरोम शर्मिला की भूख हड़ताल के छह साल पूरे होने के मौके पर एक सेमिनार के आयोजन के लिए सरकारी भवन के इस्तेमाल की अनुमति मांगी थी। उसके बाद ही सरकार ने उक्त फैसला किया।
राज्य के विपक्षी राजनीतिक दलों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। मणिपुर पीपुल्स पार्टी यानी एमपीपी के प्रवक्ता जी. जयकुमार शर्मा ने इस फैसले को मणिपुर सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम से भी ज्यादा खतरनाक करार दिया है। वे कहते हैं कि उक्त अध्यादेश के जरिए सरकार आम लोगों की आवाज दबाने का प्रयास कर रही है। मणिपुर भाजपा के अध्यक्ष एच., बोरोबाबू इस फैसले को जनविरोधी करार देते हैं।
मामला यहीं तक सीमित नहीं है। अभी बीते सप्ताह ही पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी आफ कांग्लीपाक नामक एक उग्रवादी संगठन ने स्थानीय आदिवासियों में गर्भ निरोधक उपायों पर पाबंदी लगा दी थी। उसकी दलील थी कि बाहरी लोगों की तादाद बढ़ने के कारण स्थानीय लोगों के वजूद पर खतरा पैदा हो गया है। वे अपने ही घर में अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं।
और जहां तक दोपहिया वाहनों पर पाबंदी का सवाल है, मणिपुर विश्वविद्यालय में एमए अंग्रेजी के छात्र अजमल सिंह कहते हैं कि यह गैरकानूनी है। छात्र अपनी कक्षा में आने के लिए किस वाहन का इस्तेमाल करेग, यह सिर्फ वही तय कर सकता है, कोई छात्र संगठन नहीं। मणिपुर के मुख्यमंत्री ईबोबी सिंह छात्र संगठन के इस फैसले के प्रति अनभिज्ञता जताते हैं। लेकिन राज्य में समय-समय पर विभिन्न संगठनों और सरकार की ओर से जारी होने वाली पांबदियों का समर्थन करते हैं। वे कहते है कि राज्य की परंपरा और संस्कृति के हित में ही ऐसा किया जा रहा है। जहां तक उग्रवाद या इस पर काबू पाने की बात है, यह एक अलग मुद्दा है। और इस पर सरकार अकेले कोई फैसला नहीं कर सकती। मुख्यमंत्री के इस बयान से साफ है कि राज्य के लोगों को आगे भी कई और पाबंदियां झेलनी पड़ सकती हैं।

4 comments:

  1. भारतीय राजनिति व कमजोर सरकार होने पर अक्सर ऐसा होता है....जनता को जागरूक करने के जरूरत है....

    ReplyDelete
  2. Just to complete Your interesting report, I invite You to see in my site a great collection of views of borders.
    http://www.pillandia.blogspot.com
    Best wishes from Italy!

    ReplyDelete