Thursday, July 23, 2009

बंगाल माकपा पर लगा माओवाद का ग्रहण !

श्चिम बंगाल में माकपाइयों पर माओवाद का ग्रहण लग गया है। माओवादी अपनी सक्रियता वाले तीन जिलों-पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया में माकपाइयों की चुन-चुन कर हत्या कर रहे हैं। माओवादियों के आतंक के मारे में माकपा नेताओं व काडरों में पार्टी से नाता तोड़ने की होड़ मच गई है। पश्चिम मेदिनीपुर जिले के लालगढ़ में बीते महीने केंद्रीय सुरक्षा बलों व राज्य पुलिस का साझा अभियान शुरू होने के बाद से माओवादियों ने इलाके में माकपा के एक दर्जन से ज्यादा नेताओँ और कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी है। इसके अलावा लगभग इतने ही लोग लापता हैं। सुरक्षा बलों की भारी तादाद में मौजूदगी के बावजूद माकपाइयों की हत्या का सिलसिला थमता नहीं नजर आ रहा है। ताजा घटना में माओवादियों ने बंगाल के बेलपहाड़ी क्षेत्र में बुधवार माकपा के एक नेता फागू बास्की की गोली मारकर हत्या कर दी। पश्चिमी मिदनापुर जिले के पुलिस बास्की माकपा की बेलपहाड़ी शाखा का सचिव था। इस एक महीने के दौरान माओवादियों ने इलाके में जितनी हत्याएं की हैं, वह बीते सात वर्षों के सालाना औसत से ज्यादा है।
वर्ष 2002 से अब तक माओवादियों ने इलाके में 110 से ज्यादा लोगों की हत्याएं की हैं। इनमें पुलिस वालों के अलावा माकपा के नेता व समर्थक शामिल हैं। लालगढ़ इलाके में सुरक्षा बलों का अभियान शुरू होने के बाद अब तक एक भी बड़ा माओवादी नेता न तो मारा गया है और ही गिरफ्तार हुआ है। इसके उलट माकपा के दो दर्जन से ज्यादा काडर या मारे जा चुके हैं या फिर लापता हैं। माओवादियों के आतंक के चलते इलाके में काडरों में माकपा से नाता तोड़ने की होड़ मच गई है। हर सप्ताह औसतन दो सौ लोग पार्टी छोड़ कर पुलिस अत्याचार विरोधी समिति में शामिल हो रहे हैं। कई गावों में तो माकपा और वामपंथ का कोई नामलेवा तक नहीं बचा है।
प्रदेश माकपा नेतृत्व का दावा है कि वर्ष 2002 से अब तक माओवादियों ने पार्टी के 80 लोगों की हत्या की है। यानी हर साल औसतन दस काडरों की हत्या। लेकिन इस साल तो एक महीने के भीतर अकेले लालगढ़ इलाके में ही कोई दो दर्जन लोग माओवादियों के हाथों मारे जा चुके हैं। इलाके में माकपाइयों की हत्या का सिलसिला बीते महीने की 14 तारीख से शुरू हुआ। तब लालगढ़ अभियान की तैयारी ही चल रही थी। उस दिन माओवादियों ने धरमपुर में तीन काडरों की हत्या कर दी। 17 जून को सुरक्षा बलों का अभियान शुरू होने के दिन माकपा के चार लोग मारे गए। इनमें से तीन की हत्या लोधासुली में हुई और एक की ग्वालतोड़ में। 10 जुलाई को माओवादियों ने सिरसी गांव में माकपा के एक पूर्व शाखा सचिव गुरूचरण महतो की हत्या कर दी। उसके तीन दिनों बाद 14 जुलाई को ग्वालतोड़ में माकपा के तीन और समर्थकों, स्वपन महतो, तारिणी महतो व देव सिंघा की हत्या कर दी गई। माओवादियों ने 15 जुलाई को पुरुलिया के बेल्दी इलाके में माकपा की जोनल समिति के एक सचिव गंगाधर महतो की हत्या कर दी। की हत्या कर दी। इसी तरह 18 जुलाई को पार्टी के दो और सदस्य मारे गए। इनमें से जलधर महतो की हत्या झारग्राम में हुई और अशोक घोष की ग्वालतोड़ में। अब ताजा घटना कल की है।
इन हत्याओँ के बाद माकपाइयों में भारी आतंक है। बीते एक महीने में पांच सौ से ज्यादा लोग पार्टी से नाता तोड़ चुके हैं। अब उस इलाके में माकपा के बड़े नेता भी पुलिस की सुरक्षा में अपने सुरक्षित ठिकानों में दुबक कर बैठे हैं। वे इन हत्याओं के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। इस डर से कहीं माओवादियों को उके ठिकानों का सुराग नहीं मिल जाए।
माकपा के प्रदेश सचिव विमान बसु का कहना है कि लालगढ़ इलाके में विपक्ष के सहयोग से ही माओवादी माकपा नेताओं व काडरों पर जानलेवा हमले कर रहे हैं। वे मानते हैं कि इन हत्याओँ से लोगों में भारी आतंक है। बसु कहते हैं कि हत्या और आतंक की राजनीति से किसी को कुछ हासिल नहीं होगा। माकपा काडरों में फैला आतंक दूर करने के लिए मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य बीते सप्ताह बांकुड़ा व पुरुलिया जिलों का दौरा कर चुके हैं। बावजूद इसके हालात जस के तस हैं।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि माकपा काडरों की चुन-चुन कर हत्या से साफ है कि माओवादियों में पार्टी के खिलाफ भारी नाराजगी है। उनलोगों ने इलाके में विकास नहीं होने और भ्रष्टाचार के लिए माकपा को जिम्मेवार ठहराया है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि हत्याओं का यह सिलसिला जल्दी नहीं थमा तो आने वाले दिनों में माकपा से पलायन और तेज होने का अंदेशा है। और इसका खमियाजा पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है।

3 comments:

  1. हत्याओं की राजनीति करने वाली माकपा को समझना चाहिये कि बबूल बोयेंगे तो आम कहां से होंगे

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  2. वामपंथियों का ऐसा भीषण हश्र तो कभी मार्क्स ने भी नहीं सोचा होगा।

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  3. मौकापरस्त और सुविधाभोगी लोग विभिन्न दलों में सत्ता की मलाई चाटने के लिए शामिल तो हो जाते हैं परन्तु उनकी प्रतिबद्धता केवल अपने स्वार्थ के प्रति होती है. ऐसे में भगदड़ मचना स्वाभाविक ही है.

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