Tuesday, April 26, 2011

अनुशासनहीन और पार्टीविरोधी सोमनाथ बने माकपा का सहारा

बदलाव के शोर के बीच पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में माकपा की अगुवाई वाला वाममोर्चा सत्ता में बने रहने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है। इसके लिए उसे पार्टीविरोधी और अनुशासनहीन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का सहारा लेने से भी कोई परहेज नहीं है। सोमनाथ को जुलाई 2008 में इन्हीं आरोपों के चलते माकपा से निकाल दिया गया था। माकपा नेता और आवासन मंत्री गौतम चटर्जी के अनुरोध पर सोमनाथ के चुनाव प्रचार से पार्टी के प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के बीच की खाई एक बार फिर सतह पर आ गई है। अब इस अहम चुनाव के मौके पर पार्टी महासचिव प्रकाश कारत और सीताराम येचुरी जैसे नेताओं को भी सोमनाथ का स्वागत करना पड़ रहा है।
यह बात जगजाहिर है कि माकपा के शीर्ष नेतृत्व में दक्षिणपंथी लाबी के दबाव में ही सोमनाथ जैसे कद्दावर नेता को पार्टीविरोधी गतिविधियों और अनुशासनहीनता के आरोप में माकपा से निकाल दिया गया था। उस समय इस मुद्दे पर प्रदेश और शीर्ष नेतृत्व के बीच गहरे मतभेद उभरे थे। प्रदेश माकपा के नेता सोमनाथ के खिलाफ निष्कासन जैसी कड़ी कार्रवाई के पक्ष में नहीं थे। सुभाष चक्रवर्ती समेत कई नेताओं ने तो सार्वजनिक तौर पर इस फैसले के खिलाफ सवाल उठाए थे।
सोमनाथ बीते सप्ताह से ही माकपा के समर्थन में कई रैलियों को संबोधित कर लोगों से आठवीं वाममोर्चा सरकार को सत्ता में लाने में की अपील कर रहे हैं। लेकिन गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज की तर्ज पर वाममोर्चा के नेता इस मामले को कोई तूल नहीं देना चाहते। माकपा के प्रदेश सचिव और वाममोर्चा अध्यक्ष विमान बसु ने पहले ही पत्रकारों से कहा था कि अगर सोमनाथ समेत कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से माकपा व वाममोर्चा के पक्ष में प्रचार के लिए आगे आता है उसका विरोध नहीं, स्वागत किया जाएगा। महासचिव प्रकाश कारत और पोलितब्यूरो सदस्य सीताराम येचुरी ने भी लगभग इन्हीं शब्दों में इस मुद्दे पर टिप्पणी की। लेकिन वे शायद यह भूल गए कि सोमनाथ अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि माकपा के स्टार प्रचारक और सबसे बड़े प्रवक्ता के तौर पर उभरे गौतम देव के लगातार अनुरोध की वजह से प्रचार के लिए आगे आए हैं। शायद इसलिए करात ने यह जोड़ा कि प्रचार के लिए किसी को बुलाने या नहीं बुलाने का फैसला प्रदेश नेतृत्व पर निर्भर है। गौतम देव की ओर से सोमनाथ को दिए गए प्रचार के न्योते के बाते में पूछे गए सवाल पर पहले तो विमान बसु का कहना था कि उनको इसकी जानकारी नहीं है। वे कोलकाता से बाहर थे। इससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या गौतम देव इतने ताकतवर हो गए हैं कि वे प्रदेश सचिव की अनुमति तो दूर, उनको सूचित किए बिना किसी ऐसे नेता को प्रचार का न्योता दे सकते हैं जिसे महज तीन साल पहले पार्टीविरोधी गतिविधियों के आरोप में माकपा से निकाल दिया गया हो। अगर सचमुच ऐसा है तो सोमनाथ को निकालने में पार्टी ने जिस अनुशासन का परिचय दिया था, उसकी तो देव ने धज्जियां ही उड़ा दीं।
लेकिन सोमनाथ को प्रचार का न्योता देने का फैसला अकेले गौतम का नहीं था। उन्होंने पत्रकारों को बताया था कि यह फैसला विमान बसु व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य से सलाह-मशविरे के बाद ही लिया गया है। गौतम का सवाल था कि कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि एक बार पार्टी से निकाले जाने के बाद उस नेता को वापस नहीं लिया जा सकता या फिर उससे प्रचार नहीं कराया जा सकता।
पार्टी से निकाले जाने के बाद सक्रिय राजनीति से अलग रहने का फैसला करने सोमनाथ ने पत्रकारों से कहा था कि गौतम देव लगातार अपने समर्थन में दमदम इलाके में चुनाव प्रचार करने का अनुरोध कर रहे हैं। अपने समर्थन में हुई कई रैलियों के बाद गौतम अब सोमनाथ को पार्टी में वापस लेने की मुहिम चला रहे हैं। उनका कहना है कि वापसी का फैसला तो सोमनाथ पर निर्भर है। लेकिन वाममोर्चा उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव प्रचार करने वाले ऐसे कद्दावर नेता को कब तक पार्टी से बाहर रखा जा सकता है।
सोमनाथ के प्रचार में उतरने का स्वागत मुख्यमंत्री ने भी किया है। लेकिन उन्होंने पार्टी में उनकी वापसी के सवाल पर कोई टिप्पणी नहीं की है। बुद्धदेव ने कहा कि सोमनाथ हमारी पार्टी के एक अहम नेता थे। दो-तीन साल पहले कुछ समस्याएं जरूर पैदा हो गईं। लेकिन वे अब भी पार्टी के साथ हैं। क्या उनकी वापसी होगी? इस सवाल पर मुख्यमंत्री कहते हैं कि फिलहाल इस सवाल पर विचार नहीं किया गया है। लेकिन यह तय है कि उनके चुनाव प्रचार से हमें काफी फायदा होगा।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपने कार्यकाल के सबसे अहम विधानसभा चुनाव का सामना कर रही माकपा अबकी कोई खतरा नहीं मोल लेना चाहती। यही वजह है कि केंद्रीय नेतृत्व की परवाह किए बिना ही उसने सोमनाथ जैसे नेता को चुनाव प्रचार में उतारा है। इसके साथ ही उनको पार्टी में वापस लाने की मांग भी जोर पकड़ रही है। सोमनाथ इन चुनावी रैलियों में कह चुके हैं कि वे अब भी मार्क्सवादी हैं। चुनाव का नतीजा वाममोर्चा के पक्ष में रहने की स्थिति में माकपा में सोमनाथ की वापसी के सवाल प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व का टकराव तय है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि सोमनाथ के प्रचार से माकपा को कितना फायदा होगा या फिर पार्टी में उनकी वापसी होगी या नहीं, इन जैसे कई सवालों का जवाब तो बाद में मिलेगा। लेकिन उनके कूदने से माकपा के चुनाव अभियान को मजबूती तो मिली ही है।

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