Monday, April 25, 2011

अब मीडिया से भी दो-दो हाथ करने पर तुली माकपा

विधानसभा चुनाव में से हमारी लड़ाई तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस गठबंधन नहीं है। वह तो हमारे लिए ब्रेकफास्ट है। यानी हम उसे नाश्ते में ही चट कर जाएंगे। हमारी असली लड़ाई तो कुछ मीडिया घरानों से है। यह टिप्पणी है हाल के महीनों में माकपा के सबसे बड़े प्रवक्ता और झंडाफरमबदार के तौर पर उभरे आवासन मंत्री गौतम देव की। देव की इस हुंकार से साफ है कि अबकी माकपा ने मीडिया से भी दो-दो हाथ करने का मन बना लिया है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। यानी जबरा मारे और रोने भी न दे।
राज्य में अबकी विधानसभा चुनाव हकीकत में घमासान साबित हो रहा है। सत्ता के दोनों दावेदारों में एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की होड़ लगी है। इनमें वाममोर्चा की ओर से माकपा सबसे मुखर है। दूसरी ओर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस हैं। गौतम देव को माकपा के आला नेताओँ का समर्थन भी हासिल है। ऐसा खुद उनका कहना है और माकपा जैसी अनुशासित पार्टी में ऐसा होना स्वाभाविक ही है। दरअसल, गौतम और उनकी पार्टी की नाराजगी हाल में एक बड़े मीडिया घराने की ओर से किया गया वह सर्वेक्षण है जिसमें वाममोर्चा के 294 में से महज 74 सीटों पर सिमटने की बात कही गई है और तृणमूल कांग्रेस गठबंधन को 215 सीटें दी गई हैं। माकपा नेता ने इस सर्वेक्षण को सिरे से ही खारिज कर दिया है। लेकिन इसके साथ वे अनजाने में अपना और अपनी पार्टी का डर भी बयान कर गए। उन्होंने कहा कि अगर इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के चलते दो फीसद वोट भी इधर से उधर हो गए तो कुछ वोटर हाथ से निकल सकते हैं। इसके साथ ही वे यह जोड़ना भी नहीं भूले कि किसी भी मीडिया हाउस से उनकी जाती दुश्मनी नहीं है। यानी वे जो कुछ भी कह या कर रहे हैं वह माकपा के प्रदेश मुख्यालय अलीमुद्दीन स्ट्रीट के इशारे पर।
कोलकाता प्रेस क्लब हर बार चुनावों के मौके पर तमाम राजनीतिक दलों के नेताओँ को बुलाकर प्रेस से मिलिए कार्यक्रम आयोजित करता है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के अलावा तमाम दलों के प्रमुख नेता इसमें शिरकत कर चुके हैं। ममता ने लाख कोशिशों के बावजूद समय ही नहीं दिया। इसी सिलसिले में बारी थी गौतम देव की। तीन-चार महीने पहले महानगर से सटे राजारहाट इलाके में जमीन अधिग्रहण पर उभरे विवाद के बाद गौतम देव माकपा के सबसे बड़े प्रवक्ता के तौर पर उभरे हैं। वे बहस अच्छी कर लेते हैं और तार्किक तरीके से सबूतों और आंकड़ों के हवाले अपनी बात रखते हैं। लेकिन शनिवार को उन्होंने दो-टूक शब्दों में मीडिया और उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए।
यह एक खुला रहस्य है कि चुनावों के मौके पर तमाम राजनीतिक दलों की ओर से अपने पक्ष में प्रायोजित सर्वेक्षण कराए जाते रहे हैं। लेकिन अब तक किसी पार्टी ने इन सर्वेक्षणों के खिलाफ इतने उग्र तरीके से प्रतिक्रिया नहीं जताई थी। इस सर्वेक्षण के बहाने मीडिया को कटघरे में खड़ा करने के दौरान गौतम ने बस पेड न्यूज शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन इसके अलावा सब कुछ कह दिया।
यह सही है कि बीते पांच-छह सालों के दौरान कोलकाता समेत पूरे बंगाल के मीडिया में जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ है। कोई वाममोर्चा के पक्ष में तटस्थ है तो कोई तृणमूल कांग्रेस के। इनमें से ज्यादातर तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में हैं। लेकिन एकाध चैनल और कुछ अखबार तो माकपा के पक्ष में भी जबरदस्त तरीके से लामबंद हैं। इन अखबारों में कई बार भारी बहुमत के साथ वाममोर्चा के सत्ता में लौटने की बात छप चुकी है। लेकिन विपक्ष ने कभी इनका विरोध या खंडन नहीं किया है। लेकिन अपने विरोध में पहला सर्वेक्षण छपते ही माकपा आक्रामक मुद्रा में नजर आ रही है। दिलचस्प बात यह है कि गौतम ने जितने जबरदस्त तरीके से सर्वेक्षण का विरोध किया, उस विरोध को रविवार को किसी अखबार ने छापने लायक ही नहीं समझा। उस समूह ने भी नहीं, जिसने इसे कराया और छापा था। माकपा के मुखपत्र गणशक्ति और उसके समर्थक कुछ अखबारों में यह खबर जरूर सुर्खियों में रही।
अपनी उसी प्रेस कांफ्रेंस में गौतम ने तृणमूल कांग्रेस पर चुनावों में करोड़ों के कालेधन के इस्तेमाल होने का भी आरोप लगाया। उनकी दलील थी कि तृणमूल के एक के अलावा सभी उम्मीदवारों को पार्टी दफ्तर से 15-15 लाख रुपए दिए गए हैं। उनका कहना था कि वे उस एक उम्मीदवार का नाम नहीं बताएंगे। लेकिन मीडिया चाहे तो सीबीआई के पूर्व अधिकारी उपेन विश्वास से बात कर सकता है। चारा घोटाले की जांच के लिए चर्चित विश्वास तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर उत्तर 24-परगना जिले के बागदा से चुनाव मैदान में हैं। माकपा नेता ने पत्रकारों को उपेन विश्वास की मोबाइल नंबर भी दिया। उनकी सहूलियत के लिए। लेकिन बाद में उपेन विश्वास ने साफ कह दिया कि उनको तृणमूल की ओर से चुनाव खर्च के तौर पर न तो कोई पैसे दिए गए हैं और न ही कभी इस बारे में कोई बात हुई है।
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि माकपा फिलहाल आक्रमण ही बचाव का सबसे बेहतर तरीका है की कहावत पर चल रही है। ऐसे में एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का दौर अभी और तेज होने का अंदेशा है। अब इसके साथ ही पार्टी ने मीडिया को भी लपेटे में ले लिया है। चुनावी बिसात पर बाजी बिछने से पहले ही माकपा मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी दबाब का खेल खेल रही है। यह लड़ाई चुनाव मैदान से बाहर की है। और गौतम देव के मुताबिक असली लड़ाई यही है। वरना उनके शब्दों में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस गठबंधन से मुकाबला तो उनके लिए महज ब्रेकफास्ट यानी नाश्ता है।

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