Wednesday, August 5, 2009

हिन्दुस्तान में पुरवाई


सुबह-सबेरे लखनऊ से अंबरीश जी (जनसत्ता) का पहले मेल आया और फिर फोन. उन्होंने बताया कि रवीश जी ने हिन्दुस्तान में आपके ब्लॉग के बारे में बहुत बढ़िया और विस्तार से लिखा है. सुन कर चौंका. मेरा चौंकना स्वाभाविक था.अभी ब्लॉग लिखते तीन महीने भी पूरे नहीं हुए हैं.इसबीच, रायपुर से छपने वाले दैनिक हरिभूमि में तो चार-पांच बार मेरे ब्लॉग के हवाले सिंगल कालम की रिपोर्ट्स छपी थीं. लेकिन ब्लॉग का ऐसा चित्रण पहली बार देखा.बाद में कुछ और मित्रों और परिचितों ने इसके लिए बधाई दी.अब कोलकाता में हिन्दुस्तान नहीं आता. इसलिए ई-पेपर से ही संतोष करना पड़ा.इसके लिए मैंने एक बार फिर तकनीक को बधाई दी. पहले का वह दौर याद आ गया जब रचनाएं कहीं छपने और उसे देखने के बीच हफ्तों और कई बार महीनों गुजर जाता था.
मैं रवीश जी का आभारी हूं जिन्होंने इस कदर चित्रण कर मुझे अपने ब्लॉग पर और मेहनत करने की ऊर्जा और प्रेरणा दी है. इसके बाद अब पूरब की इस खिड़की पुरवाई का कैनवास कुछ बढ़ाते हुए इसमें विविध और बहुरंगी चीजें समेटने का प्रयास करूंगा. वैसे,रवीश जी की समीक्षा तो बहुतों ने पढ़ी है. फिर भी मैं उसे पीडीएफ के तौर पर यहां डाल रहा हूं. ताकि सनद रहे.

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