Thursday, September 10, 2009

नष्ट हो रही है एक ‘अमानुष’ की धरोहर


दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा, बर्बादी की तरफ ऐसा मोड़ा,एक भले मानुष को अमानुष बना कर छोड़ा........’ कोई 35 साल पहले बनी हिंदी फिल्म ‘अमानुष’ का यह गाना भला कौन भूल सकता है! बांग्ला फिल्मों के महानायक उत्तम कुमार की 83वीं जयंती के मौके पर केंद्र सरकार ने भले उनके सम्मान में डाक टिकट जारी करने का फैसला किया हो, उनकी ज्यादातर फिल्मों के प्रिंट अब बेहद खराब हो चुके हैं. हाल ही में रेल मंत्री ममता बनर्जी ने टालीगंज मेट्रो रेल स्टेशन का नाम भी बदल कर महानायक उत्तम कुमार कर दिया. टालीगंज में ही बांग्ला फिल्म उद्योग बसता है. उत्तम कुमार का ज्यादातर समय भी इसी इलाके में स्थित स्टूडियो में अभिनय करते बीता था. बांग्ला फिल्मों के इस महानायक को सम्मान तो बहुत मिला और अब भी मिल रहा है. लेकिन किसी ने उनकी धरोहर के रखरखाव में दिलचस्पी नहीं ली. यही वजह है कि उन्होंने जिन 226 फिल्मों में अभिनय किया था उनमें से सौ से भी कम फिल्मों के निगेटिव ही सुरक्षित बचे हैं. उनकी ज्यादातर फिल्मों के प्रिंट इस हालत में हैं कि उनको 35 मिमी के परदे पर दिखाना संभव नहीं है. कई फिल्मों के तो प्रिंट भी नहीं मिल रहे हैं. अब ज्यादातर सिनेमाघरों में श्वेत-श्याम फिल्में नहीं दिखाई जातीं. यही वजह है कि किसी ने इनके संरक्षण और रखरखाव में दिलचस्पी नहीं दिखाई है.उत्तम कुमार ने 1968 में शिल्पी संसद नामक एक संगठन बनाया था. इसके सचिव साधन बागची बताते हैं कि ‘दुर्भाग्य से उत्तम कुमार की कई बेहतरीन फिल्मों के न तो प्रिंट उपलब्ध हैं और न ही उनके निगेटिव.’ वे कहते हैं कि ‘एक नया प्रिंट डेवलप करने पर कम से एक लाख रुपए की लागत आती है. इसलए कोई भी निर्माता या वितरक यह रकम खर्च करने के लिए तैयार नहीं है.’ उत्तम कुमार की जिन फिल्मों के प्रिंट खो गए हैं उनमें ‘शिल्पी,’ ‘अग्नि परीक्षा,’ ‘पथे होलो देरी’ और ‘नवराग’ शामिल हैं. उत्तम कुमार की ‘ओगो वधू सुंदरी’ के भी प्रिंट का कोई पता नहीं है. यह उनकी रिलीज होने वाली अंतिम फिल्म थी.शिल्पी संसद लंबे अरसे से उत्तम कुमार की फिल्मों का एक आर्काइव बनाने का प्रयास कर रहा है. लेकिन किसी ने भी इस काम में सहायता का हाथ नहीं बढ़ाया है. बागची कहते हैं कि ‘आर्काइव तो दूर की बात है. कोई इस महानायक की फिल्मों के संरक्षण में भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है.’ वे कहते हैं कि राज्य सरकार से भी इस मामले में कोई सहायता नहीं मिली है. हमने बीते साल ही उसे उन फिल्मों की सूची सौंपी थी जिनके प्रिंट नष्ट हो रहे हैं. लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई जवाब नहीं आया है.
उत्तम कुमार की लगभग पांच दर्जन फिल्में सीडी और डीवीडी पर उपलब्ध हैं. लेकिन उनकी क्वालिटी बेहद खराब है. ‘अमानुष’ और ‘आनंद आश्रम’ समेत उनकी सभी तेरह हिंदी फिल्मों के प्रिंट सुरक्षित हैं.उत्तम कुमार का जन्म कोलकाता के अहिरीटोला इलाके में हुआ था. बचपन में उनका नाम अरुण कुमार चटर्जी था. लेकिन नानी प्यार से उनको उत्तम कहती थीं. इसलिए बाद में उनका नाम उत्तम कुमार हो गया. उन्होंने कुछ दिनों तक थिएटर में भी काम किया. बाद में वे फिल्मों की ओर मुड़े और बांग्ला फिल्म ‘दृष्टिदान’ (1948) से अपना सफर शुरू किया. लेकिन अगले चार-पांच साल तक उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप होती रहीं. फ्लॉप हीरो का ठप्पा लगने की वजह से तब वे फिल्मों से तौबा करने का मन बनाने लगे. लेकिन 1952 में बनी बसु परिवार फिल्म के हिट होते ही उनकी गाड़ी चल निकली. उसके अगले साल सुचित्रा सेन के साथ आई ‘साढ़े चौहत्तर’ फिल्म ने उनको करियर को एक नई दिशा दी. उसके बाद उत्तम कुमार ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बाद में उन्होंने ‘अमानुष,’ ‘किताब,’ ‘आनंद आश्रम’ और ‘दूरियां’ समेत कई हिंदी फिल्मों में भी काम किया. वर्ष 1980 में एक फिल्म के सेट पर ही दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया.

4 comments:

  1. बंगाल मे कवियों के नाम के स्टेशन हैं यह कितने फख्र की बात है । उत्तम कुमार जी का अमानुष मे अविस्मरणीय रोल था ।

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  2. बहुत अच्छी पोस्ट है...सरकार को इस अमूल्य धरोहर के संरक्षण के लिए कारगर क़दम उठाने चाहिए...

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  3. उत्तम कुमार पर काफी गंभीर लेख है...बांग्ला के इतने बड़े कलाकार के अतीत को सहेजना जरूरी है...इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए...आपका ब्लॉग तारीफ के काबिल है...इस पर जारी कंटेंट दिल और दिमाग को छू लेते हैं...

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  4. aapki post ne mahaan kalakaar ka smaran karaya. badhai

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