Friday, September 4, 2009
बादलों का घर है मेघालय
देश के पूर्वोत्तर में गारो, खासी और जयंतिया पहाड़ियों पर बसा मेघालय प्राकृतिक सौंदर्य का एक बेहद खूबसूरत नमूना है। इस राज्य में गारो, खासी और जयंतिया जनजाति के लोग ही रहते हैं। स्थानीय भाषा में मेघालय का मतलब है बादलों का घर। यह छोटा-सा पर्वतीय राज्य अपने नाम को पूरी तरह साकार करता है। यहां घूमते हुए कब बादलों का एक टुकड़ा आपको छूकर निकल जाता है, इसका पता तक नहीं चलता। उसके गुजर जाने के बाद भीगेपन से ही इस बात का अहसास होता है। मेघालय की राजधानी शिलांग समुद्रतल से 1496 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसको पूरब का स्काटलैंड कहा जाता है। इस राज्य का गठन 2 अप्रैल, 1970 को एक स्वायत्तशासी राज्य के रूप में किया गया। एक पूर्ण राज्य के रूप में मेघालय 21 जनवरी, 1972 को अस्तित्व में आया। मेघालय उत्तरी और पूर्वी दिशाओं में असम से घिरा है तथा इसके दक्षिण और पश्चिम में बांग्लादेश है।
राजधानी शिलांग में एलीफेंटा फॉल, शिलांग व्यू पॉइंट, लेडी हैदरी पार्क, वार्ड्स लेक, गोल्फ कोर्स, संग्रहालय व कैथोलिक चर्च जैसे कई दर्शनीय स्थल हैं। शिलांग से कोई 56 किमी दूर चेरापूंजी अपनी बारिश के लिए मशहूर है। इसका नाम अब बदल कर सोहरा कर दिया गया है। यह खासी पहाड़ी के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक छोटा-सा कस्बा है। वायु सेना की पूर्वी कमान का मुख्यालय भी शिलांग में ही है।
एलीफैंटा फाल्स शहर से 12 किमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर एक झरना दो पहाड़ियों के बीच से बहता है। हाथी के पांव की शक्ल का होने की वजह से ही इसे एलीफैंटा फाल्स कहा जाता है। डाकी कस्बे में हर साल नौका दौड़ की प्रतियोगिता होती है। यह उमगोट नदी पर आयोजित किया जाता है। पश्चिमी गारो पर्वतीय जिले में स्थित नोकरेक नेशनल पार्क रिजर्व तूरा से लगभग 45 किलो मीटर की दूरी पर है। यह दुनिया के सबसे दुर्लभ लाल पांडा का घर माना जाता है।
इस राज्य में जनजातियों के त्योहारों की कोई कमी नहीं है। पांच दिनों तक मनाया जाने वाला ‘का पांबलांग-नोंगक्रेम’ खासियों का एक प्रमुख धार्मिक त्योहार है। यह नोंगक्रेम नृत्य के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह हर साल शिलांग से लगभग 11 कि.मी. दूर स्मित नाम के गांव में मनाया जाता है। शाद सुक मिनसीम भी खासियों का एक अन्य महत्वपूर्ण उत्सव है। यह हर साल अप्रैल के दूसरे सप्ताह में शिलांग में मनाया जाता है। जयंतिया आदिवासियों के सबसे महत्वपूर्ण तथा खुशनुमा त्योहार का नाम है बेहदीनखलम। यह आमतौर पर जुलाई के महीने में जयंतिया पहाडियों के जोवई कस्बे में मनाया जाता है। गारो आदिवासी अपने देवता सलजोंग (सूर्य देवता) से सम्मान में अक्तूबर-नवंबर में वांगला त्योहार मनाते हैं। यह भी एक हफ्ते तक चलता है।
शिलांग जाने के लिए पर्यटकों को सबसे पहले असम की राजधानी गुवाहाटी जाना होता है। वहां से सड़क मार्ग के जरिए तीन घंटे में शिलांग पहुंचा जा सकता है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही शिलांग के लिए बसें व टैक्सियां मिल जाती हैं। शिलांग में रहने के लिए हर तरह के होटल हैं।
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