Friday, January 8, 2010

इसलिए चुप थी कलम

बीते दो महीने मुश्किल तो नहीं लेकिन काफी व्यस्त रहे. पहले लंबी छुट्टी में विभिन्न जगहों की सैर. कुछ निजी तो कुछ पारिवारिक जिम्मेवारियां. उसके बाद लौटने पर दफ्तर में काम की व्यस्तता. इसके अलावा कुछ और जिम्मेवारियां और मजबूरियां. कुल मिला कर इसीलिए ब्लाग लेखन नहीं हो सका. अब नए साल में फिर नियमित लिखने की सोच रहा हूं. इन दो महीनों के दौरान भी बहुत कुछ हुआ. कभी फुर्सत में उन पर भी लिखूंगा. फिलहाल तो नए साल की खुमारी और शुभकामनाओं के आदान-प्रदान के बाद बेटी की परीक्षा की तैयारियां और ऐसे ही छोटे-बड़े कई मुद्दे सामने हैं.
हाल में कुछ नए दोस्त मिले. पुराने दोस्त तो अब दोस्त नहीं रहे. मेरी तरह उनकी भी कामकाज की व्यस्तताएं होंगी. अब उनमें से कुछ ही याद करते हैं. बाकी लोग संपादक या उसके बराबर हो गए हैं. बड़े शहरों में. कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ काम पड़ने पर याद करते हैं. मैं चाह कर भी वैसा नहीं हो पाता. कुछ मित्र, परिचित ऐसे हैं जिनसे लगातार संपर्क में रहता हूं. इसलिए नहीं कि उनसे कोई काम पड़ सकता है. बल्कि इसलिए इतने लंबे करियर में कहीं न कहीं साथ काम किया था. कुछ अच्छी यादें जुड़ी हैं. उनको ताजा करने के लिए उनसे मेल और फोन से संपर्क रहता है.
कई लोगों से साल में एकाध बार नए साल या दीवाली के मौके पर ही बात हो पाती है. लेकिन इस दौर में महानगरीय जीवन और पत्रकारिता के पेशे की व्यस्तताओं के बीच यही क्या कम है.
बहरहाल, अब कोशिश करूंगा कि ब्लाग पर इतना लंबा अवकाश नहीं हो.

1 comment:

  1. कलम तो चलनी ही चाहिए चाहे वह कहीं भी हो .. बहुत बढ़िया .आभार

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