Wednesday, February 17, 2010

हौसले ने बनाया रोल मॉडल


कच्ची उम्र में अपनी शादियां रोकने के लिए घरवालों और समाज के खिलाफ आवाज उठाते समय इन तीनों लड़कियों ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि वे देश में बाल विवाह के खिलाफ अभियान में रोल मॉडल बन जाएंगी। पश्चिम बंगाल के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार पुरुलिया के बीड़ी मजदूर और हाकरों के परिवार की रेखा कालिंदी (13), सुनीता महतो 13) और अफसाना खातून (14) को बाल विवाह की प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने और लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पहला मौका है जब बंगाल के किसी एक जिले की तीन लड़कियों को यह पुरस्कार मिला है।
तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली सुनीता कहती है कि एक साल पहले मेरे मात-पिता ने मेरा विवाह तय कर दिया था। इसकी जानकारी मिलने पर मैंने यह बात अपने साथ पढ़ने वाली दूसरी युवतियों को बताई। उनलोगों ने इसकी सूचना हमारी क्लासटीचर को दी। उसके बाद हम सबने मिल कर घरवालों को यह शादी नहीं करने के लिए मनाया। सुनीता आगे चल कर शिक्षिका बनना चाहती है।
रेखा ने भी अपने मात-पिता के दबाव के बावजूद कम उम्र में शादी करने से मना कर दिया. उसकी बड़ी बहन की शादी 11 साल की कच्ची उम्र में ही हो गई थी। रेखा कहती है कि इस पुरस्कार ने हमारे हौसले और मजबूत कर दिए हैं। अब पूरा भरोसा हो गया है कि हम जो कर रहे हैं वह सही है।
अब पुरुलिया जिले की यह तीन युवतियां इलाके में मिसाल बन गई हैं। इन तीनों ने सिर्फ अपना बाल विवाह रोका, बल्कि जिले की कई दूसरी युवतियों को भी घरवालों की मर्जी के अनुसार कम उम्र में शादी करने से रोक दिया। अब ऐसी 35 लड़कियां चाइल्ड एक्टीविस्ट इनिशिएटिव (सीएआई) के तौर पर काम कर रही हैं। यह सब गांव-गांव घूम कर लड़कियों को बाल विवाह से इंकार करने के लिए तैयार कर रही हैं। इनकी कोशिशों की वजह से इलाके में दर्जनों बाल विवाह रोके जा चुके हैं।
शिक्षा की व्यवस्था नहीं होने और गरीबी के चलते पुरुलिया जिले के कई हिस्सों में बाल विवाह की प्रथा अब भी कायम है। पुरुलिया के सहायक श्रम आयुक्त प्रसेनजीत कुंडू कहते हैं कि किसी ने भी इन लड़कियों को बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाने की सलाह नहीं दी थी। इन लोगों ने खुद ही एकजुट होकर गांव-गांव जाकर ऐसा करने का फैसला किया था। इन लड़कियों को हौसले से कुंडू भी अचरज में हैं। वे कहते हैं कि ‘पारिवारिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए इन लड़कियों के लिए कच्ची उम्र में विवाह से इंकार करना और अपने हक के लिए आवाज उठाना बेहद मुश्किल है।

1 comment:

  1. is rachna ko padh kar lagta hai ki chalo kahin to hamari sarkar ne kuchh acchha kam kiya..agar sarkar unhe inam na deti to vo encouraged kaise aur kab tak ho pati...aur in ladkiyo ki himmat ki daad to deni hi padegi...acchhi rachna.

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