Saturday, May 8, 2010

रे की कहानी को परदे पर उतारेंगे संदीप


बांग्ला सिनेमा को एक नई पहचान दिलाने वाले स्व. फिल्मकार सत्यजित रे की मशहूर फेलूदा सीरिज़ की अगली कड़ी जल्दी ही परदे पर नजर आएगी. इस महान फिल्मकार के पुत्र संदीप रे, जो खुद भी जाने-माने निर्देशक हैं, ने अपने पिता की जयंती के मौके पर यह एलान किया है. सत्यजित रे अगर जीवित होते तो दो मई को उम्र के नौवें दशक में कदम रखते. सत्यजित ने फेलूदा सीरिज़ के जासूसी उपन्यास और लघु कहानियां लिखी थीं. उन्होंने अपनी कहानियों और फिल्मों में फेलूदा नामक जासूस के चरित्र को अमर कर दिया था. अब संदीप उनकी इस परंपरा को आगे बढ़ाएंगे. वे इसे अपने पिता और इस महान फिल्मकार के प्रति श्रद्धांजलि मानते हैं.संदीप कहते हैं कि ‘हमने फेलूदा सीरिज के मशहूर उपन्यास गोरोस्थाने सावधान (कब्रिस्तान में सावधान) पर फिल्म बनाने का फैसला किया है. इसकी शूटिंग अगले महीने शुरू होगी. यह फेलूदा सीरिज़ की लोकप्रिय कहानियों में से एक है.’
इससे पहले फेलूदा सीरिज़ की ‘सोनार केल्ला (सोने का किला)’, ‘जय बाबा फेलूनाथ’, ‘बोंबेर बोंबेटे (बंबई के डकैत),’ ‘कैलाशे केलेंकारी (कैलाश पर अफरातफरी)’ समेत कुछ कहानियों पर बनी फिल्में काफी सफल रही हैं. ‘सोनार केल्ला’ और ‘जय बाबा फेलूनाथ’ का निर्देशन तो खुद सत्यजित रे ने ही किया था. बाकी फिल्मों का निर्देशन उनके पुत्र संदीप ने किया था. फेलूदा सीरिज़ की कई कहानियों पर टेलीविजन धारावाहिक भी बन चुके हैं.‘पथेर पांचाली (सड़क का गीत)’ जैसी सदाबहार फिल्मों के जरिए भारतीय सिनेमा को एक नई राह दिखाने वाले रे की जयंती के मौके पर कोलकाता में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. तमाम स्थानीय टीवी चैनलों ने रे को श्रद्धांजलि के तौर पर उनकी फिल्मों का प्रसारण किया. कुछ चैनलों ने इस मौके पर विशेष कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया.संदीप कहते हैं कि ‘गोरोस्थाने सावधान’ के बाद वे अपने पिता के विज्ञान उपन्यास प्रोफेसर शोंकू के अभियान पर भी एक फिल्म का निर्देशन करना चाहते हैं. अगले दो साल में ऐसा करने की योजना है. रे ने अपनी पहली तीन फिल्मों- पथेर पांचाली, अपराजिता और अपूर संसार के जरिए बांग्ला सिनेमा में संभावनाओं की नई राह खोल दी थी. उसके बाद उन्होंने ‘देवी’ और ‘जलसाघर’ बनाई थी. वर्ष 1977 में प्रेमचंद की कहानी पर बनी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के जरिए भारतीय सिनेमा की मुख्यधारा के दर्शकों से उनका परिचय हुआ. अपनी हर फिल्म से रे नई ऊंचाईयां छूते रहे. वर्ष 1992 में उनको लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. तब तक रे की फिल्में फिल्म प्रशिक्षण स्कूलों में पाठ्यक्रम का हिस्सा बन चुकी थी. नए निर्देशक भी उनसे प्रेरणा लेते थे. ऐसे निर्देशकों में कुमार साहनी, मणि कौल, अदूर गोपालाकृष्णन और श्याम बेनेगल शामिल हैं. रे को भारतरत्न के अलावा फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया गया.बांगाला सिनेमा में अब भी सत्यजित रे का कोई सानी नहीं है. उन्होंने अपनी फिल्मों में बंगाल के ग्रामीण और शहरी जीवन का यथार्थ चित्रण किया था. रे के पुत्र संदीप कहते हैं कि ‘पिता जी की बाकी कहानियों और उपन्यासों को सिनेमा के परदे पर उतारना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी.’ उन्होंने इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया है.

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