Wednesday, August 11, 2010

शिरीन ने जीती बुर्के के खिलाफ जंग


चार महीनों तक चली खींचतान के बाद आखिर शिरीन मिद्या ने बुर्का पहन कर विश्वविद्यालय में पढ़ाने के छात्र संघ के फरमान के खिलाफ जंग जीत ली है. अब आलिया विश्वविद्यालय प्रबंधन ने उनको बिना बुर्का पहने ही मुख्य परिसर में पढ़ाने की अनुमति दे दी है. अब तक शिरीन विश्वविद्यालय के साल्टलेक परिसर में स्थित लाइब्रेरी में काम कर रही थी. शिरीन ने अब विश्वविद्यालय में बिना बुर्के के पढ़ाने के लिए अपनी सुरक्षा की मांग की है.
राज्य का यह पहला मुस्लिम विश्वविद्यालय वर्ष 2008 में स्थापित हुआ था. विश्वविद्यालय के संविधान में बुर्का पहन कर पढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन मदरसा छात्र संघ ने सभी शिक्षिकाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य कर रखा है. शिरीन ने इसी साल मार्च में अतिथि लेक्चरर के तौर पर नौकरी शुरू की थी. अप्रैल के दूसरे सप्ताह में ही छात्र संघ ने उनसे कह दिया कि वे बिना बुर्का पहने छात्रों को नहीं पढ़ा सकती. विश्वविद्यालय की बाकी सात शिक्षिकाओं ने तो यह फरमान मान लिया था. लेकिन शिरीन ने इसके आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया था. इस मुद्दे पर विवाद रोकने के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन ने उनको दूसरे परिसर में बनी लाइब्रेरी में भेज दिया था. लेकिन उनको वेतन लेक्चरर का ही मिलता था.
अब जुलाई के आकिरी सप्ताह से नया शिक्षण सत्र शुरू होने के बाद शिरीन ने वाइस-चांसलर से मुख्य परिसर में पढ़ाने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. उन्होंने 31 जुलाई को वाइस-चांसलर को एक ई-मेल भेजा था और फिर दो दिन बाद उनको एक लिखित ज्ञापन सौंपा था. उसके एक सप्ताह बाद विश्वविद्याल प्रबंधन ने उनको पढ़ाने की अनुमति दे दी है.
शिरीन कहती है, ‘विश्वविद्यालय प्रबंधन ने मुझे पढ़ाने की अनुमति तो दे दी है. लेकिन फिलहाल इसके लिए कोई तारीख नहीं बताई है कि मैं कब से मुख्य परिसर में पढ़ाने जा सकती हूं.’ वह कहती है कि पढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय जाने पर मुझे सुरक्षा मिलनी चाहिए ताकि कोई अप्रिय स्थिति नहीं पैदा हो.
इस मामले को तूल पकड़ते देख कर अब छात्र संघ ने भी कहा है कि शिक्षिका इस बात के लिए बिल्कुल स्वतंत्र है कि उसे क्या पहनना है. पश्चिम बंगाल मदरसा छात्र संघ के सचिव हसनुर जमान मानते हैं कि विश्वविद्यालय में ड्रेस कोड जैसा कोई नियम नहीं है. जमान के मुताबिक, मिद्या बिना वजह ही मीडिया के पास गई और इसे एक मुद्दा बना दिया.
चार महीने से यह मामला ऐसे ही चल रहा था. लेकिन मीडिया में इसकी खबरें आने के बाद सरकार की नींद टूटी और उसने इस मामले की जांच के आदेश दिए. अल्पसंख्यक मामलों और मदरसा शिक्षा के प्रभारी मंत्री अब्दुस सत्तार ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए वाइस-चांसलर से कहा कि मिद्या को पढ़ाने की इजाजत दी जानी चाहिए. सत्तार कहते हैं, ‘हम पहले ही यह नोटिस दे चुके हैं कि विश्वविद्यालय में कोई ड्रेस कोड नहीं है.’
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार शेख अशफ़ाक अली कहते हैं, ‘अब शिरीन पहले की तरह ही कलकत्ता मदरसा परिसर में छात्रों को पढ़ाएगी. इस समय दाखिले की प्रक्रिया चल रही है. इसलिए शिरीन के वहां जाकर पढ़ाने में कोई समस्या नहीं है.’
शिरीन को बुर्का पहनने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन कहती हैं कि वह ऐसा अपनी मर्जी से करेंगी, किसी की जोर-जबरदस्ती से नहीं. फिलहाल छात्र संघ के फ़रमान के
खिलाफ पहली जंग तो उन्होंने जीत ही ली है.

1 comment:

  1. शिरीन को बधाई, इस तरह के फरमानों से क्या भला हो सकता है भला बुर्का पहनने की जोर जबरदस्ती नही होनी चाहिए।

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