Wednesday, August 4, 2010
ताकि हर आंगन में गूंजे किलकारी
आधुनिकता के इस दौर में भी भारतीय समाज में बांझपन को सबसे बड़ा अभिशाप समझा जाता है. अब टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक के रूप में इस अभिशाप से मुक्ति दिलाने के साधन तो मौजूद हैं. लेकिन इस तरीके से इलाज अब भी आम लोगों की पहुंच से बाहर ही है. ऐसे में कोलकाता के एक चिकित्सक ने यह तकनीक गरीबों तक पहुंचाने की दिशा में एक पहल की है.
कोलकाता में टेस्ट ट्यूब तकनीक के अगुवा और घोष दस्तीदार इंस्टीट्यूट फार फर्टिलिटी रिसर्च के निदेशक डा. सुदर्शन घोष दस्तीदार ने इस दिशा में पहल करते हुए रेल मंत्री ममता बनर्जी को एक पत्र लिखा है. उन्होंने अपने पत्र की प्रतियां केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और दूसरे संबंधित विभागों को भी भेजी हैं. वे केंद्र सरकार की भारतीय चिकित्सा शोध परिषद की ओर से कृत्रिम प्रजनन तकनीक पर गठित विशेषज्ञ समिति और यूरोपियन सोसाइटी आफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन के भी सदस्य हैं. उन्होंने अपनी इस पहल के बारे में यहां पत्रकारों को इसकी जानकारी दी.
महानगर के विशेषज्ञों की राय में अब आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) यानी टेस्ट ट्यूब तकनीक से बच्चे पैदा करने के लिए भी काफी तादाद में विकसित देशों के लोग कोलकाता आ रहे हैं. यह हेल्थ टूरिज्म यानी स्वास्थ्य पर्यटन का नया पहलू है.भारतीय व खास कर कोलकाता के चिकित्सकों और उनकी काबिलियत के प्रति विदेशियों में आस्था बढ़ी है. इसके अलावा विदेशों के मुकाबले यह तकनीक यहां बेहद सस्ती है. विदेशों में जहां आईवीएफ तकनीक के जरिए गर्भधारण की प्रक्रिया पर 10 से 15 हजार डालर का खर्च आता है. वहीं यहां यह प्रक्रिया अधिकतम दो हजार डालर में पूरी हो जाती है.
डा. घोष दस्तीदार, जिन्होंने वर्ष 1981 में इनफर्टिलिटी के क्षेत्र में शोध की पहल की थी, ने तीन साल पहले आरुषा (तंजानिया) ने आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में ही खासकर विकासशील देशों में गरीब तबके के लोगों तक आईवीएफ या टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक पहुंचाने की पुरजोर वकालत की थी. उन्होंने सम्मेलन में एक परचा भी पढ़ा था. उन्होंने बताया कि भारत जैसे विकासशील देश में तीन से चार करोड़ लोग बांझपन की बीमारी से पीड़ित हैं. समाज में उनको हेय नजरों से देखा जाता है. लेकिन अब यह साबित हो चुका है कि बांझपन एक बीमारी है. टेस्ट ट्यूब तकनीक से इसका इलाज संभव है. लेकिन यह तकनीक महंगी होने की वजह से ज्यादातर लोगों को इसका फायदा नहीं मिलता और वे इस अभिशाप को भोगने पर मजबूर हैं.
डा. घोष दस्तीदार ने पत्र में लिखा है कि टेस्ट ट्यूब तकनीक में इस्तेमाल होने वाले 60 से ज्यादा उपकरण विदेशों से आयात किए जाते हैं. अगर केंद्र सरकार महज गरीबों के लिए इन पर आयात ड्यूटी की छूट दे दे तो यह तकनीक बेहद सस्ती और आम लोगों के पहुंच के भीतर हो सकती है. वे बताते हैं कि टेस्ट ट्यूब तकनीक में 50 से 80 हजार तक का खर्च आता है. अगर केंद्र सरकार आयात ड्यूटी में छूट दे दे तो यह खर्च घट कर आधा रह जाएगा. वे कहते हैं कि अब बांझपन को बीमारी मानते हुए इसको आंशिक तौर पर चिकित्सा बीमा के तहत शामिल किया जाना चाहिए. इससे देश को बांझपन से काफी हद तक निजात मिल सकती है. उन्होंने कहा कि बांझपन का इलाज सस्ता होने की स्थिति में देश में चिकित्सा पर्यटन को भी काफी बढ़ावा मिलेगा. इससे विदेशी मुद्रा की आय बढ़ेगी.
उन्होंने पत्र में लिखा है कि बांझपन और इसके इलाज को राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में शामिल कर उसे तरजीह दी जानी चाहिए. तमाम सरकारी अस्पतालों में भी निजी क्षेत्र की सहायता से टेस्ट ट्यूब तकनीक की शुरूआत करनी चाहिए ताकि समाज के गरीब व कमजोर तबके के लोग इसका फायदा उठा सकें. फिलहाल एम्स के अलावा देश के किसी भी सरकारी अस्पताल में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है.
डा. घोष दस्तीदार ने बताया कि अब विश्व बैंक समेत कई संगठन विकासशील देशों में कम खर्च में आईवीएफ तकनीक को बढ़ावा देने वाली योजनाओं को सहायता देने में दिलचस्पी ले रहे हैं. उनका प्रस्ताव है कि धनी लोगों से तो पूरी रकम ली जाए. लेकिन गरीबों के लिए संबंधित उपकरणों के आयात में तमाम करों में छूट दी जाए.
घोष दस्तीदार के संस्थान ने अब ऐसे मरीजों के लिए मुफ्त सलाहकार सेवा भी शुरू की है. इसके लिए sudarsan.ivf@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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