Friday, June 4, 2010

माकपा अब घटक दलों के भी निशाने पर


पश्चिम बंगाल के शहरी निकाय के लिए हुए चुनाव में जबरदस्त हार से माकपा सकते में है. नतीजों के एलान के चौबीस घंटे बाद भी वह इस सदमे से उबर नहीं सकी है. लेकिन इस हार के बावजूद माकपाइयों के तेवर ढीले नहीं पड़े हैं. यानी रस्सी भले जल गई हो, उसकी ऐंठन नहीं गई है. उसका दावा है कि पार्टी का प्रदर्शन उतना खराब नहीं रहा है. वैसे, माकपा के दिग्गज नेता भले कुछ भी दावा करें, हकीकत यह है कि इतनी करार हार का उनको कोई अंदेशा नहीं था. जिन 81 नगरपालिकाओं के लिए चुनाव हुए उनमें से 54 पर वामपंथियों का कब्जा था. लेकिन अब उसकी झोली में इनमें से सिर्फ 17 ही आई हैं. शायद इसलिए नतीजों के एलान के बाद मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की बोलती बंद हो गई. इस चुनावी सदमे से पंगु बनी माकपा पर अब वाममोर्चा के उसके सहयोगी भी हमला करने लगे हैं. उन्होंने इस हार का ठीकरा माकपा के सिर पर ही फोड़ा है.
इन नतीजों के बाद माकपा के प्रदेश सचिव विमान बसु ने एक बार फिर हार की वजहों की समीक्षा करने और आम लोगों से बढ़ी दूरी कम करने की बात कही है. वैसे, उन्होंने बीते साल लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भी यही कहा था. लेकिन इन नतीजों से साफ है कि माकपा और वोटरों के बीच की दूरी घटने की बजाय और बढ़ गई है. गुरुवार को हार की वजहों की समीक्षा के लिए आयोजित प्रदेश माकपा सचिव मंडल की बैठक में भी कोई ठोस चर्चा नहीं हो सकी. इसमें शामिल कुछ नेता अपने-अपने तर्क देते रहे. लेकिन ज्यादातर तो सुझाव के नाम पर बगलें ही झांकते रहे. बैठक में शामिल एक नेता ने बताया कि बैठक के दौरान माहौल गमगीन रहा. तमाम नेताओं की बोलती बंद थी.
शहरी निकाय चुनाव में हार का सदमा अभी कम नहीं भी हुआ है कि वाममोर्चा में उसके दो सहयोगी दलों ने इस हार के लिए सीधे तौर पर भ्रष्टाचार और राज्य सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेवार ठहराते हुए माकपा को कटघरे में खड़ा कर दिया है. आरएसपी नेता और राज्य के लोक निर्माण मंत्री क्षिति गोस्वामी ने कहा है कि जनादेश बदलाव के पक्ष में है. चुनावी नतीजों से यह बात शीशे की तरह साफ हो गई है. उन्होंने आरोप लगाया कि लंबे अरसे तक सत्ता में रहने की वजह से वाममोर्चा के कई वर्गों में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है.
आरएसपी नेता ने कहा कि माकपा वाममोर्चा की सबसे बड़ी घटक है. इसलिए हमारे मुकाबले उसमें भ्रष्टाचार की जड़ें भी ज्यादा गहरी हैं. उधर, मोर्चा की एक अन्य घटक वेस्ट बंगाल सोशलिस्ट पार्टी ने कहा है कि वर्ष 1977 से लगातार सत्ता में रहने की वजह से वाममोर्चा ने लोगों का भरोसा खो दिया है. पार्टी के नेता और मत्स्य पालन मंत्री किरणमय नंद ने कहा कि वर्ष 2008 के पंचायत चुनाव से ही आम लोग हमारे खिलाफ हैं. इसलिए मौजूदा हालात में इससे बेहतर नतीजों की उम्मीद नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों और आम लोगों के प्रति माकपा की बेरुखी ने ही निकाय चुनाव में वामपंथियों की लुटिया डुबो दी. हमने लोगों का भरोसा खो दिया है.
नंदा ने कहा कि बीते साल लोकसभा चुनाव में मोर्चा की दुर्गति के बाद उन्होंने सरकार के इस्तीफा देकर नए सिरे से जनादेश हासिल करने का सुझाव दिया था. लेकिन मेरा वह प्रस्ताव तब खारिज कर दिया गया था. गोस्वामी व नंदा विभिन्न मुद्दों पर पहले भी सरकार और माकपा की गलत नीतियों के खिलाफ मुखर रहे हैं.
शहरी निकाय के चुनावी नतीजों ने माकपा के दिग्गज नेताओं के तमाम पूर्वानुमान व समीकरण गड़बड़ा दिए हैं. चुनाव से पहले कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के बीच कोई तालमेल नहीं होने से माकपाई बेहद खुश थे. उनका सीधा हिसाब था कि इससे वाम-विरोधी वोटों का विभाजन होगा और वामपंथियों का बेड़ा पार हो जाएगा. लेकिन वे शायद भूल गए कि राजनीति में हमेशा दो और दो चार नहीं होता. अब हर चुनाव की तरह इस बार भी माकपाई हार की वजह की समीक्षा और लोगों के नजदीक जाने का पुराना राग ही अलाप रहे हैं. लेकिन पार्टी के भ्रष्ट नेताओं व कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई के सवाल पर पार्टी ने अब तक चुप्पी साध रखी है. बीते साल लोकसभा चुनाव के बाद उसने ऐसे नेताओं से पल्ला झाड़ कर पार्टी की छवि सुधारने के लिए शुद्धिकरण अभियान चलाने का फैसला किया था. लेकिन पार्टी के ही एक गुट के दबाव में उस फैसले को ठंढे बस्ते में डाल दिया गया. अब लाख टके का सवाल यह है कि क्या माकपा अतीत की गलतियों से कोई सबक लेगी. फिलहाल तो इसकी उम्मीद कम ही नजर आती है.

1 comment:

  1. CPM is the stain on the name of Communism. they all are are Capitalist and covered the garb of Communisism .
    they are bad for nation

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